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गरीबी में मां के साथ घूम-घूम कर बेची थीं चूड़ियां, आज है आईएएस अफसर…

गरीबी में मां के साथ घूम-घूम कर बेची थीं चूड़ियां, आज है आईएएस अफसर…

देश-विदेश: कहते हैं कि सपने वो नहीं होते जो आपको नींद के दौरान आते हैं, सपने तो वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के वारसी तहसील के महागांव के रमेश घोलप के सपने भी कुछ ऐसे थे कि उनकी नींद ने उनका साथ छोड़ दिया था यदि कोई मनुष्य सच्ची लगन से किसी चीज को हासिल करने की कोशिश करे तो वह अवश्य सफल होता है। मनुष्य की सफलता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि उसका बैकग्राउंड क्या है बल्कि इस बात पर निर्भर करती है।

कि वह अपने जीवन में आनेवाली चुनौतियों का सामना कैसे करे जिससे उसको लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।राष्ट्रकवि दिनकर जी की लिखी एक पंक्ति “मानव जब जोड़ लगाता है पत्थर पानी बन जाता है।” इस बात को सही साबित कर दिखाया है रमेश घोलप ने। वर्तमान मे वह एक आईएएस हैं। उनकी यह कहानी सभी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।

 

 

दुनिया में ऐसे लोग बहुतायत में हैं जो विपरीत परिस्थितियों के सामने टूट जाते हैं, लेकिन रमेश तो परिस्थितियों से लड़ने के लिए ही पैदा हुए थे। रमेश के पिता नशे के आदी थे और अपने परिवार का ख्याल नहीं रखते थे। अपने घर-बार का खर्चा उठाने के चक्कर में मां-बेटे चूड़ियां बेचने को विवश थे। कई बार तो इस काम से जमा पैसों से भी पिता शराब पी जाया करते थे।

रमेश अपनी मां के साथ मौसी के इन्दिरा आवास में रहते थे। जब रमेश की 10वीं कक्षा की परीक्षा होने में 1 माह रह गया तो किस्मत ने भी अपना रंग बदल दिया। रमेश के पिता का देहांत हो गया। किसी के भी जीवन में पिता का बहुत महत्व होता है लेकिन ऐसे हालात मे पिता का देहांत रमेश के लिए एक सदमा से कम नहीं था। पिता की मौत ने रमेश को अंदर तक हिला दिया। लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और हिम्मत से काम लिया। उन्होंने 10वीं की परीक्षा दी और अच्छे नम्बरों से सफल भी हुए। उन्होने 88.50% अंक प्राप्त किया। रमेश की मां ने रमेश को आगे की शिक्षा हेतु सरकारी ऋण योजना के तहत गाय खरीदने के लिए 18 हजार रुपये कर्ज लिया।

 

 

रमेश आईएएस बनना चाहते थे। अपने आईएएस के सपने को साकार करने के लिए उन्होंनें अपनी मां से कुछ पैसे लेकर पुणे चले गए। वहां उन्होंने कठिन मेहनत करना शुरू कर दिया। वह दिनभर काम करते और उससे पैसे इक्ट्ठा करते। उसके बाद रात भर पढ़ाई किया करते थे। पैसे कमाने के लिए रमेश दीवारों पर नेताओं की घोषणाएं, दुकान का प्रचार तथा शादी की पेंटिंग आदि का कार्य करते थे।

यूपीएससी के लिए पहली कोशिश में रमेश को निराशा हाथ लगी। लेकिन विफल होने के बाद भी वे हार ना मानकर अपने मार्ग पर डटे रहे और आगे बढ़ते रहे। उन्होंने वर्ष 2011 में दुबारा से यूपीएससी की परीक्षा दी। जिसमें वे सफल रहे। उन्होंने 287वीं रैंक हासिल की जो बेहद हर्ष की बात है। इसके अलावा उन्होंने राज्य सिविल सर्विसेज में पहला स्थान प्राप्त किया।

 

 

रमेश घोलप 4 मई 2012 को अधिकारी बनकर पहली बार उन गलियों में कदम रखा जहां वे मां के साथ चूड़ियां बेचा करते थे। ग्रामीणों ने उनका भव्य स्वागत किया। बीते वर्ष उन्होंने सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त कर SDO बेरेमो के रूप में कार्यरत हुए। जिसके बाद हाल ही में रमेश घोलप की नियुक्ति झारखंड के उर्जा मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में हुई है।

रमेश ने अपने मुश्किल समय के बारे में याद करते हुए बताया कि आज वो जब भी किसी बेसहारा की सहायता करते हैं तो उन्हें अपनी मां की स्थिति याद आती है, जब वे अपनी पेंशन के लिए अधिकारियों के दरवाजे पर गिङगिङाती रहती थी। रमेश अपने जीवन के कठिन संघर्षों को कभी न भूलते हुए हमेशा जरुरतमंद, बेसहारा लोगों की सहयता करते हैं। रमेश अभी तक 300 से अधिक सेमिनार करके युवकों को प्रशासनिक परीक्षा में कामयाबी हासिल करने के टिप्स भी दे चुके हैं।

 

 

मां को लड़वा चुके हैं पंचायती चुनाव.

छोटी उम्र से ही हर चीज के लिए जद्दोजहद करते-करते रमेश कई जरूरी बातें सीख गए थे। जैसे कि लोकतंत्र में तंत्र का हिस्सा होना क्या-क्या दे सकता है। व्यवस्था को बदलने के लिए क्यों व्यवस्था में घुसना बेहद जरूरी है। उन्होंने साल 2010 में अपनी मां को पंचायती चुनाव लड़ने हेतु प्रोत्साहित किया। उन्हें गांव वालों से अपेक्षित सहयोग भी मिला लेकिन उनकी मां चुनाव हार गईं। वह कहते हैं कि उसी दिन उन्होंने प्रण किया कि वे अफसर बन कर ही गांव में दाखिल होंगे।

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