श्रीनगर बांध ने थामे तबाही के कदम..
उत्तराखंड: ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट के बहने की सूचना और पानी के तेज बहाव की जानकारी, जैसे ही श्रीनगर जल विद्युत परियोजना को हुई। तो श्रीनगर जल विद्युत की पूरी टीम सतर्क हो गई। और उन्होंने तेजी से बहाव को नियंत्रित करने का काम शुरू कर दिया। कड़ी मशक्कत के बाद इंजीनियर कामयाब हो पाए। जिससे एक बहुत बड़ी तबाही होने से बच गई।
रविवार को सुबह जैसे ही ऋषिगंगा में ग्लेशियर टूटने के बाद ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट बहने की सूचना आई तो अंदाजा लग गया कि आपदा में पानी और मलबे का बहाव तेज है। इस बहाव को नियंत्रित करना सबसे जरूरी था, अन्यथा बाढ़ का खतरा ऋषिकेश व हरिद्वार तक हो सकता था। लिहाजा, श्रीनगर जीवीके जल विद्युत परियोजना की पूरी टीम बचाव कार्यों में जुट गई। तुरंत इस परियोजना ने झील में पानी का स्तर कम करने के लिए पानी को आगे के लिए छोड़ दिया। ताकि पीछे से आने वाले पानी को यही रोक कर उसकी गति को नियंत्रित किया जा सके।
करीब साढ़े चार घंटे के बाद श्रीनगर बांध की झील में पानी का तेज बहाव पहुंच गया। लेकिन यहां पहले से ही झील में जगह होने की वजह से स्थिति नियंत्रण में आ गई। एक बांध के टूटने से पानी का जो वेग बना था, उसके कदम श्रीनगर बांध की वजह से रुक गए।
आपदा में चमोली के पीपल कोटी पावर प्रोजेक्ट, एनटीपीसी के ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट और तपोवन हाईड्रो प्रोजेक्ट को काफी नुकसान पहुंचा है। धौलीगंगा पावर प्रोजेक्ट को भी नुकसान की खबर है। चमोली जिले में विष्णुगाड़ पीपलकोटी हाईड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट अलकनंदा नदी पर है। इस प्रोजेक्ट के लिए डायवर्जन डैम बनाए जा रहे थे, जिसकी ऊंचाई 65-70 मीटर तक होती है।
बांध की मदद से जो रिजवाइर तैयार किए जा रहे थे, उनमें पानी की स्टोरेज क्षमता 3.63 मिलियन क्यूबिक मीटर है। इस प्रोजेक्ट के दिसंबर 2023 तक शुरू होने की उम्मीद थी। यह प्रोजेक्ट 400 मेगावाट का है। ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट को भी काफी नुकसान पहुंचा है। ऋषिगंगा नदी अलकनंदा नदी की सहायक है। यह अपने भीतर 236 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी समेटता है। इस प्रोजेक्ट की क्षमता 35 मेगावाट है।