उत्तराखंड

रुद्रप्रयाग की केदारघाटी में एक अजब पाठशाला 

 पाठशाला में रहते हैं विभिन्न राज्यों के बच्चे और युवा 

परिवार से दूर रहकर जीवन को बना रहे सार्थक 

रोहित डिमरी 

रुद्रप्रयाग। आज हम आपको एक ऐसी पाठशाला के बारे बतायेंगे, जिसके बारे में आपने शायद ही कभी सुना होगा। इस पाठशाला में चार साल के बच्चे से लेकर चालीस साल तक के युवा रहते हैं, जो हंसी-खुशी पढ़ाई-लिखाई के साथ खेलकूद और संगीत का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। अपने मन को एकाग्र करते हुए ये सभी ध्यान करते हैं। परिवार से कोसों दूर रहकर अपने जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इनकी माने तो अगर मनुष्य के रूप में जन्म लिया है, तो उसके जीने का सलीखा भी जरूरी है।

जनपद के केदारघाटी क्षेत्र के खुमेरा गांव में यह पाठशाला खोली गई है, जिसे स्पेस फाॅर नरचरिंग क्रिएविटी (श्यामा वन) का नाम दिया गया है। इसकी नीव क्षेत्रीय निवासी अर्चना बहुगुणा ने वर्ष 2009 में रखी। इसका उद्देश्य यह कि बच्चों का बौद्धिक विकास करने के साथ ही उनका पालन-पोषण कर उन्हें रचनात्मक कैसे बनाया जा सकता है। यहां रह रहे बच्चों में सबसे कम उम्र का चार साल का बच्चा आशू है, जो उत्तर प्रदेश से आया है। उसके परिवार जन उसे यहां छोड़कर गये, जिससे उनके बच्चे को बचपन से ही समाज में जीने का सलीखा आ सके और वह एक अच्छा इंसान बनकर अपनी पहचान बना सके।

श्यामा वन पाठशाला में पढ़ाई-लिखाई का अलग ही तरीका है। संभवतः यह एक ऐसी पाठशाला है, जो शायद ही कहीं पर देखी जा सकती है। पाठशाला में अलग-अलग राज्यों के बच्चों के साथ ही युवा भी शामिल हैं। इसके अलावा पाठशाला में समय-समय पर स्वयं सेवक भी उपस्थित होकर अपना ज्ञान बांटते हैं और कुछ समय यहां पर व्यतीत करते हैं। देश-विदेश से पहुंचे स्वयंसेवी बच्चों के साथ हंसी-मजाक के साथ ही पढ़ाई-लिखाई करते हैं और उन्हें समाज से जुड़ी हुई जानकारियां उपलब्ध करवाते हैं।

पाठशाला में उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड, राजस्थान से लेकर अन्य राज्यों के बच्चे और युवा रह रहे हैं। उनकी जिस चीज में रूचि है, उन्हें उसी में दक्ष करवाया जाता है। स्वयं छात्र भी उस फील्ड में काफी मेहनत करते हैं। पाठशाला में संगीत का ज्ञान भी सिखाया जाता है तो सुबह के समय योगाभ्यास भी करवाया जाता है। इसके अलावा अंग्रेजी, गणित का ज्ञान भी प्रैक्टिकल के जरिये समझाई जाती हैं। बच्चों और युवाओं को फलदार वृक्षों की छांव तले पठन-पाठन करवाया जाता है।

पाठशाला को देखकर हर कोई व्यक्ति पहले तो हतप्रभ रह जाता है, बाद में पाठशाला की बारीकियों को जानने के बाद काफी खुश नजर आता है। देश-विदेश से पर्यटक भी इस पाठशाला के दीदार को पहुंचते हैं। प्रकृति की गोद में बसे पाठशाला के बच्चे अन्य बच्चों से काफी अलग हैं। बच्चे अपनी पढ़ाई-लिखाई के साथ ही पर्यावरण को भी बचाने में लगे हैं। उनकी माने तो पर्यावरण सुरक्षित रहने से ही प्रकृति भी सुरक्षित रहेगी।

पाठशाला में सुबह के समय योगाभ्यास भी किया जाता है। सूर्य नमस्कार के साथ ही सभी योग की अलग-अलग क्रियाओं को करते हैं। इससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास हो रहा है। यहां रह रहे बच्चे पाठशाला में हो रही गतिविधियों में इतना खो जाते हैं कि उन्हें अपने घरों की याद भी नहीं आती है। समय के साथ-साथ वे अपने को एक अच्छा इंसान बनाना चाहते हैं।

सोचनीय विषय यह है कि यह पाठशाला किसी सरकारी व प्राईवेट संस्थाओं की मदद के बगैर व्यवस्थित तरीके से संचालित हो रही है। यहां रह रहे बच्चों और अन्वेषकों को किसी सरकारी मदद की भी आवश्यकता नहीं है। वे बस इतना चाहते हैं कि जो भी बच्चा यहां आये, वह यहां से बेहतर इंसान बनकर जाय। केदारघाटी में खोली गई इस पाठशाला से क्षेत्र के लोगों में भी काफी खुशी है। जो बच्चे बचपन से ही अपने को स्थापित करने में लगे हैं, वे भविष्य में अवश्य ही एक नया आयाम स्थापित करेंगे, ऐसा क्षेत्र की जनता का भी मानना है।

श्यामा वन में अल्टरनेटिव एजुकेशन की ओर बच्चों का ध्यान आकर्षिक किया जा रहा है। उन्हें बताया जाता है कि वे जिस चीज में रूचि रखते हैं, उसके जरिये आगे बढ़ सकते हैं। ऐसा नहीं है कि उन पर दबाव बनाकर शिक्षा करवाई जाय। पढ़ाई के साथ संगीत और योग की भी शिक्षा दी जा रही है।

श्यामा वन का उद्देश्य है कि बाल्यकाल से ही बच्चे को अपने जीवन का अर्थ पता चले कि वह क्या है और आगे चलकर उसे क्या करना है। अगर वह डाॅक्टर बनना चाहता है तो पहले एक अच्छा इंसान बने। अच्छा इंसान बनकर ही वह सोसायटी को सही रास्ता दिखा सकता है। रोजगार के लिए गांवों से पलायन होता जा रहा है। अगर क्षेत्र में ही रोजगार के संसाधन उपलब्ध कराये जांय, संभवतः पलायन पर भी अंकुश लगेगा। क्षेत्रीय लोगों को जागरूक करते हुए कृषि और कुटीर उद्योग की ओर प्रोत्साहित किया जा रहा है। संस्था की मदद कोई भी प्राईवेट संस्था या सरकार नहीं करती है। देश-विदेश के स्वयं सेवक यहां पहुंचते है, जो संस्था की मदद भी करते हैं।

जया बहुगुणा, सह अन्वेषक  

श्यामा वन पाठशाला में आकर बहुत अच्छा लगा। स्वयंसेवक के तौर पर यहां रहकर अंग्रेजी का ज्ञान दे रहा हूॅं। कुछ समय सेवा देने के बाद यहां से निकल जाऊंगा। पाठशाला में सभी परिवार की तरह हैं, जो आपस में हंसी-खुशी रहते हैं। यह देखकर भी बहुत अच्छा लगता है। पहाड़ों में शांति का माहौल है और शांत माहौल में योग, संगीत और अन्य गतिविधियां अच्छे से संचालित हो सकती हैं।

अनुज उपाध्याय 

स्वयंसेवक, मध्य प्रदेश 

जनपद में अगर इस तरह का कार्य किया जा रहा है तो यह सराहनीय प्रयास है। बाल्यकाल में ही छात्र को अपनी नैतिकता की जिम्मेदारी होना, संस्था की सोच को दर्शाता है। केदारघाटी में श्यामा वन में बच्चे से लेकर चालीस वर्ग का युवा योग और साधना कर रहा है। बिना किसी सहयोग के ऐसा किया जाना अपने आप में एक बड़ी मिसाल है।

 

मंगेश घिल्डियाल, जिलाधिकारी

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