दिवली भणिग्राम में भव्य रामलीला बनी आस्था का केंद्र..
दिवली भणिग्राम में 40 साल बाद गूंजी “जय श्रीराम” की गूंज, भव्य रामलीला बनी आस्था का केंद्र..
सीता स्वयंवर, परशुराम-लक्ष्मण संवाद और रावण-वाणासुर संवाद ने बांधा समां..
संवाददाता- कुलदीप बगवाड़ी
गुप्तकाशी डेस्क। चार दशक बाद दिवली भणिग्राम में श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है। पंचवक्र रामलीला समिति के सौजन्य से 4 नवंबर से शुरू हुई भव्य रामलीला ने पूरे क्षेत्र को राममय बना दिया है।
पहले दिन मंच पर भगवान श्रीराम जन्म का दिव्य और भावनात्मक दृश्य प्रस्तुत किया गया, जिसे देखकर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे। मंदिरों की घंटियां, शंखनाद और “जय श्रीराम” के उद्घोषों से पूरा वातावरण गूंज उठा।
दूसरे दिन मंचित ‘ताड़िका वध’ का दृश्य जहां दर्शकों में रोमांच भर गया, वहीं 6 नवंबर को प्रस्तुत ‘सीता स्वयंवर’ की झांकी ने पूरा मैदान जयकारों से सराबोर कर दिया। भगवान राम द्वारा शिवधनुष तोड़ने के उस क्षण ने भक्तों को भाव-विह्वल कर दिया।
सबसे अधिक तालियां बटोरीं परशुराम और लक्ष्मण संवाद ने। दोनों पात्रों के तीखे संवाद और प्रभावशाली अभिनय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वहीं रावण-वाणासुर महाराज संवाद भी मंचन का विशेष आकर्षण रहा। कलाकारों की सजीव प्रस्तुति और मंच की भव्य साज-सज्जा ने पूरे माहौल को भक्तिमय बना दिया।
पंचवक्र रामलीला समिति के पदाधिकारियों का कहना कि 40 साल बाद यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि गांव की संस्कृति, परंपरा और एकता के पुनर्जागरण का प्रतीक है। आयोजन की सफलता के लिए स्थानीय युवा, महिलाएं और समिति के सदस्य तन-मन से जुटे हुए हैं।
गांव की गलियों में इन दिनों सिर्फ एक ही चर्चा है “दिवली भणिग्राम की रामलीला”! शाम होते ही महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी मंच स्थल की ओर उमड़ पड़ते हैं। हर दृश्य पर जयकारे, हर संवाद पर तालियां मानो पूरा गांव भगवान राम की कथा में डूब गया हो।
आने वाले दिनों में सीता हरण, राम-सुग्रीव मैत्री, और लंका दहन जैसे भव्य प्रसंगों का मंचन होना है, जिसका दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है।
ग्रामीणों का कहना है “इतने सालों बाद हमारे गांव में फिर से भक्ति की गंगा बह रही है, जो हमारी एकता और आस्था का प्रतीक है।”
दिवली भणिग्राम की रामलीला 40 साल के अंतराल के बाद फिर से मंचित हो रही है। यह केवल एक नाट्य प्रस्तुति नहीं है, बल्कि पूरे गांव की सांस्कृतिक पहचान, श्रद्धा और गौरव का पुनर्जागरण प्रतीक बन चुकी है। 40 साल बाद इस रामलीला का आयोजन गांववासियों के लिए पुराने समय की यादें ताज़ा करने और नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का अवसर है। इस आयोजन में बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी मिलकर भाग लेते हैं, जो सामाजिक एकता और सामूहिक उत्साह को बढ़ाता है। यह पुनरुत्थान न केवल मनोरंजन है, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता का भी प्रतीक बन गया है।