उत्तराखंड

सड़क हादसों में हर साल डेढ़ लाख मौतें, पैदल यात्री भी नहीं हैं महफूज, भयावह हैं ये आंकड़े..

सड़क हादसों में हर साल डेढ़ लाख से अधिक लोगों की जान चली जाती है।….

सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो पैदल यात्रा कर रहा व्‍यक्ति भी अब सुरक्षित नहीं रहा….

उत्तराखंड : हर साल डेढ़ लाख से अधिक लोगों की मौत सड़क हादसों में हो जाती है। इनकी व्यथा किसी उस परिवार से समझी जा सकती है जिसने अपने चिराग को इनमें खोया हो। उसका सामाजिक, आर्थिक और मानसिक संतुलन का तानाबाना छिन्न-भिन्न हो जाता है। उस परिवार के जीवन में आई इस शून्यता को कोई भी मुआवजा नहीं भर सकता है। आखिर हमारी सड़कों पर चल रहे इस खूनी खेल की गंभीरता के प्रति सरकार और समाज कब संजीदा होंगे। सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय के ट्रांसपोर्ट रिसर्च विंग के 2016 के आंकड़े भयावह दृश्य पेश करते हैं।

वर्ष 2016 में सड़क हादसों में 1,50,785 लोगों की मौत हुई जबकि 4,94,624 घायल हुए थे। आंकड़ों के मुताबिक, करीब एक लाख लोगों पर 12 मौतें सड़क हादसों में होती हैं। साल 2007 से सड़क हादसों में होने वाली मौतों में अब 32 फीसद इजाफा देखा गया है। साल 1970 से इसमें दस गुना वृद्धि दर्ज की गई है। आंकड़े बताते हैं कि दोपहिया वाहन सड़क हादसों की चपेट में ज्‍यादा आए। हिस्‍सेदारी के हिसाब से देखें तो दोपहिया वाहन 33.8 फीसद, कार जीप व टैक्‍सी 23.6 फीसद, ट्रक टेंपो व ट्रैक्‍टर 21 फीसद सड़क हादसों की चपेट में आए।

दोपहिया वाहनों के साथ हादसों में सर्वाधिक मौतें..

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दोपहिया वाहनों के साथ हुए सड़क हादसों में लोगों ने सबसे ज्‍यादा जान गंवाई। दोपहिया वाहनों के साथ दुर्घटनाओं में 34.8 फीसद, ट्रक के साथ 11.2 फीसद जबकि कार टैक्‍सी जैसे हल्‍के वाहनों के साथ हुए हादसों में 17.9 फीसद मौतें दर्ज की गईं। चौंकाने वाली बात यह कि सड़क के किनारे चलने वाले लोगों के साथ हुए हादसों में भी मौतों के मामले ज्‍यादा देखे गए। आंकड़ों की मानें तो पैदल यात्रियों के साथ हुए हादसों में 10.6 फीसद मौतें दर्ज की गईं। यहां तक कि साइकिल से चलने वाले भी महफूज नहीं रहे। साइकिल सवारों के साथ हुए हादसों में 1.7 फीसद मौतें दर्ज की गईं।

ये वजहें भी जिम्‍मेदार :

नौनिहालों की सुरक्षा : पांच लाख बसों से 2.7 करोड़ से अधिक बच्चे रोजाना स्कूल जाते-आते हैं। इनकी सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित कराना स्कूल प्रशासन से लेकर बस मालिक तक की जिम्मेदारी है।

जानलेवा डिजायन : इंस्टीट्यूट ऑफ रोड ट्रैफिक एजुकेशन के रोहित बालूजा ने अपने अध्ययन में पाया कि कहीं भी 160 किमी की परिधि में 500 से अधिक ब्लैक स्पॉट होते हैं। खराब डिजायनिंग के चलते जा रही इन जानों के लिए किसी पर कार्रवाई नहीं होती। संशोधित कानून में इसका प्रावधान है।

मित्रवत कानून : लॉ कमीशन के अनुसार सड़क हादसों में होने वाली कम से कम 50 फीसद मौतें रोकी जा सकती हैं यदि पीड़ितों को हादसे के पहले एक घंटे के नाजुक समय में चिकित्सा सुविधा मिल जाए। 2006 में इंडियन जरनल ऑफ सर्जरी के एक शोध में बताया गया है कि देश में हादसे के 80 फीसद पीड़ितों को इस ‘गोल्डेन ऑवर’ में आपात चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है।

असुरक्षित वाहन: भारतीय सड़कों पर दौड़ने वाली अधिकांश वाहन अंतरराष्ट्रीय क्रैश टेस्ट के मानकों पर खरे नहीं उतरते। सड़कों पर दौड़ रही सभी कारों में एयरबैग लगा दिए जाएं तो मौतों को रोका जा सकता है।

मदद में क्‍यों सकुचाते हैं लोग…

आम लोग सड़क हादसे में घायल व्‍यक्ति की मदद करने में सकुचाते क्‍यों हैं… इस संकोच का पता लगाने के लिए 2013 में सेव लाइफ फाउंडेशन नामक एक गैर सरकारी संगठन के सर्वे में पाया गया कि 88 फीसद लोग पुलिस और अदालत के समक्ष बार-बार पेश होने से बचने के लिए ऐसा करते हैं। लोगों का कहना है कि एक ऐसा मित्र कानून होना चाहिए जिससे बचाने वाले को इन झमेलों में न पड़ना पड़े।

दुनिया के कई देशों में सड़क सुरक्षा शीर्ष स्तर पर राजनीतिक प्रतिबद्धता में शामिल है। यहां के प्रबंधन को सड़क सुरक्षा की दृष्टि से सबसे सफल मॉडल माना जाता है…

अमेरिका : पिछली सदी के सातवें दशक के मध्य में यूएस हाईवे सेफ्टी एक्ट लागू किया गया। उसका मकसद संघीय सरकार और राज्य के सहयोग से राष्ट्रीय हाईवे सुरक्षा कार्यक्रम विकसित करना था। नतीजतन 1970 में नेशनल हाईवे ट्रैफिक सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन (एनएचटीएसए) की स्थापना की गई। इस वक्त अमेरिका में सड़क सुरक्षा की समस्याओं से निपटने की केंद्रीय इकाई है जो दुर्घटनाओं को रोकने के लिए हर प्रयास करती है।

ऑस्ट्रेलिया : सड़क सुरक्षा प्रबंधन देश की राजनीतिक प्रतिबद्धता में शामिल है। राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा रणनीतिक पैनल गठित किया गया है। यह राज्यों, क्षेत्रों और स्थानीय सरकारों के बीच सड़क सुरक्षा उपायों के मसले पर समन्वय स्थापित करने के लिए एक फ्रेमवर्क प्रदान करती है। राष्ट्रीय स्तर पर रणनीति बनाने के अलावा उपायों के संबंध में सफल राज्यों की सूचनाओं को अपेक्षाकृत कम सफल राज्यों को प्रदान करने का फोरम भी है।
स्वीडन : 1997 में स्वीडिश सरकार ने विजन जीरो लक्ष्य के साथ सड़क ट्रैफिक सुरक्षा बिल भारी बहुमत के साथ पास किया था। इसके लिए स्वीडिश नेशनल रोड एडमिनिस्ट्रेशन (एसएनआरए) गठित किया गया है। यह बीमा कंपनियों और ऑटोमेटिव इंडस्ट्री को भी सहयोग प्रदान करती है जोकि गाड़ियों के डिजायन में बदलाव करके सड़क सुरक्षा को सुधारने की दिशा में सक्रिय है।

ब्रिटेन : यातायात नीति के तहत 1974 में लागू किए गए रोड ट्रैफिक एक्ट के तहत स्थानीय एजेंसियों पर शिक्षा, इंजीनियरिंग और रोकथाम के उपायों के जरिये सड़क हादसों को कम करने का दारोमदार तय किया गया। 1988 में इस एक्ट का दायरा बढ़ाते हुए हाईवे अथॉरिटी को भी यह जिम्मेदारियां सौंप दी गईं। राष्ट्रीय स्तर पर इस नीति के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी रोड एंड व्हीकल सेफ्टी डाइरेक्टरेट के पास है।

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