उत्तराखंड

यूथ फ़ाउंडेशन की वीर बालाओं के करतब देखकर आप दातों तले अंगुली दबा देंगे

कुलदीप बगवाड़ी

यूथ फ़ाउंडेशन की वीरबालाओं को सलाम

तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि लड़कियाँ एरोबिक्स, बैम्बो क्लामिंग के साथ ही तमाम तरह के करतब दिखा रही हैं। यह कोई साधारण लड़कियाँ नहीं हैं। ये लड़कियाँ जीवन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए सेना में भर्ती होने को तत्पर हैं। सधे हुए कदम, जिस्म में फुर्ती और मन में यह विश्वास की आज की लड़की किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कम नहीं। यह साहस और हौसला साबित कर रहा है कि वीरबालाएं किसी भी चुनौती के लिए तैयार हैं।

यह तस्वीरें है देहरादून में यूथ फाउंडेशन द्वारा संचालित भारतीय थल सेना में भर्ती होने के लिए लड़कियों के प्रशिक्षण शिविर की। यह शिविर तीन माह चलेगा। शिविर में लड़कियों को सिखाया जा रहा है कि महिलाएं कैसे सशक्त हो सकती हैं। आज जब महिला हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चुनौतियों का सामना कर रही हैं तो देश की सीमाओं की रक्षा में वह पीछे क्यों रहे? देहरादून के इस कैंप में लगभग 200 वीरबालाएं हैं। यह कैंप लड़कियों के लिए अनूठी व नई पहल एनआईएम यानी नेहरू इंस्टीट्टूट आॅफ माउंटेनियरिंग के प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल की सौगात है। इन वीरबालाओं में से अधिकांश उत्तराखंड के सीमांत जिलों के दूर-दराज गांवों से आई हैं। इनके दिल में एक ही जज्बा है कि हम किसी से कम नहीं।

खुंखरी
गढ़वाल राइफल्स और गोरखा राइफल्स का सेना का वीरता और अदम्य साहस में एक स्वर्णिम इतिहास रहा है। परम्परागत रूप से गढ़वाल राइफल्स और गोरखा राइफल्स को ही खुंखरी दी जाती है। खुंखरी चलाने में दक्ष इन वीरबालाओं की बानगी देखते ही बनती है।

रोप क्लामिंग व होरेजेंटल बार
आज देश में आधी आबादी का युग है। यानी महिलाएं हर क्षेत्र में आसमान छू रही हैं। जरूरत है तो महज मौका मिलने का। अवसर मिले तो आज की महिला साबित कर सकती है कि वह शारीरिक बल में भी पुरुषों से कम नहीं है। रस्सी पर चढ़ना हो, या रस्सी से नदी-घाटी पार करनी हो। प्रशिक्षण ले रहीये वीरबालाएं यही दिखा रही हैं कि वो पुरुषों से कम नहीं हैं।

लांग जंप
वीरबालाओं को सेना में रहते हुए कई स्थानों पर छोटे नदी-नाले पार करने होंगे तो इन बालाओं को लम्बी कूद की सीख भी दी जा रही है। सभी लड़कियां छह फीट से अधिक छलांग लगाने में पारंगत हो चुकी हैं।

बैम्बो क्लामिंग
टीम वर्क और अनुशासन जीवन में बहुत जरूरी है। टीम वर्क से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। आतंकवादियों द्वारा किसी बिल्डिंग को कब्जे में कर दिये जाने पर किस तरह से बिल्डिंग में चढ़कर आतंकियों को सबक सिखाना है, इसके लिए भी ये वीरबालाएं तैयार हैं। एक बांस के डंडे के सहारे ये वीरबालाएं दो-तीन मंजिला भवन तक आसानी से चढ़ जाती हैं। ये कमाल का टीम वर्क है।

प्रशिक्षण ले रही नीतू रावत, सपना, मानसी जुयाल का कहना है कि पहाड़ की लड़कियां कठिनाइयों में जीवन जीती हैं। यदि उन्हें सेना में जाने का अवसर मिलता है तो वो साबित करेंगी कि वो लड़कों से किसी बात में कम नहीं। ये लड़कियां चमोली, पौड़ी, रुद्रप्रयाग और टिहरी के सीमांत गांवों से यहां ट्रेनिंग लेने पहुंची हैं ताकि ख़ुद को सशक्त बना सकें।

इन वीर बालाओं में कुछ ऐसी हैं जिनके परिवार से कोई भी आज तक फौज में नहीं रहा, लेकिन कुछ को विरासत में देशसेवा मिली है। समानता एक है कि ये लड़कियां देशभक्ति, देशसेवा और कुछ कर गुजरने की भावना से लबरेज हैं। वो साबित करना चाहती हैं कि लड़कियां जब हर क्षेत्र में लड़कों को चुनौती दे रही हैं तो थलसेना का क्षेत्र ही क्यों छूटे?

समाज में जिस तरह से महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं, इन लड़कियों में उसे लेकर आक्रोश है। प्रशिक्षण ले रही तनूजा का बचपन से ही सेना में जाने का सपना था। वह कहती है कि सेना में पहली बार महिला जवानों के लिए भर्ती के अवसर मिले हैं, वह अपना सपना पूरा करना चाहती है साथ ही उन पुरुषों या लड़कों को मुंहतोड़ जवाब दे सकती हैं जो लड़कियों से छेड़छाड़ करती हैं।

केदारनाथ आपदा भला कौन भूल सकता है। हजारों जिंदगी जलप्रलय का शिकार हो गयी तो पूरी केदारघाटी शोक में डूब गयी। किसी ने परिजन खोया, तो किसी ने धन-संपदा। इस त्रासदी के निशान आज भी केदारघाटी में बाकी हैं और दिलों में जख्म हैं जो शायद आजन्म रहेंगे। आपदा प्रभावित इलाके की इन कुछ लड़कियों ने ट्रेनिंग कैंप में आकर साबित किया है कि वो सशक्त बनेंगी, सबल बनेंगी। फौजी बनकर घर की आर्थिक स्थिति को सुधारेंगी और जरूरत पड़ी तो आपदा प्रबंधन में भी अपना योगदान देंगी।

 

तीन महीने तक चलने वाले इस कैंप में अबला से सबला बनाने की कहानी की शुरुआत सुबह चार बजे से होती है। कैंप में सुबह चार बजे से लेकर रात दस बजे तक का रूटीन है जो कि फौजी जीवन का हिस्सा है।

प्रशिक्षण में वो सभी गतिविधियां शामिल हैं जो एक रंगरूट यानी फौज में भर्ती होने वाले जवान को सिखाई जाती है। सभी अनुशासित और देश के प्रति समर्पण को दृढ़प्रतिज्ञ।

प्रशिक्षण में सबसे पहला चरण दौड़ का होता है। वीरबालाओं को फौज में भर्ती के लिए युवकों की तर्ज पर एक किलोमीटर 600 मीटर की दौड़ पूरी करनी होगी। युवकों के लिए यह दौड़ पांच मिनट 40 सेकेंड में पूरी करनी होती है। वीरबालाओं के लिए दूरी तो उतनी है लेकिन समय साढ़े आठ मिनट दिया है। कैंप में हर वीरबाला को इस तरह से दौड़ की तैयारी करवाई है कि वह आठ मिनट में ही दौड़ पूरी कर ले। फौज की तर्ज पर ही वीरबालाओं को पांच कंपनियों में बांटा गया है। पांच कंपनी कमांडर बनाए गये हैं जो हर ग्रुप को लीड करते हैं। शरीर को लचीला और सशक्त बनाने के लिए इन्हें एरोबिक्स के साथ पुश-अप, वजन उठाकर दौड़ना और राॅक क्लाइमिंग भी सिखाई जाती है।

सेना के जीवन को कठोर और अनुशासित माना जाता हैं। सेना में कदम-कदम पर चुनौतियां हैं और विषम परिस्थितियां भी। वीरबालाओं में ऐसा उत्साह और हौसला देखकर निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि यदि मौका मिले तो आज की महिला यह साबित करने में पीछे नहीं हटेगी कि वह अपनी रक्षा भी कर सकती है और देशरक्षा भी। यह महिला के सशक्त होने की दिशा में एक और बड़ा कदम है। दिन भर चली कसरत के बाद सूर्यास्त के समय ये वीरबालाएं मैदान में तेज कदमों और मजबूत इरादों से यही संदेश देती हैं कि महिला के सशक्त होने की दौड़ अभी जारी है और मंजिल बहुत करीब।

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