योगेश भट्ट
जाना तो एक दिन हर किसी ने है, लेकिन जाने के बाद भी जीने की राह दिखा जाना हर किसी के बूते की बात नहीं। स्वयंसेवक दीपक डिमरी एक ऐसी मिसाल कायम कर गए, जो आने वाली पीढ़ियों और तमाम स्वयंसेवकों के लिए हमेशा प्रेरक रहेगी। दीपक डिमरी एक साधारण व्यक्तित्व और असाधारण प्रतिभा, उत्तराखंड की सियासत में जिसकी पहचान एक खांटी संघी की रही ।
भाजपा की निर्वाचित सरकारों में प्रत्येक मुख्यमंत्री का ओएसडी होना स्वंय में उनकी दक्षता, कार्य कुशलता, अहमियत व कर्तव्यनिष्ठा का प्रमाण है । मात्र 39 वर्ष की अल्पआयु में उन्होंने दुनिया को अलविदा तो कह दिया लेकिन पीढियों के लिए बहुत बड़ा संदेश छोड़ गए।वह कैंसर जैसे असाध्य रोग की गिरफ्त में थे लेकिन उन्होंने रोग को खुद पर हावी नहीं होने दिया। प्रयाण से 20 दिन पहले तक जो व्यक्ति मुख्यमंत्री के ओएसडी के रूप में कार्य करता रहा हो, उसकी जीवटता का अंदाजा लगाया जा सकता है। तीन-तीन मुख्यमंत्रियों का ओएसडी रहने के बाद भी बेदाग छवि रहना यूं तो अपने आप में कम नहीं लेकिन इससे भी अहम यह कि जीवित रहते हुए उन्होंने नेत्रदान और देहदान का साहसिक निर्णय लिया। नेत्रदान और देहदान की आज बात करना भले ही आसान हो, लेकिन हकीकत यह है कि इस निर्णय पर परिजनों को रजामंद करना उस पर अमल कराना बेहद कठिन है।
दीपक की इच्छा के मुताबिक उनके परिजनों ने वही किया जो वह निर्णय कर गए, उनकी देह का अंतिम संस्कार नहीं किया गया । नेत्र महंत इंद्रेश अस्पताल को दिये गए तो मृत शरीर हिमालयन मेडिकल कालेज (जालीग्रांट) को दे दिया गया। दीपक पूर्णकालिक स्वंयसेवक थे, संघ के प्रचारक भी रहे। बहुत संभव है कि नानाजी देशमुख से प्रेरित होकर यह साहसिक निर्णय लिया हो, देशमुख जी ने भी देहदान किया। इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसा साहसिक निर्णय एक असाधारण सोच का व्यक्ति ही ले सकता है, वरना स्वयंसेवकों की तो देशभर में बहुत बड़ी संख्या है। एक चौथाई स्वंयसेवक या सार्वजनिक जीवन से जुड़े व्यक्ति नेत्रदान और देहदान की हिम्मत दिखाते तो आज मेडिकल कालेजों में डाक्टरी पढ़ने के लिये मृत शरीर के विकल्प पर निर्भर न होना पड़ता।
नेत्रहीनों को नेत्र ज्योति के लिए नेत्र ज्योति की उम्मीद में सालों-साल और अधिकांश को ताउम्र अंधकार में गुजारने को मजबूर न होना पड़ता। दीपक ने एक राह दिखाई है, सिर्फ स्वंयसेवकों को ही नहीं बल्कि युवा पीढ़ी को भी । दीपक ने वही किया जो दीपक का मूल चरित्र है। दीपक का यह संदेश विचारधारा विशेष से अलग हटकर है, उस जैसे जीवट के धनी का असमय जाना निसंदेह उत्तराखंड राज्य की भी क्षति है। खासकर ऐसे वक्त में जब उत्तराखंड में दीपक जैसे व्यक्तित्वों का नितांत अभाव है। काश, प्रदेश में आने वाली पीढ़ियां दीपक से प्रेरणा ले पाए…
