उत्तराखंड

पहाड़ के लोगों को फिर लुभा रहे हैं सदियों पुराने ये मनोरंजन के साधन

कुलदीप बगवाड़ी

गुप्तकाशी : आज टेलीविजन, इंटरनेट और मनोरंजन के दर्जनों साधनों की उपलब्धता के बाद भी एक बार फिर पहाड़ के लोग सदियों पुराने मनोरंजन के साधनों की ओर मुड़ रहे हैं. मनोरंजन की इन परम्परागत विधाओं से यहां के निवासियों की धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भूख और आवश्यकता की पूर्ति तो होती ही है, साथ ही मनोरंजन भी होता है.

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के तुलंगा (गुप्तकाशी ) गांव के साथ ही अनेक गांवों में इन दिनों पांडव नृत्य का आयोजन हो रहा है. कई गांवों में ये आयोजन 15 से अधिक सालों के बाद हो रहे हैं.

उत्तराखंड को पांडवों की धरती भी कहा जाता है। मान्यता है कि पांडव यहीं से स्वार्गारोहणी के लिए गए थे। इसी कारण उत्तराखंड में पांडव पूजन की विशेष परंपरा है। बताया जाता है कि स्वर्ग जाते समय पांडव अलकनंदा व मंदाकिनी नदी किनारे से होकर स्वर्गारोहणी तक गए। जहां-जहां से पांडव गुजरे, उन स्थानों पर विशेष रूप से पांडव लीला आयोजित होती है। प्रत्येक वर्ष नवंबर से लेकर फरवरी तक केदारघाटी में पांडव नृत्य का आयोजन होता है।

बताया जाता है कि जाड़ों के मौसम में पहाड़ में खेती-किसानी नहीं होने से आम-जनमानस फुर्सत में होता है. इन त्यौहारों के बहाने बहन-बेटियां भी मायके आती हैं. पांडव नृत्यों का आयोजन 21 से लेकर 45 दिन तक का होता है. उत्तराखंड में केदारनाथ से लेकर हर मंदिर से पांडवों से जुड़ी कथाएं प्रचलित हैं.

यहां के स्थानीय निवासी पांडवों की देवताओं के रूप में पूजा करते हैं. पांडव नृत्यों के आयोजन में पांडव आवेश में परम्परागत वाद्य यंत्रों की थाप और धुनों पर नाचते हैं. पांडव नृत्य में युद्ध की सदियों पुरानी विधाओं जैसे चक्रव्यू, कमल व्यू, गरुड़ व्यू, मकर व्यू आदि का भी आयोजन होता है. रात्रि में पांडव लीला के आयोजन में महाभारत की कथाओं का मंचन भी होता है.

तुलंगा गांव पांडव नृत्य से जुड़ी खास बातें

तुलंगा गांव में पांडव नृत्य का आयोजन 6 वर्षो के बाद हो रहा है, पांडव नृत्य का लुप्त उठाने और उत्साह बढ़ाने के लिये क्षेत्रीय जनता ने भी आज पहले दिन में बढ़ चढ़कर के हिसा लिया,  पांडव नृत्य के पहले  दिन में मुख्य अतिथि गांव प्रधान श्रीमती प्रमिला देवी और छेत्र पंचायत अधक्ष्य श्रीमती सरिता देवी, पांडव नृत्य  समिति अधक्ष्य कमल सिंह राणा,नवयुवक मंगल दल अधक्ष्य दयाल सिंह,विजय सिंह, शक्ति सिंह, शैलेंद्र सिंह, विजेन्द्र सिंह अन्य ग्रामवासी और क्षेत्रीय जनता मौजूद रही , क्षेत्रीय युवा नवीन रावत बताते है की अपनी परम्परा, वाद्य यंत्रों और लोक संस्कृति से जोड़े रखने का ये एक अच्छा प्रयास है

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top