बंजर भूमि पर सगंध खेती से महकी किसानों की जिंदगी..
उत्तराखंड: उत्तराखंड में अब सगंध खेती से ना केवल किसानों की किस्मत चमकेगी बल्कि बंजर खेतों में फिर से हरियाली भी लहराएगी। किसान परंपरागत फसलों के साथ ही औषधीय और सगंध पौधों की खेती करके लाभ कमा सकते हैं। औषधीय पौधे लगाने से किसानों को मुनाफे के साथ-साथ भूमि कि उर्वरता शक्ति भी बढ़ेगी।
बंजर भूमि से मुनाफा कमाने के लिए किसानों के हाथ सगंध खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। प्रदेश के हजारों किसानों ने क्लस्टर आधारित सगंध फसलों की खेती को अपनाया है। जिससे राज्य में एरोमा क्षेत्र का सालाना कारोबार 72 करोड़ पहुंच गया है। पहली बार प्रदेश में सगंध पौधों से 12 तरह के सुगंधित तेलों का व्यावसायिक उत्पादन किया जा रहा है। इन तेलों को परफ्यूमरी उद्योगों को उपलब्ध कराया जा रहा है।
प्रदेश में खेती को मुनाफे में लाने के लिए सरकार का क्लस्टर आधारित सगंध फसलों की खेती को बढ़ावा देने पर जोर है। पहाड़ों में खाली पड़ी बंजर भूमि पर सगंधपौधों की खेती कर किसान ज्यादा आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। किसानों के उत्पादित तेल की मार्केटिंग के लिए सरकार ने इंतजाम किया है। वहीं, 22 प्रकार के सुगंधित तेलों का सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है। उत्तराखंड सगंध फसलों से निकलने वाले इन तेलों की एमएसपी निर्धारित करने वाला देश का पहला राज्य है।
प्रदेश में अब तक 21 हजार से अधिक किसानों ने 7600 हेक्टेयर बंजर भूमि पर सगंध फसलों की खेती अपनाई है। एरोमा खेती से जहां किसानों को जंगली जानवरों व बंदरों की समस्या से निजात मिली है। वहीं, पारंपरिक फसलों से ज्यादा आय हो रही है। सगंध पौध केंद्र (कैप) के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षण देकर क्लस्टर खेती के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है।
वर्तमान में उत्तराखंड में साढ़े आठ हजार हेक्टेयर क्षेत्र में 18 हजार 120 किसान सगंध की खेती कर रहे हैं और उनका सालाना 72 करोड़ का टर्नओवर है. विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड के गांवों से हो रहे पलायन ने खेती-किसानी को काफी प्रभावित किया है। अविभाजित उत्तर प्रदेश में यहां आठ लाख हेक्टेयर में खेती होती थी जबकि 2.66 लाख हेक्टेयर जमीन बंजर थी लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद खेती का रकबा घटकर सात लाख हेक्टेयर पर आ गया। ऐसे में उत्तराखंड के प्रतिष्ठान संगध पौधा केंद्र देहरादून ने उम्मीद जगाई है।
अगले पांच वर्षों में राज्य में 50 हजार लोगों को सगंध खेती से जोड़ा जाएगा. इसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, मनरेगा, हॉर्टिकल्चर मिशन के साथ ही राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत सगंध खेती को बढ़ावा दिया जाएगा. इसके अलावा एरोमा पार्क भी विभिन्न स्थानों पर तैयार होंगे, जहां किसान संगध खेती से मिलने वाले सगंध तेल जैसे उत्पादों की बिक्री कर सकेंगे।यही नहीं, एरोमा पार्क में स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के दरवाजे भी खुलेंगे।
राज्य में उत्पादित सगंध तेलों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए कैप में एरोमा प्रोसेसिंग सेंटर व परफ्यूमरी प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है। इससे किसानों को विभिन्न प्रकार के सगंध फसलों से तेल निकालने के लिए आसवन सुविधा भी उपलब्ध होगी। वहीं, सगंध तेल आधारित नए उत्पादों को तैयार किया जा सकेगा।
राज्य में सगंध फसलों की खेती में अपार संभावनाएं हैं। किसान बंजर भूमि पर इसकी खेती कर ज्यादा आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। अब किसान एरोमा की क्लस्टर खेती करने के लिए आगे आ रहे हैं। पहले जहां प्रदेश में एरोमा सेक्टर का सालाना टर्न ओवर एक करोड़ था। वहीं, अब 72 करोड़ सालाना पहुंच गया है।