रोहित डिमरी
”मिट्टी के आशियानों में है सकून, पारंपरिक है खान-पान, सीढ़ीनुमा खेत-खलियानों की मिट्टी में है जान, हर ऋतुओं में पकने वाली फसलों की सौंधी खूशबू, शुद्ध हवा पानी, यही तो है मेरे पहाड़ की पहचान।
ये पंक्तियाँ किसी कवि ने नहीं, बल्कि उस व्यक्ति ने लिखी हैं जो वर्षों से खेती करके समाज को आइना दिखा रहे हैं। उनका मानना है कि कृषि ही हमारी पहचान है। आज के दौर में जहां खेती से लोग विमुख होते जा रहे हैं और पलायन भी तेजी से बढ़ रहा है, वहीं जिले के दूरस्थ घोड़साल गांव निवासी 51 वर्षीय कर्मठ उद्यमी गंभीर सिंह चैधरी पारंपरिक बागवानी कर पहाड़ की मिट्टी में सोना उगल रहे हैं।
कृषक गंभीर सिंह पच्चीस वर्षों से पारम्परिक बागवानी करते आ रहे हैं, जिसकी विद्या उन्होंने अपने पिता से सीखी और बखूबी इस कार्य को सफलता की ऊंचाइयों तक भी पहुंचाया। वे अपने खेतों में पारंपरिक विधि से बागवानी कर रहे हैं, जिसमें पहाड़ी आलू, प्याज, लौकी, कद्दू, सफेद-ब्राउन राजमा, सुनहरी हरी ककड़ी, शिमला मीर्च, भिंडी सहित अन्य पौष्टिक तरकारियां शामिल हैं। कृषक गंभीर सिंह के परिवार की आमदानी बागवानी से ही चलती है।
इतना ही नहीं उन्होंने अपने दो पुत्रों को अच्छी शिक्षा देकर भारतीय सेना में जाने के काबिल भी बनाया। उनके दोनों पुत्र भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कृषक गंभीर सिंह साल में आलू की दो फसले पैदा करते हैं, जिससे उनको 50 से 60 कुंतल प्राप्त हो जाता है और इससे अच्छी आय भी प्राप्त होती है। वे आलू को स्थानीय मार्केट तथा अन्यत्र ग्रामीणों को बेचते हैं। इसके अलावा मौसम के हिसाब से उगने वाली पहाड़ी तरकारियां जैसे प्याज, लौंकी, कद्दू, भिंडी, शिमला मिर्च से भी उनकी अच्छी आय होती है। स्थानीय दुकानदार और ग्रामीण लोग दूर-दूर से सब्जी लेने उनके पास पहुंचते हैं। उन्होंने मसाले वाली इलाइची भी उगायी है, जिसमें वो सफल हो रहे हैं। इस इलाइची की डिमांड काफी है।
साल में इसकी एक ही फसल होती है, जिससे उन्हें बीस किलो से अधिक प्राप्त हो जाता है। इलाइची का बाजार मूल्य बारह सौ रूपये किलो है और इस फसल को जंगली जानवर भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। ऐसे में काश्तकारों के लिए यह आय का अच्छा जरिया बन जाता है। उनकी मेहनत को उद्यान विभाग ने भी सराहा है और सरकारी तौर पर कुछ योजनाओं से लाभान्वित करने का भी प्रयास किया, जिसमें पाॅलीहाऊस, पानी स्टोर के लिए टैंक, सप्लाई पाइप लाइन उन्हें दिये गये हैं। जैविक खाद का प्रयोग कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ा रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने जैविक पिट बनाया हुआ है। जिसमें वे जंगल से सड़ी पत्तियों तथा पशुओं का गोबर डालकर खाद तैयार करते हैं।
काश्तकार गंभीर सिंह फसलों को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रखने के लिए पौराणिक मकान में लकड़ी तथा मिट्टी के कमरों में परंपरागत भण्डारण विधि (कोल्ड विधि) भी बनाये हैं, जिसमें सब्जियां काफी लम्बे समय तक सुरक्षित तथा आगामी फसल के लिए महफूज रहती है। क्षेत्र में बरसाती मौसम में सड़कें बंद हो जाती हैं, जिसके बाद सब्जियों की सप्लाई नहीं हो पाती है। ऐसे में कृषक गंभीर सिंह की सब्ज़ियाँ ही क्षेत्र में सप्लाई की जाती है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में आपूर्ति पूरी की जाती है। बागवानी के साथ-साथ कृषक गंभीर सिंह पारम्परिक मधुमक्खी पालन का कार्य भी सफलता पूर्वक कर रहे हैं। अपने ही घर पर हनी बाॅक्स लगाये हुए हैं। उनकी माने तो मधुमक्खियों से तीन अलग-अलग किस्म का हिमालयन मल्टी फ्लोरा प्रकार का शहद प्राप्त होता है।
तकरीबन 50 से 60 किलो शहद का उत्पादन हो रहा है, जिसकी डिमांड भी काफी है और छः सौ से एक हजार प्रति किलो भी बिक रहा है। वे पारम्परिक मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण भी ग्रामीणों को दे रहे हैं।
पत्नी का मिला पूरा साथ
रुद्रप्रयाग। कहते हैं यदि जीवन संगनी का साथ मिल जाय तो कार्य करने की क्षमता और अधिक बढ़ जाती है। गंभीर सिंह भी इसी कड़ी के पहलू हैं। उनकी पत्नी छोटी देवी खेती में उनका पूरा साथ देती हैं। हर काम उनके साथ हाथ बंटाती हैं। खुशमिजाज छोटी देवी कहती हैं कि उन्हें अपने पति के इस काम से खुशी मिलती है। उनकी माने तो जो बात गांव में है, वह शहरी इलाकों में नहीं है। थोड़ी लगन और मेहनत के जरिये पहाड़ की मिट्टी सोना उगल देती है।
नहीं मानी पुत्रों की बात
रुद्रप्रयाग। कृषक गंभीर सिंह चौधरी के पुत्रों ने उन्हें कईं बार शहर में रहने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने अपने ही गांव में रहना उचित समझा। उनकी माने तो शहर की भागदौड़ की जिंदगी में एक पल का भी चैन नहीं है। गांव की स्वच्छ आबोहवा और ताजी सब्जी शहरों में नहीं मिलती है। शहर में जीवन जीना काफी मुश्किल हो गया है।
पहाड़ी क्षेत्रों से आज पलायन बढ़ता जा रहा है। युवा वर्ग शहरों में जाकर नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं, जबकि गांव में रहकर खेती करकर अच्छी आमदनी कमाई जा सकती है। कृषक गंभीर सिंह चौधरी पारम्परिक बागवानी से अपने ही गांव में अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं। अन्य ग्रामीणों को भी कृषक से सीख लेने की आवश्यकता है। इनसे प्रेरणा लेकर पारम्परिक बागवानी का कार्य शुरू किया जाना चाहिए। कृषक गंभीर सिंह क्षेत्र के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने हैं और एक मेहनती उद्यमी के रूप में जाने जाते हैं।
सतेन्द्र भंडारी
शिक्षक एवं पर्यावरण प्रेमी
पारम्परिक उद्यानिकी आने वाले समय के लिए वरदान है, जिसकी शुरूआत कृषक गंभीर सिंह चैधरी ने नब्बे के दशक से कर दी है। बढ़ते रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी लगातार प्रदूषित होती जा रही है। वहीं पहाड़ की मिट्टी अभी इन चीजों से अछूती है, जो सबसे अच्छी बात है। मुझे खुशी है मेरे क्षेत्र में ऐसे उद्यमी भी हैं, जो पारम्परिक उद्यानिकी कर मिसाल बने हुए हैं। निःसंदेह कृषक चौधरी आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा के स्त्रोत साबित होंगे।
जगत सिंह चैधरी ”जंगली“
पर्यावरण विद
ग्रीन एम्बेंसडर उत्तराखण्ड