पर्यावरणविद ने बताई चमोली में आई तबाही की वजह, बोले- भविष्य में झेलना पड़ेगा महाजलप्रलय..
देश-विदेश: जलपुरुष व पर्यावरणविद के नाम से मशहूर मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह, उत्तराखंड के चमोली में आए जलप्रलय पर बेहद चिंतित हैं। उनकी चिंता जीवनदायिनी नदियों को सीमा में बांधने पर भी है। वह चमोली जिले में आई तबाही की असली वजह अलकनंदा नदी पर डैम बनाने को भी मानते हैं। उनका कहना हैं। कि अगर सरकारें अब भी नहीं संभली तो भविष्य में महाजलप्रलय झेलना होगा। तबाही का मंजर ऐसा होगा जिसकी किसी ने आज तक कल्पना भी नहीं की होगी। मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पांचवें दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होने आए राजेंद्र सिंह ने हिमालय से लेकर गंगा के मैदानी क्षेत्रों तक की नदियों में बढ़ते प्रदूषण और उसके परिणामों पर बातचीत की।
सवाल– तीर्थाटन के स्थल पर्यटन स्थल बनने लगे हैं, इसे किस रूप में देखते हैं।
जवाब– आज हम पर्यटन के भूखे हैं। ऐसे में तीर्थाटन को भूल गए। जबकि, तीर्थाटन से आस्था जुड़ी होती है। संवेदना होती है, जिसके चलते हम उस जगह को संरक्षित रखने के बारे में सोचते हैं। पर्यटन सिर्फ मौज-मस्ती तक सीमित है। इस अंतर को समझने की जरूरत है।
सवाल– उत्तराखंड में नदियों के संरक्षण के लिए आपने लंबा संघर्ष किया है, चमोली जिले में जो तबाही हुई है उसकी वजह क्या है?
जवाब– अलकनंदा, मंदाकिनी व भागीरथी नदियों को आजाद रखने की जरूरत है। तीनों नदियां देवप्रयाग में मिलती हैं। इनमें वनस्पतियों का रस मिला है। जब बांध बनाकर पानी रोकेंगे तो वह सिल्ट के साथ नीचे सतह में बैठ जाएगा। जल की शक्ति खत्म हो जाएगी। ऐसे में जलप्रलय सामने होंगे।
सवाल- प्रकृति को समझने में भूल कहां हो रही है, आपकी नजर में तबाही रोकने के उपाय क्या हैं?
जवाब- सनातन के बलबूते हम विश्व गुरु थे। सनातन यानी सदैव, नित्य, नूतन, निर्माण। यह भारत की वैज्ञानिक समानता है, लेकिन आज हम इकोनॉमी लीडर बनने की होड़ में लगे हैं। विकास की शुरूआत आज विस्थापन से होती है। हम जल और थल के संतुलन को भूल गए हैं। प्रकृति लगातार संकेत दे रही है, उत्तराखंड में जलप्रलय एक सीख है।
सवाल- प्रकृति से छेड़छाड़ बढ़ती जा रही है, यह उसी का परिणाम तो नहीं?
जवाब- इसे सिर्फ प्रकृति का गुस्सा बताने से काम नहीं चलेगा। यह गुस्सा मानव निर्मित है। विकास के दौर में सुरक्षा को भूल जाने पर इस तरह की घटनाएं होंगी। अलकनंदा, मंदाकिनी व भागीरथी नदियां भूकंप प्रभावित क्षेत्र में हैं। वहां कोई भी बड़ा निर्माण नहीं कर सकते हैं। बड़ा निर्माण करेंगे तो खामियाजा भुगतना होगा। बिहार में पुरुलिया के पास एक झील की दीवार कमजोर हो रही है। उसके फटने से भी तबाही हो सकती है।
सवाल- हिमालय की नदियों पर आपने लंबे समय तक काम किया है, क्या विशेषताएं हैं?
जवाब- अलकनंदा एक मात्र नदी है जो कि गंगा की मुख्य धारा है। दो नदियों के मिलने को प्रयाग इसलिए कहते हैं, क्योंकि दो नदियों के मिलने से नदी की जो पहले गुणवत्ता थी, उसमें वृद्धि होती है। पहले जब अलकनंदा, भागीरथी व मंदाकिनी अपनी आजादी से बहती थीं, तो गंगा में ऐसे तत्व थे, जो कि मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते थे। अब बांध बनाकर अवरोध पैदा कर दिया गया तो ये तत्व सिल्ट के साथ नीचे बैठ जाते हैं। जिसका लाभ मानव जाति को नहीं मिल रहा है।
सवाल– बांध बनाने के विरोध में लंबा आंदोलन आपने किया है, कितना फर्क आया?
जवाब- 20 साल से नदियों पर बांध बनाने का विरोध कर रहा हूं। 2009 में तीन बांध लोहारी नागपाला, भैरवघाटी और पारामनेली बांध आधा बन चुके थे। आंदोलन करने के बाद इसे बनने से रोकने में सफलता मिली। हालांकि आठ बांध फिर भी बना दिए गए। उत्तराखंड में हुए प्रलय के बाद सरकार को नए सिरे से सोचने की जरूरत है।
सवाल- इस प्रलय के बाद सरकार को क्या सुझाव देंगे?
जवाब- भारत को अपनी आस्था व अपने विज्ञान को समझकर अलकनंदा को बांधना ही नहीं चाहिए। अलकनंदा, भागीरथी और मंदाकिनी तीनों नदियों को आजाद बहने दीजिए। कोई डैम, बैराज न बनाइए। विकास के लिए बिजली वगैरह जरूरी है, तो उसके लिए ऐसी तमाम नदियां हैं, जिन्हें अवरोधों के साथ जीना पसंद है। जरूरत के हिसाब से वहां डैम बनाइए। भविष्य को सुरक्षित करने के लिए इन तीन नदियों को बांध बनाने से आजाद रखना होगा।
सवाल- देश भर में नदियां सूख रहीं हैं, प्रदूषण रोकने के उपाय से खुद को कितना संतुष्ट पाते हैं?
जवाब- हमें रिचार्ज और डिस्चार्ज का संतुलन बनाना होगा। नदियों के सूखने की वजह भूमिगत जल का ज्यादा दोहन है। देश में दो तिहाई नदियां सूख गईं हैं और एक तिहाई नाला बन गईं। गोरखपुर की आमी नदी को नाला में तब्दील कर दिया गया। बड़े आंदोलन के बाद आमी को फिर से नदी की मान्यता मिली। यह बड़ी समस्या है। जिम्मेदार सुधार करने की जगह अस्तित्व को मिटाने में लगे हैं। आज भारत की नदियों पर संकट है। इतना ही कहूंगा कि सरकार के प्रयास से संतुष्ट नहीं हूं।