युवा दीप पाठक
कमल दा हां कमल जोशी, कैमरे का चितेरा, यायावर, चिर युवा ऐसे कैसे अचानक चला गया ? वो संजींदा विजनरी जो हर दृश्यमान को पहले ऐंगल कर लेता था जिसकी आंखें बाज सी मेगापिक्सल हद तक जा पहुंचीं थी, वो फोटुक वो नजारे वो रिपोर्ताज… अरे तुमसे उसका वन वे संवाद था, उत्तराखंड के शातिर अज्ञानी, मे बी भोले हो सकते हो, मगर झूठे लोग हो तुम !
उसकी तरफ का राग कभी छेड़ा ? कभी उससे बराबरी की ? कैसे पता होगी तुम्हें उसकी मौत की वजह ? तुम तो हर जिंदा कलाकार को बस उसका सर्कसी बेस्ट देखना चाहते हो ! मुझे घिन्न आती है तुमसे, हां मेरी खरी बात हुई कुछ समय लड़ाई रही फिर मिले और तब लंबे पैदल रास्ते बतियाते चले.. तब उसकी सफेद दाढ़ी या उमर कोई हार्डल न था न मेरा अबूझ लठ्ठमार पन था …. तब कमल दा से जो मेरी बातें हुईं वो कभी लिखूंगा (गोर्की की एक कहानी और मोपांसा की एक कहानी पर बात हुई ) और कुछ ऐसी बातें हुईं जैसी तोलस्तोय और चेखव के बीच हुईं जहां उम्र का लिहाज कर चेखव शर्मा जाते वहीं कमल दा मेरे शलील अशलील सवालों से शर्मा जाता था गोरा तो था ही लाल भी हो जाता था !
खैर अकेले लोगों का जीवन शोणित प्रवाह न तुम समझ सकते हो न समझ पाओगे, मुझे लगभग समझ आ रहा है कमल दा ने क्यूं जीवन को अपने शरीर से निकाल बाहर किया होगा !
कमल दा मैं ने कहा था न “कोनावालोव” या गी-द-मोपांसा तुम्हारा अंत है ! सुन रहे हो ना कमल दा !
नालायक हो तुम ! जब मैं कहता था न तुम फोटो ग्राफर हो न पत्रकार तुम “आउटर” हो ! तब तुमने मुंह खोला था ! कमल भाई बहुत सी बातें हैं भात, दमा, और अपने जीवन के वीराने को न देख दूसरों.को जीवन की राह दिखाना ! तुम जानते थे तुम नेगीदा नी हो, कमल दा हो !
अब नहीं हो तो झगड़ा माफ हुआ , वैसे भी हम दोनों लास्ट टाईम नैनीताल में हीही खीखी कर ही रहे थे …… तब भी कहा था……
“याद कर हमने कहा था तो न माना तू था
तिरे हिजरां में ये लोग आते-जाते मौसम थे
जमाना तू था……..!”