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हाँ, विद्या में शर्मिंदा हूं

मनमीत

विद्या बालान के बयान के बाद अंधराष्ट्रवाद के टैंक पर सवार उन्मादी गुरिल्ला जाहिलों की फौज ने गालियों की जबरदस्त बमबारी की। एक टांग पर मां भारती की पूजा करने वाले इन आक्रांताओं ने विद्या बालान को सोशल मीडिया साइट्स पर रंडी, वेश्या, नाचन्या की उपाधी देकर साबित कर दिया कि एक औरत दुनिया में कितनी अकेली हो सकती है। विद्या ने महज एक इंटरव्यू के दौरान ये बात कही थी कि मुंबई में उनके बॉलीवुड में आने से पहले वो संघर्षों के दिनों में लोकल ट्रेनों से अवागमन किया करती थी। एक दिन ट्रेन के इंतजार के दौरान उनके बगल में एक फौजी खड़ा था। जो उनके स्तनों को घूर रहा था। जब उन्होंने उसे टोका तो, उस फौजी ने उन्हें आंख मारी। इसका उन्होंने विरोध किया।

बहरहाल, इस इंटरव्यू में उसने भारतीय फौज पर कोई लाछंन नहीं लगाया। बल्कि सिर्फ इतना कहा कि स्टेशन में ट्रेन के इंतजार के दौरान एक फौजी उसे गंदी नजरों से घूर रहा था। इस बयान के बाद कुछ ही देर बाद एक फौजी का वीडियो भी वायरल हो गया। जो विद्या बालन को कविता के माध्यम से कह रहा है कि ‘जब तुम रुपये लेकर पिक्चरों में अपना शरीर दिखाती हो तो, एक फौजी ने अगर तुम्हे गंदी नजरों से तुम्हारे स्तन देख लिया तो उसमें क्या बुरा है’। वो एक महिला को गंदी नजरों से देखने को जस्टीफाई कर रहा था। चालिये, जिसकी जैसी समझ। लेकिन ये सच्चाई है कि हर दिन स्टेशनों में कथित पत्रकार, डाक्टर, इंजीनियर, नेता के रूप में कई सफेदपोश होते हैं। जिनकी नजरों में अश्लीलता का एक्सरे लगा होता है। ये ही सच है। हालांकि ये तब तक सच नहीं भी हो सकता। जब तक हमारी बहन खुद वहां पर खड़ी न हो।

लेकिन विद्या बालन के चलते ये तो पता चला कि देश की मानसिकता है क्या। हां, तुम वो ही हो। जो आज भी मनु स्मृति के अध्याय-दो श्लोक 298 को अपना सामाजिक सिद्वांत मानते हैं। लेकिन फिर भी तुम्हे बता दूं। विद्या बालन ही क्यों, एक वेश्या भी अगर किसी पब्लिक प्लेस में खड़ी है और उसके साथ कुछ अनैतिक हो। तो क्या उसका समर्थन किया जाना चाहिये। उस फौजी को तो चलो इतना अक्ल न हो कि जिस पिक्चर की वो बात कर रहा है। उसमें फिल्म को क्लासिकल पिक्चराइजेशन की डिमांड के हिसाब से विद्य बालन ने वो सीन 55 लोगों की टीम के सामने सुरक्षित तरीके से दिये। लेकिन उस सीन देने से बीस साल पहले विद्या जिस रेलवे स्टेशन पर थी। वहां वो उस फौजी के सामने अकेले और असुरक्षित थी। दोनों बातों को जोड़कर कैसे जस्टीफाई किया जा सकता है। वो महज एक सिनेमाई कला है। जिसको कला की नजरों से देखा जाना चाहिये। आप अगर हवस को आंखों में भर कर सिनेमा देखना जाते हैं तो वो आपकी एब्नॉमर्लटी है। आप आसामन्य है। आपको मनोचिकित्सक की जरूरत है। अपने घर वालों को बोलिये कि आप पर पैसा खर्च करे। नहीं तो कहीं हिल स्टेशन ही घूम आइये। दिमाग में ठंडा कोहरा लगेगा तो शायद कुछ समझ आ पाये।

जो भी है, उस दिन एक कथित फौजी की दो आंखों ने विद्या बालन को महज गंदी नजरों से देखा था। आज लाखों अंधराष्टवादियों ने अपने शब्दों से विद्या बालन के साथ दुराचार किया है। इसको जस्टीफाई कैसे किया जायेगा भला ?

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