कोरोना महामारी के दौरान भी राजनीतिक दलों में नहीं दिखता आपसी सामंजस्य..
Uk News Network देहरादून डेक्स..
देश-विदेश: यदि हम आज कोरोना वायरस का नाम सुनते हैं तो, जो वस्तुस्थिति सर्वप्रथम उभरकर सामने आती है वह ‘क्वारंटाइन (अपनी गतिविधियों को स्वयं तक सीमित करना) या आइसोलेशन (एकाकीकरण) ’ है। यह आइसोलेशन न केवल व्यक्ति या समाज के स्तर पर हुआ है बल्कि विभिन्न देशों की सीमाओं के स्तर पर भी हो गया है।
कोरोना वायरस को लेकर देश में अजब हाल है, सब को पता है कि कोरोना की दूसरी लहर कितनी प्रभावी है लेकिन फिर भी राज्य और केंद्र स्तर पर इसको लेकर ना केवल तालमेल ख़राब है, बल्कि इस युद्ध में सभी अलग-अलग लड़ते दिख रहे हैं, नाकि एकजुट होकर। 2020 याद कीजिए, प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन लगाने का कड़ा फैसला लिया था। सभी विपक्षी दलों ने इसका स्वागत किया था। सभी का मानना था कि लॉकडाउन ज़रूरी है।
लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीतता गया पक्ष और विपक्ष अलग होने लगे। पहले विपक्ष ने कहा कि लॉकडाउन लगाने का फैसला राज्य सरकारों के पास होना चाहिए और दिल्ली से बैठ कर सभी फैसले नहीं लिए जा सकते हैं। दूसरा आरोप लगा की लॉकडाउन की आड़ में सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कर दी है। ठीक इसके बीच में कामकाजी लोगों का पलायन दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों से हुआ। सरकार पर आख़री आरोप लगा की वो बड़े फैसले बिना किसी विचार विमर्श के करती है। नतीजा ये हुआ कि धीरे-धीरे सारे अधिकार राज्यों को दिए गए।
आजकल भारत में कई चीजों की तरह, कोरोना की वैक्सीन की मंजूरी भी राष्ट्रवाद, राजनीति और विवाद के गेम में उलझी हुई है। आपको बता दे कि भारत में कोरोना वायरस के खिलाफ दो वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिली है। जिसके बाद ‘स्वदेशी वैक्सीन’ vs विदेशी वैक्सीन, ‘तुम्हारा वैक्सीन पानी’ जैसी बातों की जंग छिड़ी हुई है। कोरोना वैक्सीन किसी जाति या धर्म की नहीं है। इसे मानव कल्याण के लिए वैज्ञानिकों ने तैयार की है। इस पर किसी भी तरह की राजनीति नहीं होनी चाहिए। सभी को मिलकर मानव कल्याण के बारे में विचार करना होगा। वायरस को हराने की रणनीति तैयार करनी चाहिए। सभी के सुझाव से ही वायरस का खात्मा संभव है।
कोरोना भयावह बीमारी है। बड़ी संख्या में लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है। लाखों लोग वायरस की चपेट में आ चुके हैं। वैज्ञानिकों ने कड़ी मशक्कत के बाद वैक्सीन खोजने में कामयाबी हासिल की है। इस सफलता के बूते हम वायरस पर जीत हासिल कर सकते हैं। वैक्सीन को लेकर किसी भी तरह का आपसी मतभेद नहीं होना चाहिए।
राजनीतिक सभाओं में नहीं रखा ज्यादा कोरोना नियमों का ध्यान..
इस वक़्त देश में कोरोना की दूसरी बड़ी लहर चल रही है और अजीब बात है की सब इस पर मौन हैं। जैसे सब बात करते हैं 2 गज की दूरी की लेकिन राजनीतिक सभाओं में कोई किसी की बात नहीं मनाता। नेता खुद मास्क नहीं लगा रहे हैं। मतदान केंद्र में तो दो गज की दूरी है। लेकिन रोड शो में एक इंच की दूरी नहीं दिखती है। शादियों में लोगों के आने पर पाबंदी है। यह भी तय किया जा चुका है कि श्मशान घाट में कितने लोग जाएं, लेकिन राजनीतिक बैठकों के लिए कोई भी रोक टोक नहीं है।
सबसे अजीब बात है कि जब देश पूरा एक था, तब पूरे यूरोप और अमेरिका में भी समन्वय नहीं था। लोग वैक्सीन तक नहीं लगा रहे थे।लॉकडाउन के खिलाफ धरना प्रदर्शन हो रहा था। लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हालांकि यहां राजनीतिक दल विपदा के समय एक दूसरे के करीब नहीं आ सके। देश में एकता राष्ट्रीय खतरे के वक़्त बढ़ जाती है, सब दल अपने मतभेद छोड़ कर देश के लिए काम करते हैं लेकिन कोरोना के वक़्त भारत में ऐसा नहीं हो पाया है।
यहां आपदा के वक़्त दलों में मतभेद हैं और विश्वास की बेहद कमी है। वक़्त के इस छोर पर सभी दलों को अपने मतभेद एक तरफ रख कर कोरोना को हराने के लिए काम करना चाहिए। ये समय किसी भी प्रकार की राजनीति करने ना नहीं हैं। बल्कि एक दूसरे की सहायता करने का हैं। यही सच्ची श्रद्धांजली होगी कोरोना योद्धाओं को। uk news network टीम की आप सबसे अपील हैं कि इस कोरोना महामारी के दौरान सरकार की इस राजनीति पर ध्यान न दे। बल्कि कोरोना योद्धाओं का हौंसला बढ़ाये और एक दूसरे की सहायता करे।