चार दिन पहले हुआ था बेटी का जन्म
पौड़ी सुंदरखाल निवासी 28वर्षीय मनीष जोशी की पत्नी गर्भवती थी। हरिद्वार के सिडकुल में नौकरी करने वाला मनीष संभवतः बड़ा खुश रहा होगा। उसने अपनी प्रसव पीड़ित पत्नी को ज्वालापुर के एक निजी अस्पताल में दाखिल कराया। जैसा कि आजकल चलन है कि डाक्टर मरीज व उसके परिजनों को इस तरह से डरा देते हैं कि अधिकांश बच्चे सिजेरियन ही होते हैं, संभवतः वैसे ही हुआ होगा कि डाक्टरों के रिस्क बताने पर मनीष पत्नी के सिजेरियन आपरेशन के लिए तैयार हो गया होगा।
गत शुक्रवार को उसकी पत्नी रश्मि ने बेटी को जन्म दिया। अब मनीष के सामने वही समस्या थी कि अस्पताल का भारी-भरकम बिल कहां से लाएं? अस्पताल का बिल 50 हजार था, उसे रश्मि व नवजात को सोमवार को डिस्चार्ज कर घर लाना था। लेकिन मनीष शायद पैसे का इंतजाम नहीं कर सका और संभवतः इसी ग्लानि में उसने आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठा लिया। परिजन अस्पताल से रश्मि को डिस्चार्ज करा लाए तो मनीष फांसी पर लटका मिला।
विडम्बना है कि अस्पतालों में मरीज को डाक्टर डराते हैं, उसे ग्राहक की तरह लूटते हैं। गर्भवती महिला के साथ अक्सर ऐसा ही हो रहा है। यह व्यवस्था का दुष्परिणाम है। डाक्टर धरती पर आने वाले नवजात को भी ग्राहक समझता है और उसकी पूरी कीमत वसूलना चाहता है। संभवतः रश्मि और मनीष के साथ भी ऐसा ही हुआ हो, जिसकी कीमत मनीष को जान देकर चुकानी पड़ी। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को इस मामले की जांच करानी चाहिए कि आखिर क्यों मनीष ने जान दी? जबकि गर्भवती महिलाओं के लिए अनेक योजनाएं हैं। क्यों आर्थिक रूप से कमजोर लोग इन योजनाओं का लाभ उठा नहीं पाते, या निजी अस्पतालों के डाक्टर इस कदर तीमारदारों को डरा देते हैं कि वे सरकारी अस्पताल तक पहुंच ही नहीं पाते। ये सब बाते जांच का विषय हैं। यदि लूट-खसोट करने वाले अस्पतालों पर अंकुश नहीं लगा तो कई मनीष और जान देंगे।
