उत्तराखंड

नीचे उफनती नदी, ऊपर झूलती जिंदगी, देखिये वीडियो..

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उत्तराखंड: देहरादून जिले में 11वीं में पढ़ने वाली तोलिया काटल गांव की संगीता के घर से स्कूत तक का फासला लंबा और मुश्किलों से भरा है। पहले तीन किमी पहाड़ी से उतकर नदी के किनारे पहुंचना पड़ता है। फिर उफनती सौंग नदी को ट्रॉली में बैठकर रस्सी खींचते हुए जान जोखिम में डालकर पार करना होता है। इसके बाद भी उबड़खाबड़ रास्ते पर चार किमी पैदल चलकर रगड़गांव इंटर कॉलेज पहुंचती हैं। पुल नहीं होने के कारण पढ़ाई के लिए यह जद्दोजहद संगीता के साथ-साथ सुनील राणा, नितिन और अभिनव पंवार समेत करीब 20 स्कूल बच्चों को रोजाना करनी पड़ती है।

 

यह व्यथा राज्य के किसी दुर्गम गांव की नहीं, बल्कि अस्थायी राजधानी दून से 22 किमी दूर मालदेवता के हिलांसवाली, सौंदणा क्षेत्र के लोगों की है। यह क्षेत्र मालदेवता पुल से करीब दस किमी दूर है। पूरा रास्ता कच्चा और खतरनाक है। सौंदणा, चिफल्डी, गवाली डांडा, तौलिया काटल गांव के लोगों के लिए सौंग नदी पर पुल नहीं है। यह टिहरी जिले में आते हैं। सौंग नदी के पार टिहरी जिला और इस तरफ देहरादून की सीमा है। बरसात में नदी उफान पर रहती है। ऐसे में नदी पार करने के लिए ग्रामीणों ने ट्रॉली लगाई है, जिसे स्थानीय लोग गरारी कहते हैं।

 

यही नदी को पार करने का जरिया है। ग्राम प्रधान रेखा देवी बताती हैं कि 10 साल पहले यहां पुल बनाने की कवायद शुरू हुई। करीब 40 मीटर स्पान पर पुल बनना था। काम शुरू होता तब तक बरसात में नदी का स्पान बढ़ गया। अब ये करीब 80 मीटर तक हो गया है। अब पुल की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन पिछले साल सौंग बांध परियोजना में यह क्षेत्र भी आ गया। सिंचाई विभाग के अंतर्गत यह क्षेत्र आ गया है। विस्थापन की अधिसूचना जारी हो चुकी है। इसलिए विकास कार्यों पर रोक लगी है। ऐसे में गरारी से आना-जाना मजबूरी है।

रस्सी के सहारे ट्रॉली से नदी पार करना जोखिम भरा है। दूसरे छोर पर कोई दूसरा मौजूद नहीं होता तो पार करने वाले को ही रस्सी खींचनी होती है। कई बार नदी के बीच में रस्सी अटक जाती है। सोमवार दोपहर को छात्रा संगीता नदी पार कर रही थी तो रस्सी अटक गई। फिर जैसे-तैसे छात्रा ने रस्सी को ढीला किया और दूसरे छोर पर पहुंचीं।

 

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