उत्तराखंड

क्या अस्पताल बेचने और शराब वालों की पैरवी करने के लिए ही डबल इंजन की सरकार मांग रहे थे आप लोग?

इन्द्रेश मैखुरी

उत्तराखंड की भाजपा सरकार जो डबल यानि दो इंजन वाली बतायी जा रही है,उसके इंजन दो हैं कि नहीं पता नहीं,पर राज्य वो दोनों हाथों से लुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.स्कूलों को बंद करने की खबर तो आये दिन अखबारें में आ ही रही हैं.लगता है प्लस-माइनस वाले मंत्री को ज्यादा गणित-केमिस्ट्री नहीं करना पड़े,इसलिए उन्होंने स्कूलों पर ही ताला लगाने की ठान ली है.न रहेंगे स्कूल,न होगा,गणित-केमिस्ट्री में अलग-अलग प्लस-माइनस !

पर ताला लगाने का यह फार्मूला सिर्फ स्कूलों तक सीमित नहीं है.बल्कि अस्पतालों को भी बेचने का कारोबार सरकार ने शुरू कर दिया है.आज के अखबार में खबर है कि पौड़ी का सरकारी अस्पताल,डबल इंजन वालों ने दोनों हाथ से हिमालयन अस्पताल, जॉलीग्रांट (देहरादून) को देने का फैसला कर लिया है. यह सही बात है कि उत्तराखंड में चिकित्सा व्यवस्था की हालत खराब है.खास तौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में तो ज्यादातर अस्पतालों में डाक्टर दिखाने मात्र को भी नहीं है. यह 17 सालों के राज्य में भाजपा-कांग्रेस के अदल-बदल राज का पुरूस्कार है कि पहाड़ के अस्पतालों में डाक्टर दुर्लभ प्रजाति के जीव हो गए हैं.आये दिन,लोगों के इलाज के अभाव में दम तोड़ने के किस्से आम हैं.

सरकार का मूलभूत काम तो यही है कि सरकार सडक, बिजली, पानी, अस्पताल, शिक्षा, रोजगार उपलब्ध करवाए. लेकिन उत्तराखंड में भाजपा-कांग्रेस की सरकारें, लगता है कि सरकार होने के चलते,मिलने वाली सभी सुख-सुविधाएं तो भोगना चाहते है,अपने सारे चेले-चपाटों को भोगवाना चाहती हैं. लेकिन ये चाहते हैं कि सरकार हो कर, जो मूलभूत दायित्व निभाने है,वो भी कोई और निभा दे.त्रिवेंद्र सिंह रावत साहब इस मामले में ज्यादा ही कमाल हैं.

विधानसभा में अपने हिस्से के प्रश्नों का उत्तर देने की जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने मंत्रियों को आउटसोर्स कर दिए.श्रीनगर का मेडिकल कॉलेज और अल्मोड़ा का निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज,रावत साहब ने सेना को देने की घोषणा कर दी थी.वो तो सेना ने इन्हें लेने से इंकार कर दिया वरना रावत साहब तो मेडिकल कॉलेज चलाने का जिम्मा, सेना के मत्थे मढने को ही अपनी उपलब्धि बता रहे थे !

सरकार अस्पताल को सेना को देना चाहती हैं,जॉली ग्रांट वालों के हवाले करना चाहती है. लेकिन खुद किसी हाल में नहीं चलाना चाहती. इसके पीछे तर्क यह है कि सरकार के कहने से पहाड़ी अस्पतालों में डाक्टर नहीं चढ़ रहे हैं. तो इन निजी क्षेत्र वालों के पास कोई चमत्कारिक लिफ्ट है, जिसमे बैठा कर ये डाक्टरों को पहाड़ चढ़ा देंगे? पहाड़ में ढेर सारे अस्पताल अभी भी तो पी.पी.पी. मोड में चल रहे हैं. तो क्या ये अस्पताल सफल है. जी नहीं पी.पी.पी.मोड वाले अस्पताल तो फर्जीवाड़े के अड्डे हैं, जो पी.पी.पी. के नाम पर सार्वजनिक धन को ही पी रहे हैं. यह पी.पी.पी. मॉडल,पहले से ही एक विफल मॉडल है. फिर इसे क्यूँ थोपा जा रहा है?

लगता है कि जॉली ग्रांट वाले अस्पताल पर सरकार बहादुर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है.अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश का बयान अखबारों में छपा है कि जॉलीग्रांट के अस्पताल वाले, डोईवाला(देहरादून) के सरकारी अस्पताल को भी चला रहे हैं. अब पौड़ी वाला भी चलाएंगे.

इस डोईवाला के अस्पताल का किस्सा भी बड़ा रोचक है. फिलहाल ‘फसक चर्चा’ के चलते चर्चा में आये हरीश रावत ने इस डोईवाला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को मुख्यमंत्री रहते हुए ट्रामा सेण्टर बनाने की घोषणा की थी. लेकिन बताते हैं कि ऊपर वर्णित अफसर ने ही ट्रामा सेंटर के बजाय, डोईवाला के अस्पताल को जॉलीग्रांट वालों के हवाले की चिट्ठी चला दी. इस तरह अफसर बाबु के प्रताप से हरीश रावत दाज्यू के घोषणा, ‘फसक’ बन गयी थी. डोईवाला के बाद अब अगर पौड़ी के सरकारी अस्पताल को भी एक निजी अस्पताल को देने की तैयारी है तो यह मरीजों की चिंता नहीं बल्कि कोई और ही खेल प्रतीत होता.

सरकार के इंजन कितने हैं,इससे ज्यादा जरुरी यह है त्रिवेंद्र रावत साहब कि सरकार का काम क्या है? अगर सरकार स्कूल, अस्पताल नहीं चलाएगी तो करेगी क्या?केवल सुप्रीम कोर्ट में शराब वालों की पैरवी करने जायेगी? क्या लोगों से अस्पताल बेचने और शराब वालों की पैरवी करने के लिए ही डबल इंजन की सरकार मांग रहे थे आप लोग?

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