उत्तराखंड

तो इसलिए नहीं मिलता नेगीदा को पदम पुरस्कार…

तो इसलिए नहीं मिलता नेगीदा को पदम पुरस्कार

– नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों ने सरकारें बदलवा दीं, मुख्यमंत्री बदलवा दिये तो कैसे मिलेगा राजकीय पुरस्कार

– राजकीय पुरस्कार से अलग जनमानस के दिलों में बसे हैं नेगीदा

गुणानंद ज़खमोला

उत्तराखंड : इस बार उत्तराखंड की तीन विभूतियों को पदम पुरस्कार मिले हैं तीनों ही सही मायने में पदमश्री पुरस्कार पाने के हकदार थे। इस पर कोई सवाल नहीं, लेकिन विडम्बना यह है कि लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी को इस बार भी पद्म पुरस्कार से वंचित रखा गया। यह ठीक वैसे ही है जैसे कि क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकार को हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद से पहले भारत रत्न मिलना।

ऐसा नहीं है कि सचिन इसके हकदार नहीं थे लेकिन मेजर ध्यान चंद का हक उनसे पहले बनता था। इस देश के नीति-नियंताओं के द्वारा पुरस्कारों के लिए योग्यता से कहीं अधिक जुगाड़वाद, चाटुकारिता, वोटों, जाति, धर्म, वर्ग संप्रदाय की ंराजनीति को ध्यान में रखा जाता है। नरेंद्र सिंह नेगी इन सबके अपवाद हैं। उन्होंने पहाड़ को जिया है और भोगा है। उनके रोम-रोम में पहाड़ बसा है। उन्होंने अपने अनुभव को समाज के प्रतिबिम्ब के तौर पर अपनी गायकी में उतारा है।

उनके शब्द मारक होते हैं और नेताओं व अफसरों के अहम को चोट पहुंचाते हैं। ऐसे में भला नेगीदा को कौन राजकीय पुरस्कार देगा? लेकिन वास्तविकता यह है कि नेगीदा तो पहाड़ के जनमानस के हृदय में बसे हैं, उन्हें पद्म पुरस्कार की जरूरत ही नहीं है। जनता का जो प्यार और सम्मान उन्हें मिलता है, उसके आगे सारे पुरस्कार फीके हैं। नरेंद्र सिंह नेगी ने पहाड़ की संस्कृति के लिये इतना काम किया है कि वो किसी पुरस्कार या सम्मान से बहुत ऊपर उठ चुके हैं। लेकिन जब कम प्रतिभाशाली और उस पुरस्कार को पाने की योग्यता से कम काम करने वालों को वो सम्मान मिलता है तो लोगों का गुस्सा लाजिमी है।

नेगीदा के गीतों से उन्होंने इतनी जागरूकता फैलाई कि कई अंधविश्वास और कुरीतियां दूर हुई हैं। उन्हीं में से एक कुरीति है मंदिरों में, पशु बलि प्रथा हिमाचल जैसे उत्तराखंड से ज्यादा विकसित प्रदेश में जहां अब भी लोग मंदिरों में पशु बलि देने पर अड़े हुये हैं, वहीं उत्तराखंड में ये अब करीब-करीब बंद हो गयी है। नेगी जी ने अपने गीत नी होंणा, नि होंणा रे भैरों, देवि-देवतोंल दैणा रे भैंरों बागी-बोग्याटाओं काटि के से बलि प्रथा को खत्म करने का आह्वान किया.. इस गीत के भाव कुछ ऐसे हैं३ ‘भगवान मंदिर में भैंसे और बकरों की बलि देकर खुश नहीं होते हैं। भगवान मंदिर में खून-खराबे से खुश नहीं होते। इस गीत का शानदार संदेश गया। लोग मंदिरों में पशु बलि बंद करने को राजी हुये। पर्यावरण बचाने को उनका गीत ना काटा तौ डांल्यों, तौ डाल्यों ना काटा भुलो, डाल्यों ना काटा। गीत के माध्यम से कहा गया है कि पेड़ों को मत काटो, पेड़ कटेंगे तो मिट्टी बहेगी। मिट्टी बहेगी तो न तो घर रहेंगे और न ही खेत-खलिहान ही बचेंगे।

फिर कहां रहोगे और क्या खाओगे? पहाड़ से होते पलायन पर नरेंद्र सिंह नेगी का गीत आंखों में आंसू ला देता है। कख लगाणि छ्वीं, कैमा लगाणि छ्वीं, ये पहाड़ै कि, कुमौं-गढ़वालै कि, इस गीत में कहा गया है कि खाली पड़े घरों का दर्द किसे सुनायें। खाली घरों, प्यासे बर्तनों, मैदान की ओर बहते लोगों की और खिसकते जंगलों-पहाड़ों की बात किसे कहें। उत्तराखंड आंदोलन में चारों तरफ नरेंद्र सिंह नेगी के ही गीत गूंजते थे। इन गीतों ने आंदोलनकारियों में ऐसा जोश भरा कि इसकी परिणति 9 नवंबर 2000 को अलग राज्य के रूप में सामने आयी। माथि पहाड़ बटि, निस गंगाड़ बटि, स्कूल-दफ्तर, गौं बजार बटि, हिटणा लग्या छन, रुकणि को लगणू, बाट भर्यां छन, सड़कूं मा जग नि, भैजी कख जाणा छा तुम लोग, उत्तराखंड आंदोलन मा एक और आंदोलन गीत था, उठा जागा उत्तराखंडियो, सौं उठाणों वक्त ऐगो। जब तत्कालीन यूपी सरकार ने आंदोलनकारियों पर बल प्रयोग किया तो नेगी जी के सुरों से फूटा, तेरा जुल्मों कौ हिसाब चुकौंल एक दिन। अलग राज्य बनने के बाद भी नरेंद्र सिंह नेगी के गीत लोगों को जगाते रहे।

एक मुख्यमंत्री की फिजूलखर्ची और अय्याशी के चर्चे जब आम होने लगे तो ‘नौछमी नारैणा’ के रूप में सुर फूटे। नतीजा चुनाव में उनकी पार्टी को हार झेलनी पड़ी। एक और मुख्यमंत्री के समय जब भ्रष्टाचार के चर्चे आम जन की जुबान पर थे तो ‘अब कतगा खैल्यो’ के रूप में गीत सामने आया। नतीजा उस सीएम को भी गद्दी छोड़नी पड़ी। इससे बड़ा असर और क्या हो सकता है। दरअसल नरेंद्र सिंह नेगी कभी भी सत्ताधीशों की चापलूसी या जी-हुजूरी में नहीं लगे. नहीं तो सरकारी सम्मानों की उनके ऊपर भी बरसात होती. उन्होंने जो देखा उसे अपने गीतों में ढाला. अब इससे सरकारों, मुख्यमंत्रियों या अधिकारियों को दिक्कत होती है तो इसमें ये लोकगायक क्या करे।

शायद इसीलिये सरकारें जनता के इस प्रिय गायक से घबराती हैं और दूरी बनाये रखती हैं। नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों ने सरकारें बदलवा दीं, मुख्यमंत्री बदलवा दिये। उनके गीतों ने हमेशा जनता में अच्छा संदेश दिया। उनका नाम भले ही पद्म पुरस्कार के लिये नहीं भेजा गया हो, लेकिन उनका सच्चा ‘पद्म’ जनता का प्यार है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top