आग पर नियंत्रण के लिए बने ठोस नीति
ग्रामीणों को आग के साथ अब पशुओं को चारा की बनी समस्या
रुद्रप्रयाग। उत्तराखण्ड में आग को लेकर पर्यावरणविद् भी चिन्तित हो गये हैं। उनका कहना है कि उत्तराखण्ड की सरकारों ने कभी भी वनाग्नि को लेकर कोई रणनीति नहीं बनाई, जिस कारण जंगलों में लगी आग आज शांत होने का नाम नहीं ले रही है। आग के कारण ग्रामीणों को सबसे अधिक परेशानी से जूझना पड़ रहा है।
उत्तराखण्ड के पहाड़ी जिलों के जंगल धूं-धूं कर जल रहे हैं, जिसका कुप्रभाव चारों और देखने को मिल रहा है। जंगल से जानवर भागकर ग्रामीण इलाकों में छुपने को विवश हैं। पहाड़ का कोई भी स्थान नहीं बचा है, जहां आग न पहुंची हो। सबसे बड़ी समस्या ग्रामीण इलाकों में बनी हुई है। जंगलों में लगी आग से ग्रामीणों के सामने चारे की समस्या गहरा गई है। इस बार आग की लपटे 20 से 25 फीट तक ऊंची गयी, जिससे घास के साथ ऊंचे चारे के पेड़ों को भी नुकसान पहुंचा। पहले ही जनपद में सूखा पड़ा था और अब आग के तांडव ने चारे की समस्या खड़ी कर दी है। जिन ग्रामीणों का रोजगार केवल पशुओं पर ही निर्भर था, वे काफी हताश और निराश है।
चारों ओर फैल रहे धुऐं से जहां अस्पतालों में मरीजो की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वहीं लोगों में आख में जलन, कमर दर्द, नाक से खून निकलने जैसी अन्य कई बीमारीयों से लोग ग्रस्ति हैं। पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली जंगलों में लग रही आग से बेहद चिंतित हैं। उनकी माने तो सरकारें वनाग्नि की घटनाओं पर रोक नहीं लगा पा रही हैं। उत्तराखण्ड बनने के दौरान इस तरह की आग देखी थी आज फिर हम इस तरह की आग को देख रहे हैं। चारधाम यात्रा शुरू होने वाली है, जिसका सीधा असर इस पर पडे़गा। पानी के स्रोत सूख गये हंै। चारा पत्ती खत्म हो गयी है। पहले बर्फबारी होती थी इस बार बर्फवारी के साथ ही बारिश भी नहीं हुई। नदियां सूख गयी है। हिमालय से निकलने वाली नदियों से ही हमारा इ्रको सिष्टम चलता है। अगर वह बिगड़ गया तो सारा सिष्टम बदल जायेगा अैार जिसका परिणाम आपके सामने दिख रहा है।