उत्तराखंड

अगर आप पहाड़ी व्यंजन के शौक़ीन हैं तो ‘गढ़-भोज’ आपका इंतज़ार कर रहा है

गढ़भोज ने मैदान में उतारी पहाड़ की रस्याण

रमेश पहाड़ी
मध्य हिमालय का पहाड़ी क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता व वैभव के अलावा अपनी संस्कृति के लिए भी विशेष रूप से जाना जाता है। इसमें उसके नाना प्रकार के भोज्य पदार्थों का उल्लेखनीय योगदान है, जो न केवल स्वाद में, बल्कि पौष्टिकता में भी अतुलनीय हैं।

प्रवासी पर्वतीयजन इन व्यंजनों के लिए तरसते रहते हैं और उनकी भावना व इच्छा रहती है कि ये व्यंजन उन्हें मिलें। प्रचार-प्रसार की समुचित व्यवस्था तथा पर्वतवासियों में व्यावसायिक कुशलता के अभाव के चलते पहाड़ों के बहुमूल्य उत्पादों व स्वादिष्ट व्यंजनों के विपणन तथा आदान-प्रदान का प्रभावी तंत्र विकसित नहीं किया जा सका था, इसलिए एक ओर जहाँ पहाड़ी उत्पादों को बाजार न मिलने से उत्पादकों को उनकी मेहनत का समुचित मूल्य नहीं मिल पाता है, वहीं इन उत्पादों के इच्छुक लोगों को ये उपलब्ध नहीं हो पाते हैं लेकिन् इस दिशा में पिछले कुछ वर्षों से प्रयास होने लगे हैं। दुकानों में पहाड़ी उत्पाद मिलने लगे हैं तो देहरादून के मध्यवर्ती इलाके में लक्ष्मण सिंह रावत नाम के एक युवा व्यवसायी ने गढ़भोज नाम से एक रेस्तराँ खोल कर गढ़वाली भोजन उपलब्ध कराने की महत्वपूर्ण पहल आरम्भ की है, जिसे काफी प्रोत्साहन मिल रहा है।

दूर-दूर से गढ़वाली व्यंजनों के शौकीन यहाँ पहुँच कर नाना प्रकार के स्वादिष्ट गढ़वाली व्यंजनों का लुत्फ उठा रहे हैं। इस रेस्तराँ में गढ़वाल के सभी प्रकार के शाकाहारी और मांसाहारी भोजन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। पहाड़ी दाल-भात की सपोड़ा-सपोड़ी के साथ-साथ विभिन्न पहाड़ी सब्जियां, मंडुवे की रोटियां, झंगोरे की खीर, भंगजीरे की चटनी, ककड़ी का रायता, झंगोरे के रसगुल्ले, गहत व तोर के भरे परांठे औए वे तमाम व्यंजन, जो गढ़वाल में बनते थे व हैं, मिल जाते हैं। आदेश पर अरसे व उड़द के पकोड़े भी तैयार किये जाते हैं, ऐसा इसके संचालक लक्ष्मण सिंह बताते हैं।

गढ़भोज के माध्यम से वे पहाड़ी उत्पादों को एक सम्मानजनक बाजार भी उपलब्ध कराने के प्रयास में हैं। उनकी योजना पहाड़ी उत्पादों में उपलब्ध पौष्टिकता को विभिन्न पोषक उत्पादों में बदल कर उनका मूल्यवर्धन कर उत्पादकों को अधिक लाभकारी व मूल्य उपलब्ध कराना भी है ताकि घाटे की पहाड़ी खेती को लाभकारी बना कर गाँवों में ही सम्मानजनक रोजगार के अधिकाधिक अवसर प्राप्त हों। लक्ष्मण के इन प्रयासों से गढ़वाली खाने के शौकीनों को एक इच्छित स्थान मिल गया है। इसका लाभ उठाकर इस अभियान को आगे बढ़ाने में मदद भी की जा सकती है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top