कौवों की कम उपस्थिति और घटती संख्या बेहद चिंताजनक।
संजय चौहान।
पौराणिक मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में कौवे दिवंगत परिजनों के हिस्से का खाना खाते हैं, तो पितरों को शांति मिलती है और उनकी तृप्ति होती है। श्राद्ध के दिनों में इस पक्षी का महत्व बढ़ जाता है। यदि श्राद्ध के दिनों में यह घर की छत का मेहमान बन जाए, तो इसे पितरों का प्रतीक और दिवंगत अतिथि स्वरुप माना गया है।
लेकिन पितृ दूत कहलाने वाले कौवे आज गांव से लेकर शहरों में यदा कदा ही नजर आते। बढ़ते शहरीकरण, पेड़ों की कटाई और ऊंची इमारतों के कारण प्रकृति का जो ह्रास हुआ है, उसने कौवों की संख्या को कम कर दिया है। जहाँ श्राद्ध के समय घर गाँव से लेकर शहरों में कौवों की भरमार दिखाई देती थी वहीं आज इनके दर्शन ही दुर्लभ हो गये हैं। जो कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी चिंताजनक हैं।
मान्यतानुसार यह पक्षी यमराज का दूत होता है। जो श्राद्ध में आकर अन्न की थाली देखकर यम लोक जाकर हमारे पितृ को श्राद में परोसे गए भोजन की मात्रा और खाने की वस्तु को देखकर हमारे जीवन की आर्थिक स्थिति और सम्पन्नता को बतलाता है। जिसको जानकार पितृ को संतुष्टि होती है और उनकी आत्मा को शान्ति मिलती है। अपने वंशज के खानपान देखकर पितृ को वर्तमान पीढ़ी के सुखी जीवन का आभास होता है। जिसको सुनकर पितृ संतुष्ट और खुश होते है। इसलिए श्राद्ध कर्म विधि में कौवें भोजन दिया जाता है.
जबकि शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि कौवा एक मात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ-दूत कहलाता है। यदि दिवंगत परिजनों के लिए बनाए गए भोजन को यह पक्षी चख ले, तो पितृ तृप्त हो जाते हैं। इसीलिए श्राद्ध पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा से पकवान बनाकर कौओं को भोजन कराते हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों ने कौए को देवपुत्र माना है और यही वजह है कि हम श्राद्ध का भोजन कौओं को अर्पित करते हैं।
वहीं प्राचीन ग्रंथो और महाकाव्यों में इस कौवे से जुड़ी कई रोचक कथाएँ और मान्यताएं भी लिखी हुई है। पुराणों में भी कौवों का बहुत महत्व बताया गया है। पुराणों के अनुसार कौवों की मौत कभी बीमारी से या वृद्ध होकर नहीं होती है। कौवे की मौत हमेशा आकस्मिक ही होती है और जब एक कौआ मरता है, तो उस दिन उस कौवे के साथी खाना नहीं खाते है। कौवे की खासियत है कि वह कभी भी अकेले भोजन नहीं करते है। वह हमेशा अपने साथी के संग मिल बांटकर ही भोजन करता है।
वास्तव में जिस तरह से श्राद्ध पक्ष में पित्रों के प्रतिनिधि ‘कौवे’ की कम उपस्थिति और घटती संख्या साफ दिखाई दे रही है वह बेहद चिंताजनक है। इसलिए समय रहते पक्षी प्रेमियों से लेकर शोधार्थियों और सरकार को इस दिशा में गंभीर प्रयास प्रयास करने होंगे। तब कहीं जाकर हम पित्रों के इस प्रतिनिधि को लुप्त होने से बचा पायेंगे।