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हमलों के बाद कश्मीरी पंडितों में फिर से डर का माहौल..

हमलों के बाद कश्मीरी पंडितों में फिर से डर का माहौल..

 

देश- विदेश :  कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी कैसे हो? इस सवाल पर इन दिनों देश भर में चर्चा चल रही है, लेकिन घाटी का माहौल इसके विपरीत दिख रहा है। बीते 4 दिनों में चार प्रवासी मजदूरों और एक कश्मीरी पंडित को गोली मारने की घटनाएं हुई हैं।

इसके चलते कश्मीर में एक बार फिर से अल्पसंख्यक समुदायों में डर का माहौल देखा जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि हाल में हुई घटनाएं पूरी तरह से दहशत फैलाने के लिए की गई हैं ताकि प्रवासी लोग वहां से पलायन कर जाएं। इसके अलावा कश्मीरी पंडितों की वापसी के प्रयासों को कमजोर किया जा सके।

शोपियां के रहने वाले कश्मीरी पंडित बाल कृष्ण के सीने पर आतंकियों ने 4 गोलियां मार दी थीं। इसके अलावा एक अन्य शख्स के पेट के निचले हिस्से में गोली लगी थी। एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने कहा, ‘आतंकी अब प्रवासी लोगों के पैरों पर गोलियां मार रहे हैं। उनकी पूरी कोशिश यह है कि लोगों को डराया जा सके ताकि वे पलायन कर लें। इससे पहले पिछले साल वह लोगों की जानें ले रहे थे और इसकी तीखी आलोचना हुई थी। ऐसे में अब उन लोगों ने नया पैटर्न डिवेलप किया है ताकि लोगों को डराया जा सके और लोग कश्मीर से पलायन कर जाएं।’

आतंकियों के हमले का शिकार हुए बाल कृष्ण के भाई अनिल कुमार भट ने कहा कि हमारे पिता ने कश्मीर में रुकने का फैसला लिया था और उसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। भट ने कहा, ‘हमें एक गलत फैसले का परिणाम भुगतना पड़ रहा है। यदि हम 1990 में ही देश छोड़ देते तो फिर अच्छी नौकरियां मिलतीं और सरकार की स्कीमों का फायदा भी मिलता।’ यही नहीं उन्होंने कहा कि एक बार उनके भाई बाल कृष्ण अस्पताल से डिस्चार्ज हो जाएं तो फिर वह कश्मीर में रुकने के अपने फैसले पर विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसे माहौल में हम दुकानें नहीं खोल पाएंगे। हमारे लिए कारोबार करना मुश्किल होगा।

शोपियां के चोटीगाम गांव में फिलहाल पुलिस का पहरा है। कश्मीरी पंडितों के दो परिवारों को पुलिस सुरक्षा प्रदान की गई है। कश्मीर के आईजी विजय कुमार ने कहा कि सुरक्षा बलों ने फिलहाल नाइट पेट्रोलिंग भी शुरू कर दी है। खासतौर पर ऐसे इलाकों में सुरक्षा को बढ़ा दिया गया है, जहां प्रवासी मजदूरों की ज्यादा संख्या है।

हालांकि इस सुरक्षा के बाद भी अनिल भट का कहना है कि पुलिस हमारे घरों की सुरक्षा कर सकती है, लेकिन हमारी जान की नहीं। उन्होंने कहा कि यदि हमें यहां रहना है तो फिर बाजार, अस्पताल और अपने सेब के बागानों में जाना होगा। आखिर हम इन सभी जगहों पर पुलिसकर्मियों को कैसे ले जा सकेंगे। यही नहीं उन्होंने कहा कि हालात 1990 जैसे हो गए हैं, जब कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था।

 

 

 

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