आग बुझाने निकल पड़ी वन देवियां..
उत्तराखंड: विकास खण्ड खिर्सू के अंतर्गत खिर्सू की महिलाओं ने एक फिर से हर साल की भांति इस साल भी दरांती, झाड़ी, पानी के भरे बर्तनों को सिर में उठाकर अपने क्षेत्र के सरकारी जंगल को बचाने के लिए अथक प्रयास किये। ये वन देवियां सारे दिन भर लगभग 5 किमी. दायरे में फैली आग को बुझाने की कोशिश करती रही और आखिरकार आग बुझाकर ही दम लिया। इस दौरान वन विभाग का कोई कर्मी उधर दिखा हो ऐसा कहना मुश्किल है। बाजार में रहकर जल, जंगल, जमीन और जानवर के लिए जिंदगी न्यौछावर करने वाली ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि जंगल है तो यहां पर्यावरण शुद्ध है। जंगल है तो घास लकडी व जानवर सुरक्षित है। जंगल हमारे लिए पिता पुत्र दोनों ही समान हैं।
फिर भी ना जाने कौन सा दानव हर बर्ष नए जन्म लेने वाले पौधों की ईह-लीला समाप्त करने के लिए आग लगा देते हैं। खिर्सू की श्रीमती बिमला रावत आग लगाने वाले को बुरा भला कहते हुए कहती हैं कि ऐसे अराजक तत्व एक बार हमरे हाथ चढ़ जाये तो हम उन्हें भी ऐसे ही जला डालते जैसे वे हमारी प्रकति के स्वरूप को करूप बना देते हैं। क्या वे लोग नहीं जानते हैं कि जंगलों की आग से न सिर्फ पेड़-पौधे वन औषधियां जलती हैं बल्कि यह पर कई पशु पक्षियों का प्रसव काल का होता है। ऐसे में रात दिन मेहनत कर घोंसला बनानी वाली चिड़ियाएं उनके अंडा व बच्चे भी होते हैं जो बिलकुल शिशिर अवस्था में होते हैं। सिर्फ यही नहीं जंगल में वन्य प्राणी जिसमें कीट पतंगे भी सम्मिलित होते है ऋतु परिवर्तन के दौर से गुजर रहे होते हैं। ऐसे में ये आग लगाने वाले शायद ये भूल जाते हैं कि उनके घर परिवार में भी उनके बच्चे हैं। अब आप ही बताओ वे कितनी आत्माओं का श्राप लेकर अपनी खुशी ढूंढते हैं।
यही विचार श्रीमती वंदना, हेमन्ती, सती, पूनम, शुबदी, सुनीता, रोशनी, विनीता इत्यादि के हैं। जो आग बुझाने के बाद पानी के लीकेज पाइप लाइन के पास अपनी प्यास बुझाती नजर आई। प्रश्न यह है कि इन माँ-बहनों को बदले में जंगल से क्या मिलता है? जिसमे इनका जबाब मिलता है कि वे जानवरों के लिए चारापत्ती पाकर ही खुश हैं लेकिन दुःख इस बात का है कि ऐसी ही जंगल में लगी वर्षों पुरानी आग से टूटे सड़ गल रहे सूखे पेड़ों की टहनियां तक ग्रामीण महिलाओं को काटने पर जुर्माना भरना पड़ता है। यही सूखे पेड़ आग लगने में विकट रूप धारण कर लेते हैं जिससे उठती चिंगारियां दूर तक उड़ती हुई जंगल के कोने-कोने तक पहुंच जाती है। बहरहाल ये वन देवियां हर साल बिना स्वार्थ जंगलों की आग बुझाने निकल पड़ती हैं, क्योंकि उन जगलों में उन्हें अपने रक्षक पिता-पुत्र जो नजर आते है।