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विश्व प्रख्यात साहित्यकार हिमांशु जोशी का दिल्ली में निधन, अधूरी रह गयी अंतिम इच्छा…

विश्व प्रख्यात साहित्यकार हिमांशु जोशी का दिल्ली में निधन, अधूरी रह गयी अंतिम इच्छा…

उत्तराखंड : उत्तराखंड में चंपावत जिले के खेतीखान निवासी विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार हिमांशु जोशी का 83 वर्ष की आयु में बृहस्पतिवार देर रात दिल्ली में निधन हो गया है। वह लंबे समय से बीमार थे। उनके निधन से साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति पहुंची है। उनके निधन का समाचार मिलते ही चंपावत और खेतीखान इलाके में शोक की लहर है। वह प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. पूर्णानंद जोशी के बेटे थे।
हिमांशु जोशी के उपन्यास सुराज, तर्पण, सूरज की ओर आदि कहानियों पर फिल्में बनी हैं। धारावाहिक ‘तुम्हारे लिए’ का निर्माण भी हुआ है। हिमांशु ने शरत चंद्र के उपन्यास चरित्रहीन पर आधारित रेडियो धारावाहिक का निर्देशन भी किया। वह नार्वे से प्रकाशित पत्रिका ‘शांतिदूत’ के विशेष सलाहकार भी थे। वह हिंदी अकादमी दिल्ली की पत्रिका इंद्रप्रस्थ भारती के संपादन मंडल के सदस्य भी रहे। उनके लिखे साहित्य का कई भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है।

खेतीखान में पुस्तकालय खोलना चाहते थे जोशी

हिमांशु जोशी के निधन पर खेतीखान सहित समूचे क्षेत्र में लोग शोक में डूबे हुए हैं। लोगों का कहना था कि हिमांशु जोशी के निधन से साहित्य के क्षेत्र में एक अपूर्णीय क्षति हुई है। खेतीखान में शिक्षाविद सीएल वर्मा के नेतृत्व में लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। वर्मा ने बताया कि हिमांशु जोशी खेतीखान क्षेत्र के युवाओं के लिए पुस्तकालय स्थापित करना चाहते थे।

नारायण दत्त, कुंदन बोहरा, जगदीश गहतोड़ी, दिनेश गहतोड़ी, नवीन बोहरा, नवीन वर्मा, देवकी नंदन, सुशील जोशी, जीवन जोशी, योगेश ओली, हरिशंकर ओली, भैरव ओली, आईडी ओली, माधवानंद गहतोड़ी, संदीप कलखुड़िया आदि ने दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी।
‘कगार की आग’ उपन्यास से मिली थी विश्व प्रसिद्ध लोकप्रियता दलितों की समस्या पर लिखे गए हिमांशु जोशी के उपन्यास ‘कगार की आग’ को विश्व प्रसिद्ध लोकप्रियता मिली थी। चार मई 1935 में खेतीखान के जोस्यूड़ा गांव में जन्मे हिमांशु जोशी ने आठवीं तक की शिक्षा खेतीखान के वर्नाकुलर हाईस्कूल में की थी। उसके बाद वह पढ़ाई के लिए नैनीताल चले गए थे। हिमांशु जोशी अंतिम समय तक पहाड़ के सरोकारों और अपनी माटी से जुड़े रहे। वर्ष 2009 में पहाड़ पत्रिका के रजत जयंती कार्यक्रम में वह बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे।

वह दो-तीन साल के अंतराल में लगातार खेतीखान आते रहते थे। उनके तीन बेटे हैं, जिनमें से सबसे बड़े पुत्र अमित जोशी वर्तमान में नार्वे में एसोसिएट ज्यूरी के जज हैं। उनके पारिवारिक मित्र देवेंद्र ओली बताते हैं कि काफी मशहूर शख्सियत होने के बाद भी वह अपने लोगों के बीच तड़क भड़क से दूर बेहद साधारण तरीके से रहते थे। उन्होंने अपनी माता तुलसी देवी की स्मृति में 1998 से जीजीआईसी और जीआईसी खेतीखान में मेधावी छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति का वितरण शुरू किया था।

आंचलिक कहानियों के प्रणेता थे हिमांशु

साहित्यकार हिमांशु जोशी को आंचलिक कहानियों का प्रमुख प्रणेता माना जाता है। वर्ष 1956 से पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने वाले हिमांशु ने कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में संपादन के साथ ही आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए भी कार्य किया। कगार की आग और सुराज के अलावा उनके उपन्यासों में अरण्य, महासागर, छाया मत छूना मन, समय साक्षी है, तुम्हारे लिए आदि शामिल हैं।

इसके अलावा उन्होंने कई कहानी संग्रह, कविता संग्रह और आंचलिक कहानियां लिखी हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, हिंदी अकादमी दिल्ली, राजभाषा विभाग बिहार की ओर से पुरस्कृत किए जाने के साथ केंद्रीय हिंदी संस्थान की ओर से गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

इंदिरा गांधी का साक्षात्कार लेकर बटोरीं थी सुर्खियां

हिमांशु जोशी मशहूर साहित्यकार मनोहर श्याम जोशी के बाद साप्ताहिक हिंदुस्तान पत्रिका के संपादक बने। इस दौरान हिमांशु जोशी ने विभिन्न विषयों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का साक्षात्कार लेकर खूब सारी सुर्खियां बटोरी थी।

शिक्षाविद चिरंजीलाल वर्मा बताते हैं कि हिमांशु को हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू भाषा का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने नील नदी का वृक्ष, जीवनी तथा खोज- अमर शहीद अशफाक उल्ला खां, यात्रा वृतांत यातना-शिविर में (अंडमान की अनकही कहानी), समय की शिला पर, बाल साहित्य-अग्नि संतान, विश्व की श्रेष्ठ लोककथाएं, तीन तारे, बचपन की याद रही कहानियां लिखी।

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