उत्तराखंड

भगवान मद्महेश्वर का प्राकृतिक स्त्रोत पर पानी गायब

स्त्रोत पर पानी गायब होने से श्रद्धालु हैरान, परम्पराओं से छेड़छाड़ माना जा रहा कारण
भूकंप एवं दैवीय आपदा में भी नहीं हुई स्त्रोत को क्षति

रुद्रप्रयाग। द्वितीय केदार भगवान मदमहेश्वर के नाम से विख्यात जलधारा के मूल प्राकृतिक स्त्रोत पर बरसात लगते ही पानी के गायब होने से श्रद्धालु हैरान हैं। प्राकृतिक स्त्रोत पर पानी के गायब होने का मुख्य कारण प्रकृति से छेड़छाड़ माना जा रहा है तो कोई भगवान मदमहेश्वर की परम्परा से छेड़छाड़ बता रहा है। आस्था के नाम से विख्यात प्राकृतिक स्त्रोत में बरसात शुरू होते ही जलधारा के गायब होने से तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गरम है। इस भविष्य के लिए भी अशुभ माना जा रहा है।

लोक मान्यताआंे के अनुसार आज से लगभग अस्सी वर्ष पूर्व स्थानीय निवासी ईलमदास द्वारा ब्राह्नमणखोली के पालियाणा तोक में मकान बनाया गया था, जिस स्थान पर उन्होंने मकान बनाया उसके आस-पास कहीं पानी का स्त्रोत नहीं था। ज्येष्ट माह में जब भगवान मदमहेश्वर की डोली अपने शीतकालीन गद्दी स्थल आंेकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से ब्राह्नमणखोली के पालियाणा तोक पहुंची तो ईलमदास ने भगवान मदमहेश्वर की डोली से पानी देने की गुहार लगाई। ईलमदास की विनती पर भगवान मदमहेश्वर की डोलीे ने पैदल मार्ग के ऊपरी हिस्से पर बने खेत के ऊपरी किनारे पर अपने छत्र से पानी की जलधारा को प्रकट किया। भगवान मद्महेश्वर की डोली के छत्र से जलधारा के प्रकट होने से यह जलधारा भगवान मदमहेश्वर के नाम से विख्यात हुई। इस जलधारा का जल स्तर बरसात हो या भीषण गर्मी में भी समान रहता था।

भगवान मदहेश्वर की डोली के ऊखीमठ से धाम रवाना होने और धाम से ऊखीमठ आते वक्त डोली की अगुवाई करने वाले श्रद्धालु इस जलधारा पर भगवान मदमहेश्वर के महात्यम की आचमन करते थे तथा डोली के धाम जाने व धाम से वापस आने पर जलधारा को पुष्पों से सजाकर विशेष पूजा की जाती थी। नवम्बर 1991 व 28 मार्च 1999 को आये भूकम्प से भी जलधारा प्रभावित नहीं हुई थी। 13 सितम्बर 2012 की दैवीय आपदा में जलधारा मात्र एक फिट की दूरी से अलग हो गयी थी। बरसात शुरू होते ही जलधारा से पानी के गायब होने से भगवान मदमहेश्वर का श्रद्धालु हैरत में है। जलधारा के सूखने से जनता इसे भगवान मदमहेश्वर की परम्पराओं व प्रकृति से छेड़छाड़ मान रही है। श्रद्धालुआंे ने जलधारा के मूल स्त्रोत पर खुदाई व हवन कर पानी ढूढ़ने का भी प्रयास किया, मगर पानी नहीं मिल पाया। मंगोली के पूर्व प्रधान राय सिंह धम्र्वाण, निवर्तमान सभासद बलवन्त रावत ने कहा कि बचपन से लेकर आज तक जलधारा का जलस्तर बारह महीनों तक समान देखा। 80 वर्षो बाद जलधारा से पानी का गायब होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है।

आयुर्वेदिक फार्मेसी विद्यापीठ के प्रधानाचार्य डाॅ हर्षवर्द्धन बैंजवाल ने कहा कि धार्मिक व प्राकृतिक परम्पराओं से छेड़खानी करना इसका मुख्य कारण है।

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