उत्तराखंड

कोरोना के विनाश के लिए केदारनाथ धाम में किया तीर्थ पुरोहितों ने रुद्राभिषेक…

तीर्थ पुरोहितों ने विश्व कल्याण के लिए महादेव से की प्रार्थना

तीर्थ पुरोहित मंदिर प्रगाढ़ में क़र रहे है रुद्राभिषेक पाठ..

पुरोहितों ने कोविड गाइडलाइन का रखा है ख्याल ….

कोरोना महामारी के चलते उत्तराखंड के चारों धाम में कपाट खुलने के बाद भी यात्रा रोकी गयी है , कोरोना महामारी से स्थिति सामान्य होने पर चारधाम यात्रा का संचालन किया जाएगा। वर्तमान में कोरोना संक्रमण बढ़ने पर सरकार ने यात्रा को स्थगित किया है, अभी इन धामों में मंदिर के कर्मचारियों और तीर्थ पुरोहितों को ही जाने की अनुमति है,

इसी क्रम में केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों ने विश्व कल्याण और कोरोना के विनाश के लिए रुद्राभिषेक यज्ञ हवन का आयोजन किया है, जो हर दिन प्रातः शुरू किया जायेगा , तीर्थ पुरोहितों द्वारा धाम में निरंतर पूजा पाठ अलंकार पूजन होता रहा है, रुद्राभिषेक भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे प्रभावी उपाय है। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना।

 

 

जीवन में कोई कष्ट हो या कोई मनोकामना हो तो सच्चे मन से रुद्राभिषेक कर के देखें निश्चित रूप से अभीष्ट लाभ की प्राप्ति होगी। रुद्राभिषेक ग्रह से संबंधित दोषों और रोगों से भी छुटकारा दिलाता है।  सोमवार को यदि रुद्राभिषेक करेंगे तो जीवन में चमत्कारिक बदलाव महसूस करेंगे।

 

 

 

सभी पीड़‍ितों का शीघ्र हो स्‍वास्‍थ्‍य लाभ

इस बार विशेष रूप से कोरोना के विनाश के लिए रूद्राभिषेक हवन किया जा रहा है । इसका मूल उद्देश्य कोरोना महामारी से पीड़ित सभी लोगों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ एवं विश्व कल्याण है । इस पूजन रूद्राभिषेक हवन कार्यक्रम को मंत्रालय तीर्थ पुरोहित आचार्य पंडित नवीन शुक्ल के साथ तीर्थ पुरोहित पंडित पंकज शुक्ल, तेज प्रकाश त्रिवेदी, अनित शुक्ल, रमाकांत  व अन्य तीर्थ पुरोहितो द्वारा संपन्न किया जा रहा है|

 

 

 

 

रुद्राभिषेक पूजा सामग्री,ताकि पूजा न रहे अधूरी

सनातन धर्म में भगवान शिव को भोले शंकर भी कहा गया है। दरअसल, उन्हें बड़ी आसानी और सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिव जी को कुछ चीजें बेहद पसंद हैं। अगर आप भी भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो अपनी पूजा सामग्री की लिस्ट अवश्य पढ़ें..

 

 

 

बिल्व पत्र, रुद्राक्ष, भस्म, त्रिपुण्ड्रक, धतूरा, भांग, अक्षत, आक, धतूरा या कनैल का फूल। शिवलिंग पर यह चीजें बारी बारी ससे अर्पित करते हुए ॐ नमः शिवाय मंत्र का पाठ करें। इसके बाद हाथ जोड़कर शिव-लिंग की परिक्रमा करें, लेकिन याद रखें कि शिवलिंग की परिक्रमा आधी ही करनी है।

 

जल, गंगा जल, गाय का दूध, दही, फूल, फूल माला,कम से कम 5 या 51 बेलपत्र, शहद, शक्कर, घी, कपूर,रुइ की बत्ती, प्लेट, कपडा, यज्ञोपवीत, सूपारी, इलायची, लौंग, पान का पत्ता, सफेद चंदन, धूप, दिया, धतुरा, भांग, जल पात्र,चम्मच, नैवेद्य,मिठाई। भगवान शिव को ये चीजें भी अति प्रिय हैं इन्हें अपनी पूजा की थाली में शामिल करना ना भूलें।

 

 

शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करने का सही तरीका?-

– मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना काफी उत्तम होता है।
– इसके अलावा घर में पार्थिव शिवलिंग पर भी अभिषेक कर सकते हैं।
– घर से ज्यादा मंदिर में, इससे ज्यादा नदी तट पर और इससे ज्यादा पर्वतों पर फलदायी होता है।
– शिवलिंग के अभाव में अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका अभिषेक और पूजा की जा सकती है।

किस पदार्थ से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है?-

– घी की धारा से अभिषेक से वंश का विस्तार होता है।
– इक्षुरस / गन्ने का रस से अभिषेक से मनोकामनाएं पूरी होती हैं , दुर्योग नष्ट हो जाते हैं।
– शक्कर मिले दूध से अभिषेक से , व्यक्ति विद्वान हो जाता है।
– गाय के दूध से अभिषेक से आरोग्य की प्राप्ति होती है।
– शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक से संतान प्राप्ति सरल हो जाती हैं।
– भस्म से अभिषेक से व्यक्ति मुक्ति मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
– तेल से भी शिव जी का अभिषेक होता है, परन्तु यह मारण प्रयोग है, सामान्यतः नहीं करना चाहिए।

कब रुद्राभिषेक करना उत्तम और अनुकूल होता है?-

– रुद्राभिषेक के लिए शिव जी की उपस्थिति देखना अत्यंत आवश्यक है।
– बिना शिव जी का निवास देखे कभी भी रुद्राभिषेक न करें।
– अन्यथा इसके परिणाम काफी खराब हो सकते हैं।
– शिव जी का निवास तभी देखना आवश्यक है , जब मनोकामना की पूर्ति के लिए अभिषेक किया जा रहा हो।

कब शिव जी का निवास मंगलकारी होता है?-

– प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया और नवमी , तथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा,अष्टमी तथा अमावस्या के दिन शिव जी माँ गौरी के साथ रहते हैं।
– कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और एकादशी को तथा शुक्ल पक्ष की पंचमी और द्वादशी तिथि को महादेव , कैलाश पर रहते हैं।
– कृष्ण पक्ष की पंचमी और द्वादशी को तथा शुक्ल पक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी तिथि को शिव जी नंदी पर सवार होकर सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण करते हैं ।
– इन तिथियों में महादेव का निवास मंगलकारी होता है , जिसमे रुद्राभिषेक किया जा सकता है।

कब शिव जी का निवास अनिष्टकारी होता है?-

– कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी, तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी,पूर्णिमा में भगवान शिव श्मशान में समाधि में रहते हैं।
– कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी तथा शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में महादेवजी देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं।
– कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी व एकादशी में नटराज क्रीडारत रहते हैं।
– कृष्णपक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं।
– इन तिथियों में सकाम अभिषेक नहीं किया जा सकता।

कब तिथियों का विचार नहीं किया जाता?-

– शिवरात्री , प्रदोष और सावन के सोमवार को सिद्ध पीठ अथवा ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में शिव के निवास का विचार करने की आवश्यकता नहीं होती।

– यह स्थान और समय सदैव मंगलकारी होता है।

रुद्राभिषेक का महत्व…

एक कथा के मुताबिक एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मृत्युलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगों को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासावश पूछा कि हे नाथ! मृत्युलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है?
भगवान शिव ने कहा- हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोष स्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति के लिए अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूं।

जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना चाहिए।

रुद्र भगवान शिव का ही प्रचंड रूप हैं। इनका अभिषेक करने से सभी ग्रह बाधाओं और सारी समस्याओं का नाश होता है। रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ किया जाता है। अभिषेक के कई प्रकार होते हैं।

 

शिव जी को प्रसन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है क्योंकि वह अपनी जटा में गंगा को धारण किये हुए हैं।

रुद्राभिषेक से होने वाले लाभ…

आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे हैं उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए इसका उल्लेख शिव पुराण में किया गया है। वहीं से उद्धृत कर हम आपको यहां जानकारी दे रहे हैं-

– यदि वर्षा चाहते हैं तो जल से रुद्राभिषेक करें।
– रोग और दुःख से छुटकारा चाहते हैं तो कुशा जल से अभिषेक करना चाहिए।
– मकान, वाहन या पशु आदि की इच्छा है तो दही से अभिषेक करें।
– लक्ष्मी प्राप्ति और कर्ज से छुटकारा पाने के लिए गन्ने के रस से अभिषेक करें।
– धन में वृद्धि के लिए जल में शहद डालकर अभिषेक करें।
– मोक्ष की प्राप्ति के लिए तीर्थ से लाये गये जल से अभिषेक करें।
– बीमारी को नष्ट करने के लिए जल में इत्र मिला कर अभिषेक करें।
– पुत्र प्राप्ति, रोग शांति तथा मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए गाय के दुग्ध से अभिषेक करें।
– ज्वर ठीक करने के लिए गंगाजल से अभिषेक करें।
– सद्बुद्धि और ज्ञानवर्धन के लिए दुग्ध में चीनी मिलाकर अभिषेक करें।
– वंश वृद्धि के लिए घी से अभिषेक करना चाहिए।
– शत्रु नाश के लिए सरसों के तेल से अभिषेक करें।
– पापों से मुक्ति चाहते हैं तो शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करें।

 

 

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