उत्तराखंड

एनआईटी के लिए जनता ने आंदोलन चलाने पर कर दिये छह लाख खर्च

12 फरवरी 2012 से प्रगतिशील जनमंच चला रहा आंदोलन

खिर्सू और श्रीनगर की जनता कर रही छह सालों से आंदोलन

तीन बार भूख-हड़ताल भी कर चुके आंदोलनकारी

जून 2017 से मई 2018 तक आंदोलन चलाने में हुए 1 लाख 85 हजार रूपये खर्च

श्रीनगर। मनमोहन सिंधवाल

वर्ष 2009 में तत्कालीन सीएम डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक के कार्यकाल में उत्तराखंड को केन्द्र सरकार ने एनआईटी का तोफहें के रूप में दी थी। जिसे पंथ्या दादा के गांव सुमाड़ी के नाम से स्वीकृत कराया गया था, किंतु आज आठ साल गुजरने के बाद भी सुमाड़ी क्षेत्र में एनआईटी के नाम पर मात्र चार दीवारी ही बनी है। जबकि एनआईटी निर्माण के लिए प्रगतिशील जनमंच आंदोलन करते-करते छह साल बीता चुके है। आपसी सहयोग से एनआईटी आंदोलन को चलाने के लिए जनमंच ने छह साल में छह लाख का खर्चा कर दिया, किंतु एनआईटी बनाने का सपना आज भी अधूरा है।

उत्तराखंड में एनआईटी की स्वीकृत सुमाड़ी के नाम से हुई थी, किंतु सुमाड़ी क्षेत्र में आज तक एनआईटी का स्थाई कैंपस तैयार नहीं हो पा रहा है। सुमाड़ी क्षेत्र में एनआईटी न बनने के कारण 12 फरवरी 2012 से राज्य आंदोलनकारी अनिल स्वामी के नेतृत्व में लगातार एनआईटी के लिए आंदोलन चल रहा है। किंतु एनआईटी के लिए आंदोलन का सफर अभी तक थम नहीं पाया है। हालांकि आंदोलन को देखते हुए कांग्रेस शासनकाल में 19 फरवरी 2014 को एनआईटी निर्माण का शिलान्यास हुआ था, किंतु शिलान्यास के बाद मात्र चार दीवारी के अलावा कुछ भी कार्य नहीं हुआ। जहां बजट के अभाव में एनआईटी लटकी रही, वहीं अब एनआईटी भू-गर्भीय रिपोर्ट से लेकर जमीन संबंधी मामले में लटकी पड़ी है। खिर्सू और श्रीनगर की जनता के सहयोग से आंदोलन लगातार चल रहा है, जिसमें पहली बार 7 दिन, दूसरी बार 10 दिन तथा तीसरे बाद 9 दिन भूख-हड़ताल भी की, किंतु आंदोलनकारियों को मात्र कोरे ही आश्वासन मिले है। आज आठ वर्ष गुजरने के बाद भी स्थाई कैंपस न बनने के कारण एनआईटी की सीटें भी घटा दी गई है। एनआईटी के साथ ही श्रीनगर के लिए शुद्ध , संयुक्त अस्पताल में स्थाई डॉक्टरों की तैनाती भी मंच की मुख्य मांग है। जिस पर भी आंदोलन के बाद ही काम हो रहे है।

आंदोलन पर खर्च होने का व्यौरा निकालते जनमंच

आंदोलनकारियों द्वारा प्रत्येक साल आंदोलन पर होने वाले खर्चे का व्यौरा पंपलेट के माध्यम से जनता को सम्मुख रखते है। यहीं नहीं आंदोलन में धनराशि के रूप में सहयोग करने वालों का भी नाम प्रकाशित पंपलेट में किया जाता है। जून 2017 से मई 2018 के बीच जनमंच का कुल 1 लाख 85 हजार रूपये आंदोलन में खर्च हुए। जिसमें 2 सितम्बर को निकाली गई रैली में लगभग 35 हजार, यात्रा व्यय में 34 हजार, पोस्टर, अपील, फ्लैक्स में 26 हजार, लेवर व टेंट खर्चे पर 28 हजार रूपये खर्च दिखाये है। जबकि आंदोलन के दौरान फोटो स्टेट, टाइप, स्टेशनरी, लिफाफे, डाक, फैक्स, मशाल बनाने पर भी खर्चा प्रकाशित किया गया है।

स्थानीय लोगों की मदद से आंदोलन ही नहीं आंदोलन चलाने के लिए सहयोग भी किया जा रहा है। जबकि तक एनआईटी का निर्माण शुरु नहीं हो जाता है, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। अभी तक छह सालों में 6 लाख रूपये आंदोलन चलाने पर खर्च हो चुका है। एक साल के भीतर ही 1 लाख 85 हजार रूपये खर्च हो चुके है। जन आंदोलन की बाद भी एनआईटी जैसे मुद्दे पर सरकार गंभीर नहीं है। आठ साल गुजरने के बाद भी एनआईटी न बनना प्रदेश के लिए शर्म की बात है। अब तक एमएचआरडी ने 50 प्रतिशत सीटें भी कम कर दी है। यदि सरकार को जरा भी चिंता होती तो एचआरडी ऐसा कदम नहीं उठाती है। अभी भी समय है, एनआईटी का निर्माण जल्द शुरु करे सरकार। ——अनिल स्वामी, अध्यक्ष, प्रगतिशील जनमंच श्रीनगर।

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