उत्तराखंड

पांडव नृत्य में हुआ चक्रव्यूह का शानदार मंचन

कुलदीप बगवाड़ी
गुप्तकाशी/रुद्रप्रयाग। ल्वारा में चल रहे पांडव नृत्य के तहत गुरुवार को क्षेत्रीय कलाकारों ने चक्रव्यूह का मंचन किया। जिसे स्थानीय लोगों ने खूब सराहा। आगामी 2 जनवरी को मोरी डाली के साथ पांडव नृत्य का समापन होगा।

वास्तव में पांडव नृत्य में औसतन अठारह प्रकार के तालों पर नृत्‍य होता है, जो लोक विधान होते हुए भी, अनूठी शास्त्रीयता लिए है। पांडव नृत्य में सबसे आर्कषक होता है ‘चक्रव्यूह’ नाटक। इस नाटक में महाभारत की उस विख्यात, किंतु विस्मृत कथा का मंचन किया जाता है, जिसमें गुरु द्रोणाचार्य द्वारा रचे गये ‘चक्रव्यूह’ भेदन का प्रकरण अनुस्यूत है। इस मार्मिक कथा-प्रसंग के अनुसार चक्रव्यूह के सातवें द्वार पर आकर कौरवों ने मिलकर अभिमन्यु का वध कर दिया था। चक्रव्यूह के सात द्वार रंग-बिरंगे कपड़ों से बनाए जाते हैं।

गत 2 दिसंबर में ल्वारा में चल रहे पांडव नृत्य में गुरुवार को चक्रव्यूह का मंचन किया गया। जिस में कौरव सेना ने चक्रव्यूह का मंचन कर वीर अभिमन्यु का वध किया। जब अर्जुन दूसरे मोर्च पर लड़ने जाते हैं, तो गुरु द्रोण चक्रव्यूह की रचना करते हैं। पांडव पक्ष में अर्जुन के सिवाए किसी को चक्रव्यूह भेदना नहीं आता था। ऐसी स्थिति में अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेदने का निर्णय लेता है। पांडवों व कौरवों के बीच युद्ध हुआ। सातवें द्वार पर जयद्रथ ने वीर अभिमन्यु का निर्मम हत्या की। जिससे पांडवों एवं वहां उपस्थित जनता के आंखों से आंसू निकल पड़े। इसके बाद अर्जुन ने प्रतिज्ञा की कि कल सूर्यास्त होने से पूर्व जयद्रथ का वध कर देंगे।
चक्रव्यूह में द्रोह, दुर्योधन, शकुनी, कर्ण समेत कईं बड़े महारथी शामिल रहते है

इस मौके पर मुख्य अतिथि बचन सिंह, विशिष्ट अतिथि श्रीमती गीता डोबाल, पांडव नृत्य समिति के अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद शुक्ला, संयोजक वीरेंद्र फरस्वान, महामंत्री देवी प्रसाद शास्त्री, ग्राम प्रधान कैलाश पुरोहित, विष्णु कांत शुक्ला, मुक्की बगवाड़ी, कुलदीप भट्ट, हुकुम सिंह, सुरजीत भट्ट,प् रेम बगवाड़ी , प्रदीप बुटोला, सहित कई ग्रामीण मौजूद रहे।

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