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पटना में आचार्य चाणक्य कोमा में.

तेजस्वी कर रहे इलाज, नीतीश बने हनुमान
महावैद्य बने मोदी, होगा बिहार में राम-राज
सोशल मीडिया। बिहार में समुद्र मंथन हो रहा है। आचार्य चाणक्य यहां की राजनीति समझने की कोशिश में जुटे थे, ज्यादा जोर दे रहे थे कि आखिर उनकी धर्म-नीति, राजा का कर्तव्य, जनता के अधिकार, मित्र-भेद, कार्य व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था को लेकर बनी चाणक्य नीति में क्या खोट रह गई जो लालू-नीतीश नीति का जन्म हो गया। आखिर नालंदा और तक्षशिला में उन्होंने क्या सीख दी थी अपने शिष्यों को? ये दाव तो उनके अर्थशास्त्र में था ही नहीं, जो नीतीश ने चला। मित्र भी मार दिया और कुर्सी भी नहीं गई।

दिमाग पर ज्यादा जोर डाला तो ब्रेन हेमरेज हो गया और अब आचार्य कोमा में र्हैं। उनका इलाज प्रख्यात वैद्य तेजस्वी यादव कर रहे हैं। राबड़ी देवी किसी नर्स की तर्ज पर उनका ध्यान रख रही हैं। लालू ने साफ कह दिया है कि आचार्य की इस हालात के लिए नीतीश ही जिम्मेदार हैं, मैं तो चारे तक ही सीमित था। यदि आचार्य चाणक्य को कुछ हुआ तो नीतीश की खैर नहीं। उधर, नीतीश ने कमोड में बैठे-बैठे कुछ दिन पहले ठान लिया था कि चारे के सहारे बिहार नहीं चलेगा। यदि राम-राज चाहिए तो कुछ करना होगा। और अब जो फैसला लिया है मैंने, उस पर कोई पश्चतावा नहीं, चाणक्य जिस समय पैदा हुए हालात दूसरे थे, तब न लालू था और न तेजस्वी या राबड़ी, महावैद्य मोदी भी नहीं थे, नहीं तो अर्थशास्त्र और चाणक्य नीति तभी फेल हो जाती।

अब आचार्य चाणक्य बहुत पुराने हो गये हैं, उम्र भी साथ नहीं दे रही, भूल गये कि ये 21 सदी का भारत है। सत्ता हथियाने के लिए कोई नीति नहीं तिगड़म चाहिए, सो बेचारे दिल-दिमाग लगा बैठे और कोमा में चले गये। खैर, पुराने हैं तो हमारे संस्कार हैं बुजुर्गों की सेवा करना, वैद्य तेजस्वी ने कहा कि संजीवनी चाहिए तो जा रहा हूं हनुमान बनकर, गुजरात में न मिली तो दिल्ली जरूर मिल जाएगी, महावैद्य मोदी के पास, यह बड़बड़ाते हुए नीतीश उड़कर दिल्ली जा पहुंचे। आचार्य चाणक्य को चारे से निकले आक्सीजन के सहारे वेंटीलेटर पर रखा गया है। उधर, बिहार की जनता को भय सता रहा है कि गुजरात होते हुए दिल्ली के सिंहासन पर बैठे सेल्युकस के हाथ में राज्य की डोर न चली जाएं। पर जनता का क्या? कौन सोचता है उसकी? लालू हो, नीतीश हो या मोदी। सब चेहरे अलग हैं, हम्माम में तो सब …. हैं।

लोकतंत्र में जनता भीड़तंत्र होती है और तमाशबीन भी। अहंकार, लोभ, भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, छल-कपट, चेहरे पर चेहरा और फिर एक नया चेहरा। यह सब लोकतंत्र का हिस्सा है। फिर ऐसे में यदि चाणक्य वेंटीलेटर पर हैं तो क्या गलत है? जब राजा की नीति ही नहीं तो अनीति पर क्या दिमाग लगाना़? काश, आचार्य चाणक्य अब पैदा होते तो देखते उनके अखंड भारत का सपना कैसे चूर-चूर हो रहा है और उनका अर्थशास्त्र राजमहल के किसी कोने में धूल फांक रहा है।

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