अपनी बोली भाषा के प्रचार में जुटे हैं अध्यापक नितीश
यूट्यूब चैनल पर दो सौ कविताओं को कर चुके हैं अपलोड
रुद्रप्रयाग। बसुकेदार घाटी के सांस्कृतिक प्रेमी एवं कवि नितीश भंडारी केदारघाटी में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। अपने निजी यूट्यूब चैनल गढ़काव्य एवं लोक संस्कृति के माध्यम से नितीश ने दो सौ से अधिक कविताओं एवं वीडियो को अपलोड किया है, जिससे देश दुनिया में गढ़वाली संस्कृति बोली एवं भाषा को पहचान मिल सके। कम समय में ही इनके चैनल के लाखों व्यूवर्स हो चुके हैं।
मूलतः बीरों देवल निवासी नितीश पेशे से अध्यापक हैं। उन्हांेने अपने लेखों एवं कविताओं के माध्यम से पलायन का दंश झेल रहे कई प्रवासियों पर तंज कसे हैं। साथ ही सरकार की पलायन नीति पर भी खुलकर भावनाएं व्यक्त की हैं। गढ़काव्य लोक संस्कृति चैनल के माध्यम से यख छा जू सब उंद जयां छिन, फेसबुक कू रोग, मसाण भी लेफ्ट हो गये हैं बल, बिजली दीनी पाणी दीनी सिलेंडरे दाणी दीली, हमारा गौं मां आजकल यू कन रोग लग्यूं च, जे ते द्येखा सु देहरादूण बटा लग्यूं च और बोट बैंक वणी ना रा, आपस मां मौ मिलाप करा, पार्टी वाद से भेर ऐके ये पहाड़ांे विकास करा आदि रचनाओं को जन-जन तक पहुंचाया है। साहित्यकार बिपिन सेमवाल की कहानी बीरा कहां हो तुम भी इस चैनल पर खूब सुर्खियां बटोर रही है।
कलश के प्रसिद्ध कवि ओमप्रकाश सेमवाल, मुरली दीवान, उपासना सेमवाल, जगदंबा चमोला, कविता भटृ, मनमोहन भटृ सहित कई अन्य नामी गिरामी कविओं एवं लेखकों के काव्यों को चैनल के माध्यम से लोगों के समक्ष पेश किया जा रहा है। अध्यापक श्री भंडारी बताते हैं कि गढ़वाली भाषा के विकास और जन-जन तक पहुंचाने की कवायद की जा रही है। भविष्य में चैनल के माध्यम से गढ़वाल की विशिष्ट हस्तिओं के काव्यों को भी लोगों तक पहुंचाया जायेगा, इसके लिये वे लगातार प्रयत्न शील है। उन्होंने कहा कि पहाड़ी क्षेत्र से लगातार पलायन हो रहा है। बढ़ते पलायन के चलते गांव वीरानी में तब्दील हो गये हैं। जो लोग पलायन कर रहे हैं, वे अपनी भाषा को बोलने से भी कतराते हैं। बाहरी शहरों में रहकर अपनी बोली-भाषा को बालने में शर्माते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से उत्तराखण्ड की बोली-भाषा पिछड़ रही है। ऐसे में जरूरी है कि अपनी बोली भाषा का प्रचार किया जायेगा।