इन्द्रेश मैखुरी
आज पेशावर विद्रोह के नायक कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि है. 1 अक्टूबर 1979 को वे इस दुनिया से रुखसत हुए थे.
राजनीतिक कद के लिहाज से देखें तो वे उत्तराखंड के बड़े नेताओं में से एक हैं. और यदि सिद्धांतों पर अडिग रहने के नजरिये से देखें तो उनसे बड़ा यहाँ कोई नहीं है.महात्मा गांधी,नेहरु आदि बड़े नेता भी उनके कायल थे. लेकिन इस ऊँची पहुँच-पहचान का उन्होंने कभी फायदा नहीं उठाया. तमाम विषम परिस्थितयों के बावजूद वे आजीवन एक प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट बने रहे.
चन्द्र सिंह गढ़वाली के नाम का जाप करते हुए भी सत्ता, हमेशा उनके विचार से, स्वयं को असहज पाती रही है. इसलिए उनका नाम लेने की मजबूरी के बावजूद चन्द्र सिंह गढ़वाली का सम्मान करने की इच्छा सत्ता प्रतिष्ठान की कभी नहीं रही.
ताजा उदाहरण देख लीजिये.उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने चन्द्र सिंह गढ़वाली की पुण्य तिथि पर होने वाले कार्यक्रम का अखबार में विज्ञापन दिया है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की मौजूदगी में यह कार्यक्रम पीठसैण में होगा,जहाँ चन्द्र सिंह गढ़वाली की समाधि है.लेकिन विज्ञापन बताता है कि चन्द्र सिंह गढ़वाली पर किसी योजना की शुरुआत नहीं होगी. है न विचित्र बात ! कार्यक्रम चन्द्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि पर होगा,उनके पैतृक गाँव के निकट उनके समाधिस्थल पर पर होगा पर उसमे, उनके नाम की योजना का उद्घाटन नहीं होगा ! तो किसके नाम की योजना का उद्घाटन होगा ?
जिस योजना के ‘शुभारम्भ’ होने की बात, उक्त विज्ञापन में कही गयी है,उसका नाम है-“दीन दयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना”. भाई मुख्यमंत्री जी, मान लिया कि दीन दयाल उपाध्याय आपके देवादिदेव हैं, जिनका नाम आप रात-दिन जपते हुए नहीं थक रहे हैं ! पर ये तो बताओ कि चन्द्र सिंह गढ़वाली की पुण्य तिथि पर दीन दयाल महाशय के नाम की योजना के उद्घाटन का औचित्य क्या है? चन्द्र सिंह गढ़वाली के सखा थे,दीन दयाल?इस देश की आजादी की लड़ाई में चन्द्र सिंह गढ़वाली से बड़ा योगदान था क्या आपके आराध्य देव-दीन दयाल का?
जब कोई सम्बन्ध नहीं था तो गढ़वाली जी की पुण्यतिथि पर दीनदयाल के नाम की योजना के उद्घाटन का क्या मतलब है? इसका सीधा अर्थ है कि चन्द्र सिंह गढ़वाली के नाम पर भी आप केवल दीनदयाल उपाध्याय की ही जयजयकार करना चाहते हो.यह चन्द्र सिंह गढ़वाली का सम्मान तो कम से कम नहीं है.
लेकिन मुख्यमंत्री जी चन्द्र सिंह गढ़वाली कोई सत्ता के गढ़े हुए नायक नहीं हैं.बल्कि ब्रिटिश सत्ता से लेकर आजाद भारत की हुकूमतों से, जनहित में टकराव ने ही उनको इतना बड़ा नायक बनाया कि कभी सत्ता का हिस्सा न रहने के बावजूद,सत्ता प्रतिष्ठान उनका नाम लेने को विवश रहा है.
अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले ही कोटद्वार में वे एन.डी.तिवारी की सभा में विरोध करने गए थे. वहां कांग्रेसियों ने इस बुजुर्ग स्वतन्त्रता सेनानी से मारपीट की, जिसके बाद वे फिर कभी उठ नहीं सके. लेकिन यह गढ़वाली जी के संघर्षपूर्ण नायकत्व का ही बल था कि जिन एन.डी.तिवारी की सभा में गढ़वाली जी पर आघात हुआ, उन्हीं तिवारी को गढ़वाली जी के नाम पर सरकारी योजनाओं का नामकरण करना पड़ा.
उत्तरखंड सरकार का यह कृत्य चन्द्र सिंह गढ़वाली के नायकत्व को छोटा करने की कोशिश ही, जो कि घनघोर निंदा की पात्र है . पर मुख्यमंत्री जी,यदि आपको यह मुगालता है कि दीनदयाल उपाध्याय का पर्दा लगाकर आप चन्द्र सिंह गढ़वाली को नेपथ्य में डाल दोगे तो यह आपकी गलतफहमी है.
कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली की समझौता विहीन संघर्षों की परम्परा जिंदाबाद.
कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली का पैगाम, जारी रखना है संग्राम.