उत्तराखंड

किस ‘धर्मयुद्ध’ की बात कर रहे हो “सरकार”

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत

योगेश भट्ट
अब ‘सरकार’ ने नया ‘राग’ छेड़ा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘धर्मयुद्ध’ लड़ रहे हैं । मालूम है कि ‘धर्मयुद्ध’ किसे कहते हैं, धर्मयुद्ध मतलब महान उद्देश्य के लिये लड़ा जाने वाला न्यायपूर्ण युद्ध। धर्मयुद्ध आज जरूरी है, पर यह यूं ही नहीं लड़े जाते। ‘धर्मयुद्ध’ लड़ने के लिये ‘अपने’ ‘पराये’ के भेद से ऊपर उठना होता है। सवाल यह है कि प्रदेश में अगर वाकई भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई ‘धर्मयुद्ध’ लड़ा जा रहा है तो क्यों तीन सौ करोड़ के एनएच घोटाले में एक भी आईएएस, मंत्री या विधायक का नाम सामने नहीं आया अभी तक ? क्या बिना बड़े अधिकारियों और सफेदपोशों के शामिल हुए इतना बडा घोटाला संभव है ?

आज एसआईटी इसकी जांच कर रही है, सच यह है कि वह इन बड़े रसूख़दार तक कभी पहुंच ही नहीं सकती। इतने बड़े घोटाले की सीबीआई जांच न होने के पीछे आखिर कोई तो कारण है।अब बात खाद्यान घोटाले की, सरकार ने एनएच घोटाले से ध्यान हटाने के लिये पूर्व सरकार का एक खाद्यान घोटाला खोला । इसके खुलासे से पहले सरकार ने ठीक वैसे ही सनसनीखेज बनाया जैसे कि किसी धारावाहिक या फिल्म के रिलीज से पहले उसका ‘प्रोमो’ चलाया जाता है। लेकिन घोटाले के खुलासे के बाद इसमें नए ‘खेल’ शुरू हो गए हैं । खबर है कि मौजूदा सरकार में एक सलाहकार का करीबी रिश्तेदार इस घोटाले की जद में हैं, जिसे बचाने के लिए इसमें नए सिरे गोटियां बिठानी शुरू कर दी गयी हैं ।

असल ‘धर्मयुद्ध’ होता तो सरकार ऐसे सलाहकारों से दूरी बनाती जिनके करीबी राज्य को चूना लगाने में शामिल हैं । यह बात तो रही उन घोटालों की, जिन पर सिर्फ ‘पत्ते’ हिलाकर सरकार यह खम ठोक रही है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘धर्मयुद्ध’ लड़ रही है। अब सवाल यह कि अगर सरकार वाकई ‘धर्मयुद्ध’ लड़ रही है तो क्यों सरकार समाज कल्याण विभाग में करोड़ों के छात्रवृत्ति घोटाले की जांच सीबीआई को नहीं सौंपती ? जबकि जांच दर जांच यह सामने आ रहा है कि विभाग के अधिकारियों ,निजी संस्थानों व कालेज संचालकों ने मिलीभगत कर डेढ़ दशक में सैकड़ों करोड़ रुपया हजम किया है। जांच क्यों नहीं होती, सिर्फ इसीलिये क्योंकि अधिकांश संस्थान और कालेज नेताओं से जुड़े हैं।

विभाग के जो अफसर इसमें शामिल हैं उनकी पकड़ जबरदस्त है।अगर वाकई ‘धर्मयुद्ध’ लड़ा जा रहा है तो सात महीने हुए नयी सरकार को, क्यों तकरीबन डेढ़ दर्जन अफसरों के खिलाफ कार्यवाही की फाइलें शासन में लंबित हैं ?जबकि विजिलेंस ने इनके विरुद्ध शिकायतों को सही पाया है । समझकिनहीं आता किस ‘धर्मयुद्ध’ की बात कर रही है सरकार, जिसमें रथ के ‘सारथी’ नौकरशाह पर ही सवाल हों । इनके कृपा पात्र मृत्युंजय प्रकरण से तो पूरा प्रदेश वाकिफ है, क्या हुआ उन साहब का ! तमाम नियमों को ताक पर रख अब इन साहब की दिल्ली में तैनाती है, ऐसे में सवाल तो बनता ही है कि ‘धर्मयुद्ध’ के दायरे में यह साहब क्यों नहीं ? डेढ़ दशक से शोर मचा है कि प्रदेश में नौकरशाही भ्रष्टचार में आंकठ डूबी है, बताइये ये कैसा ‘धर्मयुद्ध’ है जिसमें एक भी बड़े भ्रष्टाचारी को सरकार ‘धराशायी’ नहीं कर पायी। जबकि सरकार ही तो नयी है ‘सरकार’ तो नये नहीं हैं , वह तो हर भ्रष्टाचारी से बखूबी वाकिफ हैं ।

आज सिर्फ यह कहना भर काफी नहीं कि भष्टाचार से कोई समझौता नहीं करेंगे, इसमें कोई दोराय नहीं कि मौजूदा मुख्यमंत्री पर सात माह में भ्रष्टाचार का कोई सीधा आरोप नहीं है।लेकिन क्या मुख्यमंत्री आश्वस्त हैं कि उनके ‘बगलगीर’ , ओएसडी या सलाहकार कोई ऐसा काम नहीं कर रहे जो भ्रष्टाचार के दायरे में आता हो। ऐसा है तो फिर विभागों के अधिकारियों का मुख्यमंत्री के ओएसडी विशेष के निजी आवास पर ‘हाजिरी’ लगाने के मायने क्या हैं ? यही नहीं क्या अपने मंत्रियों पर सरकार को भरोसा है कि वह सरकार की छवि पाक साफ बनाये रखेंगे ? यदि है तो महकमों में तबादलों की फाइल मुख्यमंत्री के यहां रुकती क्यों है, और अगर मंत्री ‘खेल’ कर रहे हैं तो फिर ऐसी फाइलों पर आखिरकार मंजूरी होती क्यों है?

वन महकमे में तबादलों की चर्चित एक फाइल इसका उदाहरण है। भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार का ‘धर्मयुद्ध’ है तो खनन के खेल में मुख्यमंत्री के किसी करीबी नेता का होने का सवाल ही नहीं उठता । लेकिन हाल ही में जीएमवीएन ने ई- टेंडर के जरिये जो पटटे आगे दिये,उनमें मुख्यमंत्री के एक खास करीबी नेता का नाम चर्चाओं में है । कहीं न कहीं इन नेता जी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कोई भूमिका तो होगी ही, यूं ही तो किसी का नाम चर्चा में नहीं आता। खैर खनन की बात आयी तो एक तथ्य और ,एक ओर सरकार दावा करती है कि खनन में भ्रष्टाचार पर काबू के लिये ई टेंडरिंग की जा रही है ।वहीं दूसरी ओर खड़िया के पट्टों को सरकार इससे बाहर रखने की तैयारी में है।

बताईये अब यह कौन तय करेगा कि यह भ्रष्टाचार नहीं है। और अगर यह भ्रष्टाचार है तो फिर कहां है धर्मयुद्ध ? सरकार वाकई ईमानदार है तो अभी तक के जांच आयोगों की रिपोर्टों पर ही कार्यवाही कर ले, सरकार की मंशा साफ करने के लिये तो बस इतना ही काफी है। लेकिन सरकार करती क्या है, घोटालों को जांच के जंजाल में इस कदर उलझाती है कि घोटाला दम तोड़ देता है और घोटालेबाज साफ बच निकलते हैं। अभी तक तो यही होता रहा है, सच यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ संकल्प दोहराना हर सरकार की ‘मजबूरी’ है या यूं कहिये एक ‘रीत’ है। इन्हीं संकल्पों के सहारे तो भ्रष्टाचार एक ‘अमर बेल’ बना हुआ है। और अब तो भ्रष्टाचार की परिभाषा ही बदलती जा रही है, कितना ही बड़ा भ्रष्टाचारी या ‘दागी’ क्यों न हो सियासत की एक ‘करवट’ रातों रात किसी भी भ्रष्टाचारी का दामन पाक साफ करने के लिये पर्याप्त है, कई नजीर सामने हैं । सच तो यह है ‘धर्मयुद्ध’ भी एक ‘जीरो टालरेंस’ सरीखे एक सियासी शिगूफे से ज्यादा कुछ नहीं । ‘धर्मयुद्ध’ के लिये तो ‘सरकार’ का वो एक ही संकल्प काफी है जो रिस्पना के लिए लिया गया है । इस संकल्प के लिए तो कदम कदम पर ‘धर्मयुद्ध’ लड़ना होगा, बेहतर होगा कि सरकार उसकी तैयारी करे ।

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