किसाऊ और लखवाड़ परियोजनाओं की निगरानी गृह मंत्रालय ने संभाली..
नए साल में काम में बढ़ोतरी की उम्मीद..
उत्तराखंड: उत्तराखंड की दो बहुप्रतीक्षित और महत्वाकांक्षी बहुद्देशीय परियोजनाओं किसाऊ और लखवाड़ को नए साल में नई गति और दिशा मिलने के संकेत हैं। इन दोनों परियोजनाओं की जिम्मेदारी अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने हाथ में ले ली है। मंत्रालय स्तर पर लगातार समीक्षा बैठकें की जा रही हैं, जिससे यह साफ है कि केंद्र सरकार इन परियोजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए गंभीर है। जानकारी के अनुसार किसाऊ बांध परियोजना की संशोधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) अब पूरी तरह तैयार कर ली गई है। यह परियोजना उत्तराखंड के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों के लिए भी जल, बिजली और सिंचाई के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। किसाऊ परियोजना का इतिहास करीब आठ दशक पुराना है। वर्ष 1940 के दशक में इस परियोजना का बीजारोपण किया गया था।
इसके बाद 1996 में पहली डीपीआर तैयार हुई, लेकिन पर्यावरणीय आपत्तियों, तकनीकी अड़चनों और अन्य कारणों से परियोजना आगे नहीं बढ़ सकी। वर्ष 2008 में केंद्र सरकार ने किसाऊ परियोजना को ‘राष्ट्रीय परियोजना’ का दर्जा दिया। इसके बाद नई डीपीआर तैयार करने का निर्णय लिया गया, लेकिन विभिन्न कारणों से यह प्रक्रिया भी ठंडे बस्ते में चली गई। अंततः वर्ष 2021 में संशोधित डीपीआर तैयार करने का फैसला लिया गया, जिस पर अब जाकर काम पूरा हो पाया है। तैयार की गई संशोधित डीपीआर के अनुसार किसाऊ बहुद्देशीय परियोजना पर लगभग 15 हजार करोड़ रुपये की लागत आएगी। परियोजना के पूरा होने पर न केवल जल विद्युत उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि सिंचाई, पेयजल और बाढ़ नियंत्रण जैसे अहम क्षेत्रों में भी इसका बड़ा लाभ मिलने की उम्मीद है।
बता दे कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा की जा रही नियमित समीक्षा बैठकों में लखवाड़ परियोजना को लेकर भी तेजी से निर्णय लिए जा रहे हैं। दोनों परियोजनाओं को नए साल में मूर्त रूप देने की दिशा में केंद्र और राज्य सरकार मिलकर रोडमैप तैयार कर रही हैं।विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ये दोनों परियोजनाएं समयबद्ध तरीके से पूरी होती हैं, तो इससे उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति, ऊर्जा उत्पादन और जल प्रबंधन को मजबूत आधार मिलेगा, साथ ही रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे।
गुरुवार देर शाम गृह मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। बैठक में यूजेवीएनएल (उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड) और किसाऊ कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक डॉ. संदीप सिंघल सहित संबंधित विभागों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए। सूत्रों के अनुसार केंद्रीय गृह मंत्रालय की मंशा इस परियोजना को जल्द से जल्द निर्माण चरण में लाने की है, ताकि दशकों से लंबित यह महत्वाकांक्षी योजना धरातल पर उतर सके।
बताया गया कि किसाऊ बांध परियोजना की संशोधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) को अंतिम रूप दे दिया गया है और इसे स्वीकृति के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। डीपीआर के अनुमोदन के बाद परियोजना को पर्यावरणीय स्वीकृतियों सहित अन्य आवश्यक मंजूरियां प्राप्त करनी होंगी। इसके बाद निर्माण कार्य शुरू किए जाने का रास्ता साफ हो जाएगा। किसाऊ परियोजना को टिहरी बांध के बाद एशिया की दूसरी सबसे बड़ी बहुउद्देशीय परियोजना माना जा रहा है। इसके निर्माण से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुल 17 गांव जलमग्न होंगे, जिससे लगभग एक हजार परिवारों का विस्थापन होगा। इसको लेकर पुनर्वास और मुआवजा नीति पर भी समानांतर रूप से कार्य किए जाने की तैयारी है। परियोजना के पूरा होने के बाद इससे 660 मेगावाट जलविद्युत उत्पादन किया जाएगा, जिससे उत्तराखंड की ऊर्जा क्षमता को बड़ा बल मिलेगा।
इसके साथ ही यह परियोजना सिंचाई के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी साबित होगी। इसके माध्यम से उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध कराया जा सकेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, किसाऊ परियोजना के माध्यम से यमुना नदी में सालभर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी, जिससे जल संकट और नदी में घटते जलस्तर की समस्या को काफी हद तक दूर किया जा सकेगा। साथ ही बाढ़ नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति और क्षेत्रीय विकास को भी इससे मजबूती मिलेगी। केंद्र और राज्य सरकार की सक्रियता से यह स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि करीब आठ दशकों से अटकी किसाऊ परियोजना अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। यदि सभी स्वीकृतियां समयबद्ध तरीके से मिलती हैं, तो आने वाले वर्षों में यह परियोजना उत्तराखंड के विकास की दिशा और दशा दोनों बदलने में अहम भूमिका निभा सकती है।
लखवाड़ छह राज्यों को देगी सिंचाई-पीने का पानी..
लखवाड़ परियोजना का प्रमुख निर्माण स्थल देहरादून के लोहारी गांव के पास यमुना नदी पर 204 मीटर ऊंचे कंक्रीट बांध के रूप में होगा। इस बांध की जल संग्रहण क्षमता 330.66 मिलियन क्यूबिक मीटर होगी। परियोजना के पूरा होने के बाद लगभग 33,780 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई संभव हो सकेगी, जिससे क्षेत्र के किसानों को वर्षभर पर्याप्त पानी उपलब्ध होगा। इसके साथ ही परियोजना के माध्यम से यमुना बेसिन क्षेत्र के छह राज्यों में घरेलू, औद्योगिक और पीने के लिए 78.83 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध कराया जाएगा। इससे जल संकट को काफी हद तक कम करने में मदद मिलेगी। ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भी परियोजना अहम भूमिका निभाएगी।
लखवाड़ परियोजना से जुड़े व्यासी परियोजना के माध्यम से यूजेवीएनएल ने पहले ही 120 मेगावाट बिजली उत्पादन शुरू कर दिया है। पूर्ण लखवाड़ परियोजना के बाद इससे और अधिक बिजली उत्पादन संभव होगा, जो उत्तराखंड की ऊर्जा जरूरतों और क्षेत्रीय विकास के लिए महत्वपूर्ण होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि लखवाड़ परियोजना सिंचाई, जल आपूर्ति और विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में राज्य के विकास को नई दिशा देगी। साथ ही यमुना बेसिन में पानी की उपलब्धता और बाढ़ नियंत्रण के लिए यह परियोजना एक अहम संसाधन साबित होगी।