उत्तराखंड

विदेशों में हिंदी का ज्ञान बांट रहा हैं टिहरी का युवक..

विदेशों में हिंदी का ज्ञान बांट रहा हैं टिहरी का युवक..

उत्तराखंड: भारतीय प्रोफेसर रामप्रसाद भट्ट जर्मनी सहित अन्य यूरोपिय देशों में भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को पहचान दिलाने की कोशिश में कार्य कर रहे हैं। जर्मनी के हैंम्बर्ग विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रामप्रसाद विदेश में हिंदी गहन अध्ययन नाम से पिछले कई वर्षों से कार्यक्रम चला रहे हैं। इस कोर्स में अब तक वह डेनमार्क, नीदरलैंड, पौलेंड, इटली आदि यूरोपियन देशों के 673 छात्रों को अब तक हिंदी भाषा पढ़ चुके हैं।

 

उत्तराखंड के टिहरी जिले के भल्डगांव बासर निवासी रामप्रसाद भट्ट को हिंदी साहित्य से विशेष लगाव है। छात्र जीवन में उन्हें हिंदी कविता व साहित्य लेखन का शौक था। उनका यही शौक हिंदी भाषा की सेवा के रूप में उनके जीवन का मकसद भी बना। प्रो. भट्ट ने बताया कि वह यूरोपियन देशों के छात्रों के लिए हिंदी गहन अध्ययन नाम से प्रति वर्ष अगस्त के प्रथम तीन सप्ताह में कोर्स संचालित करते हैं। साथ ही विदेशी छात्रों में यह कोर्स करने की होड़ भी लगी रहती है।

 

जर्मनी में वह एकमात्र ऐसे हिंदी के शिक्षक हैं जो इस तरह का कोर्स संचालित करते हैं। प्रो. भट्ट बताते हैं कि टिहरी बांध बनने के बाद उन्होंने वर्ष 2006 में टिहरी के लोकगीतों के सांस्कृतिक अध्ययन पर पीएचडी की थी। और 2018 से वह शास्त्रीय एवं लोक परंपराओं में पोस्ट डॉक्टरेट कर रहे हैं, जो अभी भी जारी है।

 

रामप्रसाद बताते हैं। कि वह बचपन में गांव में ही रहते थे और यहीं से ही उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1985-86 में उन्होंने राजकीय इंटर कॉलेज लाटा चमियाला से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की और इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह श्रीनगर गढ़वाल चले गए। और यही से हिंदी विषय में पीएचडी की। शिक्षा पूरी होने के बाद रामप्रसाद देहरादून जिले के मसूरी में एक स्कूल में अध्यापन कार्य शुरू किया। इसी दौरान मसूरी में एक जर्मनी निवासी महिला से रामप्रसाद की जान-पहचान हुई, और उन्होंने रामप्रसाद को जर्मनी आने के लिए प्रेरित किया।

 

प्रो. रामप्रसाद के बचपन के मित्र का कहना है कि छोटे से गांव से निकला होनहार आज जर्मनी में हिंदी का प्रोफेसर है इस पर आज पूरे गांव को ही नहीं, बल्कि क्षेत्रवासियों को भी गर्व है। हालांकि, पिछले 25 वर्षों से उनसे मुलाकात नहीं हो पाई है। लेकिन, गांव में सभी उन्हें डॉ. जर्मन के नाम से जानते हैं।

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