1962 के बाद भारत और चीन के बीच 1967 में भी एक छोटा युद्ध लड़ा गया था
चीन जब भी भारत को धमकाने की कोशिश करता है , लेकिन वह भूल जाता है कि 1967 और 1986 में उसको भारत ने करारा जवाब दिया था।
नई दिल्ली : सिक्किम से लगते इलाके डोकलाम में चीन की गुस्ताखी तो आपको याद ही होगी। साल 2017 में चीन ने डोकलाम क्षेत्र में न सिर्फ माहौल खराब किए रखा, बल्कि बार-बार 1962 युद्ध की याद भी भारत को दिला रहा था। यह तो आपको ज्ञात ही होगा कि 1962 के युद्ध में भारत को हार का मुंह देखना पड़ा था। चीन अपना रवैया तो नहीं बदलेगा, लेकिन लगता है वह इतिहास को भी छानकर याद रखता है। हमारे इस पड़ोसी देश को 1962 तो याद है, लेकिन वह इसके बाद भारत के दिए घाव पूरी तरह से भूल गया है। 1962 के बाद भारत और चीन के बीच 1967 में भी एक छोटा युद्ध लड़ा गया था। दो दिन चले इस युद्ध में चीन को बुरी तरह मात खानी पड़ी थी।
अक्साई चिन के बाद चोला हड़पने की कोशिश
साल 1962 के बाद चीन ने भारत के अक्साई चिन को हड़प लिया था। इसके बाद ड्रैगन ने 1967 में भारत-चीन और भूटान के बीच आने वाले चोला इलाके को भी हड़पने की कोशिश की। लेकिन इस बार चीन को बुरी तरह से मुह की खानी पड़ी थी। भारतीय सेना ने उस वक्त चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन चीन अपने इस इतिहास को भूल जाता है, उसे सिर्फ 1962 याद रहता है। दो दिन चली यह लड़ाई 1 अक्टूबर 1967 को शुरू हुई थी और 2 अक्टूबर 1967 को चीनी सैनिकों के भागने के साथ खत्म हुई।
क्या हुआ था उस वक्त
दरअसल उस समय चीन के सैनिक चोला इलाके को जिसको ‘डोकलम प्लेटू’ कहा जाता है और जिसमें भूटान भी आता है, में दाखिल हो गए थे। उस वक्त चीन भारत की उन चोटियों को हड़पने की कोशिश कर रहा था जो इस इलाके में आती हैं। भारत ने समय रहते चीन को करारा जवाब दिया। दो दिन की इस लड़ाई में हमारे करीब पचास जवान शहीद हो गए थे, लेकिन भारतीय सेना ने चीन के 300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। इससे चीनी सेना में खलबली मच गई। भारतीय सेना ने बचे हुए चीनी सैनिकों को न सिर्फ दूर तक खदेड़ दिया था, बल्कि उनकी हिम्मत इस कदर तोड़ दी कि उन्होंने दोबारा इस तरफ पलटकर नहीं देखा।
चीन है कि मानता नहीं
चीन ने एकबार फिर 1986 में अरुणाचल प्रदेश के स्ंग्दोंग्चू इलाके में की थी। यह क्षेत्र तवांग के उत्तर में स्थित है। तब भी भारत ने चीन के सैनिकों को काफी पीछे तक खदेड़ दिया था। भारत से मिली इस करारी हार को छिपाने के लिए चीन ने तिब्बत में सेना की कमान संभाल रहे अपने मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट कमांडर और मिलिट्री रीजन के चीफ को भी पद से हटा दिया था। उस वक्त भारतीय सेना की कमान जनरल सुंदरजी के हाथों में थी। इस मिशन को ऑपरेशन फॉलकॉन का नाम दिया गया था। जानकार मानते हैं कि डोकलम इलाके में आखिरी बार गोली सन् 1967 में चली थी, उसके बाद यहां पर कभी गोली नहीं चली है। सिक्किम के इस इलाके में करीब 8 साल तक अपनी सेवाएं देने वाले रिटायर्ड मेजर जनरल पीके सहगल ने डोकलाम विवाद के बताया था कि यह इलाका कितना संवेदनशील है और चीन इस पर क्यों आंख लगाए बैठा है।
सहगल का कहना था कि आज की तारीख मे भारत की आर्मी लगातार बैटल टेस्ट पर है, जबकि चीन ने 1962 के बाद से कोई जंग नहीं लड़ी है। इसलिए भी भारत का पलड़ा भारी है। इसके अलावा इस पूरे इलाके में स्थित चुम्बी वैली सबसे निचली चोटी है। वहां मौजूद दूसरी चोटियां इससे कहीं ज्यादा ऊंची हैं और इन पर भारत का कब्जा है। इनमें चुंबो-ला चोटी भी है। यदि एक बार को यह मान भी लेते हैं कि चीन की फौज यहां पर आ जाती है तो यहां पर ज्यादा समय तक रुक पाना उसके लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि भारतीय सेना यहां की ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाए हुए है और किसी भी विपरीत परिस्थिति में चीन को काफी नुकसान पहुंचा सकती है।