उत्तराखंड

आओ, हिसाब लगाएं, क्षेत्रीय दल कहां खड़े हैं?

सल्ट उपचुनाव में क्षेत्रीय दलों को मिले 2.26 प्रतिशत वोट..

कांग्रेस-भाजपा छोड़कर सभी उम्मीदवारों को मिले महज 5.09 प्रतिशत वोट..

उत्तराखंड: सल्ट उपचुनाव को मेरे पत्रकार मित्र सेमीफाइनल बता रहे हैं। मैं नहीं मानता। क्योंकि उपचुनाव में सत्ताधारी दल जीत जाता है। इस बार कांग्रेस की गंगा पंचोली इस मिथक को तोड़ देती यदि उसके पास पैसा होता या भितरघात नहीं होता। कांग्रेस का एक धड़ा हरदा को नीचा दिखाने में जुटा है। और गंगा इस राजनीति की शिकार हो गयी। भाजपा ने सल्ट में पूरी सरकार उतार दी। संसाधन झोंक दिये। कोरोना से विधायक सुरेंद्र जीना की असमय मृत्यु होने की सहानुभूति भी भाजपा के पास थी तो भी भाजपा कुल 41 हजार906 मतों में से 21874 मत ले गयी यानी 52.2 प्रतिशत मत।

 

गंगा पंचोली को हरदा की मार्मिक और भिटोली देने की अपील का भी असर नहीं हुआ। हरदा ने देवी देवताओं से भी गंगा की जीत की प्रार्थना की पर काम नहीं आयी। विभीषण तो पार्टी के अंदर था तो भगवान भी क्या करते? मेरा इतना कहना है कि यह बिल्कुल भी 2022 के चुनाव का सेमीफाइनल नहीं था। हां होता, यदि यहां से तीरथ सिंह रावत और हरीश रावत चुनाव लड़ते।

 

अब बात क्षेत्रीय दलों की। उत्तराखंड क्रांति दल समर्थित पान सिंह रावत को 2012 चुनाव में मिले 600 वोट से भी कम वोट मिले। उनको 346 वोट यानी 0.83 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए। पीपुल्स पार्टी के नंदकिशोर को 209 यानी 0.5 प्रतिशत, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के जगदीश चंद्र को 493 यानी 1.18 प्रतिशत वोट मिले। शिव सिंह को 466 यानी 1.10 प्रतिशत वोट तो सुरेंद्र सिंह को 620 वोट यानी 1.42 प्रतिशत वोट मिले। जबकि नोटा को 721 यानी 1.72 प्रतिशत वोट मिले। यानी सल्ट की जनता ने भाजपा और कांग्रेस के बाद नोटा को चुना। यही चिन्ता की बात हैं। क्षेत्रीय दलों को इस चुनाव में कुल 2.34 प्रतिशत मत मिले और निर्दलीय समेत 5.09 प्रतिशत। क्षेत्रीय दलो, मंथन करो और तय करो कि मिलकर लड़ोगे या यूं ही अपनी बेइज्जती कराते रहोगे?

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