उत्तराखंड

फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र से नियुक्ति घोटाला, अब चिकित्सकों पर भी गिरेगी गाज..

फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र से नियुक्ति घोटाला, अब चिकित्सकों पर भी गिरेगी गाज..

 

 

उत्तराखंड: उत्तराखंड में शिक्षा विभाग में दिव्यांगता के फर्जी प्रमाणपत्र के सहारे नौकरी पाने का बड़ा मामला सामने आया है। विभागीय जांच में खुलासा हुआ है कि 51 शिक्षक संदिग्ध प्रमाणपत्रों के आधार पर नियुक्त हुए, जिनके प्रमाणपत्र विभिन्न चिकित्सकों द्वारा जारी किए गए थे। अब इस पूरे प्रकरण में चिकित्सक भी जांच के घेरे में आ गए हैं। माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी संबंधित शिक्षकों को नोटिस जारी किया है। उन्हें 15 दिन के भीतर अपने-अपने प्रमाणपत्र से जुड़े साक्ष्य प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया है कि निर्धारित समय में जवाब न देने या संतोषजनक साक्ष्य प्रस्तुत न करने पर आगे की कठोर कार्रवाई तय है। जांच में सामने आया है कि संदिग्ध शिक्षकों को चलन क्रिया (Locomotor Disability), दृष्टिदोष (Visual Impairment) और अस्थि दोष (Orthopedic Disability) के आधार पर प्रमाणपत्र जारी किए गए थे। विभाग का कहना है कि अब प्रत्येक प्रमाणपत्र की सत्यता की जांच होगी और किस चिकित्सक ने इन्हें जारी किया, इसकी पूरी पड़ताल की जाएगी। सूत्रों के अनुसार विभाग पूरे प्रकरण को गंभीर प्रशासनिक अनियमितता मानते हुए व्यापक स्तर पर कार्रवाई की तैयारी कर रहा है, ताकि भविष्य में ऐसी फर्जीवाड़े की घटनाओं पर रोक लगाई जा सके।

उत्तराखंड शिक्षा विभाग में दिव्यांगता कोटे के तहत नियुक्तियों में हुए बड़े फर्जीवाड़े की परतें अब तेजी से खुल रही हैं। विभागीय अधिकारियों के अनुसार, कई शिक्षकों ने दिव्यांगता के आधार पर नौकरी तो पा ली, लेकिन नियुक्ति के दौरान विभाग केवल प्रस्तुत किए गए प्रमाणपत्र को मान्य मानता है। नियमों के अनुसार विभाग प्रमाणपत्र की सत्यता को वहीं चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि यह अधिकार केवल मेडिकल बोर्ड और प्रमाणपत्र जारी करने वाली चिकित्सकीय संस्था का होता है। इसी व्यवस्था की कमजोरी का फायदा उठाते हुए कई शिक्षक दिव्यांगता कोटे में नियुक्ति पाने में सफल हो गए। लेकिन जब 2022 में इस मामले की गहराई से जांच की गई, तो सच्चाई सामने आने लगी। राज्य मेडिकल बोर्ड के माध्यम से कराई गई जांच में कई शिक्षकों के प्रमाणपत्र गलत, त्रुटिपूर्ण या मनगढ़ंत पाए गए।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ये प्रमाणपत्र दिव्यांगजन बोर्ड के चिकित्सकों द्वारा जारी किए गए थे, जो अब पूरी तरह जांच के दायरे में हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि यदि प्रमाणपत्र फर्जी हैं या नियमविरुद्ध तरीके से जारी किए गए हैं, तो केवल शिक्षक ही नहीं, बल्कि प्रमाणपत्र जारी करने वाले चिकित्सक भी समान रूप से जिम्मेदार माने जाएंगे। मामले की गंभीरता को देखते हुए शिक्षा विभाग ने कहा है कि यह सिर्फ नियुक्ति प्रक्रिया में हुई अनियमितता नहीं, बल्कि एक संगठित स्तर पर हुआ बड़ा प्रमाणपत्र घोटाला प्रतीत होता है। अब विभाग फर्जी प्रमाणपत्रों की पुष्टि के आधार पर आगे की सख्त कार्रवाई की तैयारी में है, जिसमें नियुक्ति निरस्त होने से लेकर कानूनी कार्रवाई तक शामिल हो सकती है। राज्य स्तर पर उच्च अधिकारियों का कहना है कि दिव्यांगता प्रमाणपत्रों को लेकर भविष्य में ऐसी गड़बड़ियां न हों, इसके लिए नया कठोर सत्यापन तंत्र भी लागू किया जा सकता है।

 

 

 

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