उत्तराखंड

आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा स्थापित मंदिर की दयनीय हालत..

लम्बे समय तक वर्षा न होने पर ईशानेश्वर महादेव में आकर करते हैं भक्त रात्रि जागरण..

देखरेख के अभाव में गिरने की कगार पर मन्दिर की दीवारें..

हर बरसात में भूस्खलन होने से बरगद वृक्ष की जड़े हो रही कमजोर..

रुद्रप्रयाग:  जिले के धारकोट में स्थित ईशानेश्वर महादेव मंदिर की हालत दयनीय बनी हुई है। देख-रेख और उपेक्षा के कारण यह मंदिर वीरान पड़ा है। कभी केदारनाथ और बद्रीनाथ जाने वाले तीर्थयात्री इस मंदिर में आराम करने के बाद आगे की यात्रा करते थे, मगर अब स्थिति ये है कि इस मंदिर की ओर कोई देखने तक को तैयार नहीं है।

बतातें हैं कि बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना को जाते समय आदि गुरू शंकराचार्य ने इस स्थान पर विश्राम किया और उन्होंने यहां पर शिवलिंग की स्थापना भी की। शंकराचार्य की ओर स्थापित यह शिवलिंग सिद्धपीठों में से एक तीर्थ माना जाता है। इसी मन्दिर के पुजारी पंडित भाष्करानंद सेमवाल ने बताया कि इस सिद्धपीठ की महत्व को जानने वाले लोग यहां आकर दर्शन-पूजन करते हैं, मगर इनकी संख्या बहुत कम है। यह स्थान आध्यात्मिक शांति का भी एक बहुत बड़ा और सिद्ध स्थान माना जाता है। गांव की 90 वर्षीय उम्रदराज महिला श्रीमती नौर्ती देवी ने बताती हैं कि आसपास के क्षेत्रों में जब कभी भी लम्बे समय तक वर्षा नहीं होती है तो लोग यहां आकर रात्रि जागरण करते हुए कीर्तन भजन करते हैं। श्रीमती नौर्ती देवी ने बताया कि उनके जीवन में कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी ने यहां वर्षा की चाह में रात्रि जागरण किया हो और उन्हें निराशा हुई हो।

 

 

हमेशा वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह ब्रह्ममुहूर्त में वर्षा से भीगता हुआ ही लौटा है। श्रीमती नौर्ती देवी की बातों की ही प्रतिपुष्टी करते हुए गांव के बुजुर्ग राम सिंह मल ने बताया कि उनके जीवन में कई बार ऐसा हुआ कि वर्षा की चाहत में हमने यहां पर कीर्तन भजन किए और सुबह सीधे खेतों में ही खेती-किसानी के लिए गए। इस स्थान की सबसे बड़ी सुन्दरता यहां उत्तराखंड का सबसे बड़ा तथा विस्तृत बरगद वृक्ष है। एक वर्ग किलोमीटर से अधिक के क्षेत्र में फैला यह बरगद पक्षियों की अनेक प्रजातियों का निवास स्थल भी है, लेकिन संरक्षण के अभाव में यह मन्दिर तथा बरगद वृक्ष दर्शकों, पर्यटकों व श्रद्धालुओं की नजरों से दूर है। गांव के सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व प्रधान रिटायर्ड सूबेदार नारायण दत्त तिवाड़ी का कहना है कि देखरेख के अभाव में मन्दिर की दीवारें टूट कर गिरने की कगार पर हैं तथा हर बरसात में बरगद वृक्ष के आस-पास की जमीन पर भूस्खलन के कारण बरगद वृक्ष की जड़े कमजोर होती जा रही हैं।

उन्होंने पर्यटन विभाग से मांग करते हुए कहा कि यदि इस वृक्ष और स्थान की सुध ली जाती है तो यह एक तीर्थ स्थल के साथ-साथ पर्यटन स्थल बनकर सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बन सकता है। गांव के ही सामाजिक कार्यकर्ता 83 वर्षीय बुजुर्ग उदय सिंह रावत ने कहा कि बद्रीनाथ राजमार्ग से इस स्थल को लिंक रोड़ के माध्यम से भी जोड़ा जा सकता है। इससे यह मार्ग सणगू-सारी मोटर मार्ग से जुड़कर वैकल्पिक बायपास मोटर मार्ग का भी काम कर सकता है, जिससे रुद्रप्रयाग शहर पर पड़ने वाले भारी ट्रैफिक दबाव और जाम से भी पूरी तरह निजात मिल सकेगी। ग्राम पंचायत के निवर्तमान प्रधान नरेन्द्र सिंह नेगी ने बताया कि मंदिर के जीर्णोद्धार तथा रख रखाव के लिए कई बार जनप्रतिनिधियों व प्रशासन से मौखिक व लिखित ज्ञापन दिया गया, लेकिन किसी भी स्तर से कोई कार्यवाही नहीं हुई। उन्होंने शासन-प्रशासन से मांग करते हुए कहा कि सिद्धपीठ स्थल के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए, ताकि वटवृक्ष रूपी इस धरोहर को संरक्षित और सुरक्षित रखा जा सके।

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