उत्तराखंड

मजबूत’ बहुमत वाले ‘कमजोर’ मुख्यमंत्री साबित होते त्रिवेंद्र

मोहित डिमरी
डबल इंजन वाली सरकार को छह महीने पूरे हो गए हैं। छह महीनों में सरकार की परफार्मेंस को लेकर अमित शाह से लेकर भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता तक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की तारीफ कर रहे हैं। अमित शाह तो त्रिवेंद्र से इस कदर प्रसन्न हैं कि उन्होंने साफ कह दिया है कि त्रिवेंद्र कप्तान बने रहेंगे। मगर अमित शाह जी से कोई ये तो पूछे कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनकी सरकार ने इन छह महीनों में आखिर ऐसा कौन सा कमाल कर दिया है?

प्रदेश की जनता को तो ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा। जैसी सरकार हरीश रावत के राज में चल रही थी, वैसी ही त्रिवेंद्र राज में चल रही है। तब भी लोकायुक्त बिल लटका हुआ था, अब भी लटका पड़ा है। तब भी ट्रांसफर पालिसी नहीं बनी, अब भी नहीं बन रही है। तब भी कमीशनबाजी, घूसखोरी, ट्रांसफर-पोस्टिंग में दलाली का खेल चलता था, अब भी यह खेल जारी है। तब भी महिलाओं को 108 सेवा न मिल पाने के चलते सड़क पर प्रसव कराने को मजबूर होना पड़ता था, अब भी ऐसा ही हो रहा है। तब भी चंद ब्यूरोक्रेट सारे सिस्टम को चलाते थे, अब भी कुछ खास नौकरशाह सरकार को चला रहे हैं। तब भी सरकार भ्रष्ट अधिकारियों पर मेहरबान थी, अब भी करप्ट अफसरों की तूती बोल रही है। प्रदेश की जनता तब भी हाशिए पर थी, अब भी हाशिए पर है। तो फिर बदला क्या? सिर्फ निजाम बदला है, सत्ता वही है।

18 मार्च को जब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो बहुत से लोगों ने इसे प्रदेश की राजनीति में नए अध्याय की शुरुआत बताया। ऐसा इसलिए क्योंकि त्रिवेंद्र तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों खंडूरी, कोश्यारी और निशंक के रहते हुए मुख्यमंत्री बनाए गए थे। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद जानकारों से लेकर आम जनता तक सबका यही मानना था कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास बड़ी सियासी लकीर खींचने का मौका है। मगर आज छह महीने बीतने के बाद त्रिवेंद्र अब तक के सबसे कमजोर मुख्यमंत्री नजर आते हैं। छह महीने के कार्यकाल में उन्होंने एक भी मजबूत फैसला लेना तो दूर उसके संकेत तक नहीं दिए।

भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस का दावा करने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत इतने मजबूत जनादेश के बाद भी प्रदेश में लोकायुक्त एक्ट लाने की हिम्मत नहीं दिखा पाए हैं, जबकि भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बनाते हुए वादा किया था कि सरकार बनने पर 100 दिन के भीतर प्रदेश की जनता को मजबूत लोकायुक्त दिया जाएगा। लोकायुक्त की तो बात ही छोड़िए, सरकार इतना ही बता दे कि इन छह महीनों में उसने कितने भ्रष्ट अधिकारियों को पकड़ा ? कांग्रेस राज में हुए घोटालों को लेकर चुनाव से पहले गला चीर-चीर कर हंगामा करने वाली सरकार ने इन छह महीनों में क्या एक भी खुलासा किया? जिस एनएच घोटाले की सीबीआई जांच के सरकार ने आदेश दिए उसी का हाल देखिए। आज तक सीबीआई ने केस अपने हाथ में नहीं लिया है। इसी तरह सामान्य दफ्तरों से लेकर सचिवालय तक में भ्रष्ट अफसरों की मौज आई है। सरकार सब कुछ जानते हुए भी खामोश है। क्या यही है जीरो टालरेंस?

चुनाव के दौरान भाजपा का नारा होता था- क्या हाल, किसान बेहाल, चुनाव के बाद चार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। तब नारा होता था- क्या हाल, स्कूल बदहाल, आज खुद सरकार ने लगभग तीन हजार सरकारी स्कूल बंद कर दिए हैं। तब नारा होता था क्या हाल, नौजवान बेरोजगार। आज सरकार रिटायर होने वाले अफसरों कर्मचारियों को सेवा विस्तार देकर नौजवानों के लिए रोजगार के रास्ते बंद कर रही है। अस्पतालों की बदहाली जस की तस है। स्कूलों की बदहाली जस की तस है। सड़कों की बदहाली, जस की तस है। तो फिर क्या बदला ?

तब की सरकार भी मीडिया मैनेजमेंट के दम पर अखबारों टीवी चैनलों में रंगीन विज्ञापन छपवाकर अपनी इमेज चमकाती थी। अब की सरकार भी इसी रास्ते पर है। मीडिया मैनेजमेंट के लिए पूरी टीम रखी गई है, जिस पर जनता की गाढ़ी कमाई लुटाई जा रही है। क्या मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के पास इन सवालों का कोई जवाब है?

अभी सिर्फ छह महीने बीते हैं। साढ़े चार साल और बाकी हैं। जरा सोचिए छह महीने में ही इस कदर लूट मचनी शुरू हो गई है तो आने वाले दिनों में तस्वीर बदलने की उम्मीद करना बेमानी ही होगी।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top