उत्तराखंड

20 जुलाई 1971 में भारी बारिश और बादल फटने से बिखरा पड़ा है यहा ताल..

20 जुलाई 1971 में भारी बारिश और बादल फटने से बिखरा पड़ा है यहा ताल..

उत्तराखंड: निजमुला घाटी की सुरम्य वादियों के मध्य स्थित दुर्मी ताल का धार्मिक महत्व भी है दुर्मी ताल निजमुला घाटी के दुर्मी गांव में स्थित है। मान्यता है कि जब मां पार्वती ने भगवान शिव से इस स्थान पर थोड़ी देर विश्राम करने की इच्छा जताई तो भगवान शिव ने मां पार्वती के आग्रह पर यहां कुछ पल बिताए। इसी दौरान प्यास बुझाने और स्नान के लिए भोले नाथ ने अपनी त्रिशूल से यहां एक तालाब उत्पन्न कर दिया। तभी से इस ताल का नाम दुर्मी ताल पड़ा।

 

यदि ब्रिटिश कालीन शासन कुछ वर्ष और हुकूमत करता तो चमोली जनपद के पर्यटक स्थलों को विश्व मानचित्र पर जगह मिल जाती। अंग्रेजों द्वारा दुर्मी ताल के इर्दगिर्द पहुंचाई गई टेलीफोन लाइनों, यहां पडे़ नावों के अवशेषों और बंगलों को देखकर तो यही लगता है। स्थानीय ग्रामीण का कहना है कि बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेज एक स्थान पर बैठकर कहां क्या बनाया जाना है, उस पर विचार-विमर्श किया करते थे।

 

 

दुर्मी ताल में आजादी से पहले नौकायन का लुत्फ उठाने के लिए पर्यटक आया करते थे। 1971 में आई आपदा में तीन किलोमीटर से लंबी इस झील का स्वरूप बिगड़ गया। इससे घाटी के ग्रामीणों का रोजगार छिन गया। कई ग्रामीणों ने गांव से पलायन भी कर लिया। उसी समय से लगातार दुर्मी ताल के जीर्णोद्धार की मांग की जा रही है। पिछले दिनों यहीं पर खुदाई के दौरान ग्रामीणों को अंग्रेजों के जमाने की एक नाव भी मिली थी।

गांव में अंग्रेजों के समय की काफी वस्तुएं पाई गई हैं। इसके बाद से दुर्मी ताल एक बार फिर से चर्चा में आ गई है। अब 50 बरस बाद एक बार फिर से निजमुला घाटी के लोगो द्वारा दुर्मी ताल के पुनर्निर्माण की कोशिशें की जा रही है। यदि इस ताल का पुनर्निर्माण किया जाता है तो इससे न केवल जनपद चमोली में पर्यटन को बढावा मिलेगा अपितु रोजगार के नये अवसर भी सृजित होंगें।

साथ ही साथ स्थानीय उत्पादों को एक बाजार भी मिलेगा। दुर्मी ताल बनने के बाद यहाँ 12 महीने पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहेगा। जिससे निजमुला घाटी के समस्त गांव ही नहीं पूरे चमोली जनपद के नगर जिनमें चमोली, गोपेश्वर, नंद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, गौचर, पीपलकोटी, मायापुर, बिरही, जोशीमठ को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से फायदा मिलेगा।

जैसे नैनीताल और शिमला में पर्यटको का हुजूम इकट्ठा रहता है ठीक उसी तरह दुर्मी ताल पुनर्निर्माण के बाद यहाँ भी पर्यटकों का जमघट लगेगा। यही नहीं यहां नौकायन और राफ्टिंग, वाटर स्पोर्ट्स, मत्स्य पालन, लघु जलविद्युत् परियोजना, बतख पालन, फूल उत्पादन के जरिए स्वरोजगार के नयें अवसरों का भी सृजन होगा।

दुर्मी ताल बनने पर पर्यटकों की आमद होंने से स्थानीय लोगों को, होटल मालिको, वाहन स्वामी, होमस्टे संचालकों, हस्तशिल्पियों को भी रोजगार मिल सकेगा। यही नहीं इससे 12 महीने पर्यटन को पंख लगेंगे। वहीं सप्तकुंड, तड़ाग ताल, लार्ड कर्ज़न रोड-कुंआरी पास ट्रैक, बंडीधूरा न्यू टूरिज्म डेस्टिनेशन, बालपाटा बुग्याल, नरेला बुग्याल, पीपलकोटी-किरूली- पंछूला- गौणा- गौणाडांडा- रामणी ट्रैक को भी बढावा मिलेगा।

वास्तव में देखा जाए तो चमोली में पर्यटन की असीमित संभावनाएं हैं। यदि एक सुनियोजित तरीके से दुर्मी ताल का पुनर्निर्माण करके इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाय और यहाँ पर्यटन की गतिविधियों को संचालित किया जाता है तो ये उत्तराखंड के पर्यटन के लिए मील का पत्थर साबित होगा। यही नहीं इससे हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा।

 

 

जो इस सदूरवर्ती इलाके से रोजगार के लिए हो रहे पलायन को रोकने में भी मददगार साबित होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में डल झील (कश्मीर), नैनी झील (नैनीताल) के बाद दुर्मी ताल (निजमुला घाटी) विश्व के पर्यटन मानचित्र पर अपनी पहचान बना पानें में सफल होगा।

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