उत्तराखंड

पौराणिक धरोहरों के संरक्षण के लिये प्रशासन की नई मुहीम

जिले के 30 युवाओं को दिया जा रहा है ढ़ोल-दमाऊं और मश्कबीन बजाने का प्रशिक्षण
मुख्य विकास अधिकारी डीआर जोशी ने किया कार्यक्रम का उदघाटन
रुद्रप्रयाग। उत्तराखण्ड की परम्परागत धरोहर ढोल-दमाऊं और मश्कबीन के संरक्षण की मुहीम तेज हो गई है। इसके लिये जिले के तीस युवाओं को ढोल-दमाऊं और मश्कबीन बजाने के गुर सिखाये जा रहे हैं। जिला प्रशासन की पैरवी पर युवा कल्याण विभाग एक माह तक युवाओं को इसका प्रशिक्षण दे रहा है।

पहाड़ की पौराणिक संस्कृति और रीति-रिवाज धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। युवा पीढ़ी भी अपनी पौराणिक संस्कृति के प्रति कोई रूझान नहीं दिखा रही है। कभी पहाड़ में ढ़ोल-दमाऊं और मश्कबीन का खूब प्रचलन था। शादी-विवाह से लेकर हरेक शुभ कार्य में ढोल-दमाऊं को उपयोग में लाया जाता था, लेकिन आज ढोल-दमाऊं की जगह बैंड ने ले ली है। कम ही शादियों में ढ़ोल-दमाऊं देखे जाते हैं। ढ़ोल-दमाऊं के संरक्षण के लिये जिला प्रशासन आगे आया है। प्रशासन की पहल पर युवा कल्याण विभाग ने जिले के युवाओं के लिये एक माह का प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया है। अगस्त्यमुनि में कार्यक्रम का उदघाटन करते हुये मुख्य विकास अधिकारी डीआर जोशी ने कहा कि पहाड की पारम्परिक धरोहर को विकसित करने के लिए युवाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इससे यात्रा काल में देश-विदेश से आने वाले पर्यटक, श्रद्धालु पहाड़ की संस्कृति से रूबरू हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि ढ़ोल का पौराणिक इतिहास रहा है।

खासकर पहाड़ों में ढ़ोल की पूजा भी की जाती है। आज युवा पीढ़ी इस दिशा में कोई रूचि नहीं दिखा रही है, लेकिन प्रशासन की मंशा है कि पौराणिक धरोहरों को जिंदा रखा जाय। जिला युवा कल्याण अधिकारी केएन गैरोला ने बताया कि जिले के 30 युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि ढोल का प्रशिक्षण ग्राम चाका के मधुलाल, दमाऊं का ग्राम दानकोट के कमल लाल, मश्कबीन का ग्राम सौड़ भटगांव के मदनलाल और कैशियो का ग्राम खांकरा के शरद लाल द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षकों को पांच हजार मानदेय के रूप में दिया जायेगा। इस मौके पर कैम्प कमाडेन्ट जगमोहन रावत, सहायक कैम्प इंचार्ज मनोज वजवाल, प्रधान सहायक देवेन्द्र बिष्ट सहित अन्य मौजूद थे।

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