उत्तराखंड

देश-विदेश के श्रद्धालु कथा श्रवण में ले रहे भाग

देश-विदेश के श्रद्धालु कथा श्रवण में ले रहे भाग , कथा आयोजन के बाद धाम में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी , कथा के पांचवें दिन बाल गणेश महिमा का वर्णन

रुद्रप्रयाग। भगवान शिव के धाम केदारनाथ में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए महाशिव पुराण का आयोजन चल रहा है। कथा में हररोज सैकड़ों की संख्या में भक्त पहुंच रहे हैं। कांवड़ यात्रा पर आये श्रद्धालु दिव्य कथा में पहुंचकर आशीर्वाद ले रहे हैं। कथा प्रारम्भ से ही केदारनाथ में यात्रियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है।

केदार धाम में विगत चार साल से आपदा में दिवंगत आत्माओं की शांति एवं देश की सुख-समृद्धि के लिए महाशिव पुराण कथा का आयोजन किया जा रहा है। तीन अगस्त से शुरू हुई दिव्य कथा में हररोज भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। कथा के शुभारंभ से ही यात्रा में भारी इजाफा हुआ है, जिससे यात्रियों की संख्या का आंकड़ा फिर से तेजी से बढ़ने लगा है। बरसात होने से पुलिस के जवान श्रद्धालुओं की सेवा में जुटे हुए हैं। पांचवें दिन ज्योतिर्पीठ से अलंकृत ब्यास दीपक नौटियाल ने गणेश जन्म की कथा का वर्णन किया। उन्होंने श्रद्धालुओं को बताया कि बाल गणेश कैसे गजमुख बने। बताया कि देवी पार्वती ने एक बार शिव के गण नंदी द्वारा उनकी आज्ञा पालन में त्रुटि के कारण अपने शरीर के मैल और उबटन से एक बालक का निर्माण कर उसमें प्राण डाल दिये और कहा कि तुम मेरे पुत्र हो। तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना और किसी की नहीं। देवी ने पुत्र गणेश से यह भी कहा कि हे पुत्र मैं स्नान के लिए भोगावती नदी जा रही हूंॅ। कोई भी अंदर न आने पाए। कुछ देर बाद वहां भगवान शंकर आए और पार्वती के भवन में जाने लगे। यह देखकर उस बालक ने विनयपूर्वक उन्हें रोकना चाहा। बालक हठ देखकर भगवान शंकर क्रोधित हो गये। इसे उन्होंने अपना अपमान समझा और अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर भीतर चले गए।

स्वामी की नाराजगी का कारण पार्वती समझ नहीं पाईं। उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर भगवान शिव को आमंत्रित किया। तब दूसरी थाली देख शिव ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि यह किसके लिए है। पार्वती बोली ‘‘यह मेरे पुत्र गणेश के लिए है जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। क्या आपने आते वक्त उसे नहीं देखा? यह बात सुनकर शिव बहुत हैरान हुए और पार्वती को सारा वृत्तांत कह सुनाया। यह सुन देवी पार्वती क्रोधित होकर विलाप करने लगी। उनकी क्रोधाग्नि से सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं ने मिलकर उनकी स्तुति की और बालक को पुनर्जीवित करने के लिए कहा। तब पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी (गज) के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया।

देवताओं ने गणेश, गणपति, विनायक, विघ्नहरता, प्रथम पूज्य आदि कई नामों से उस बालक की स्तुति की। इस प्रकार भगवान गणेश का प्राकट्य हुआ। इस अवसर पर आचार्य आनन्द प्रकाश नौटियाल, मुख्य कार्याधिकारी बलवन्त सिंह, मुख्य पुजारी गंगाधर लिंग, प्रदीप सेमवाल, अरविंद शुक्ला, राजकुमार नौटियाल, संजय चमोली, अनसूया प्रसाद एवं समस्त तीर्थ पुरोहित समाज, साधु संत, भक्त जन मौजूद थे।

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