उत्तराखंड

कर्नल मनोहर सिंह चौहान को राष्ट्रपति से मिला वीर चक्र..

कर्नल मनोहर सिंह चौहान को राष्ट्रपति से मिला वीर चक्र..

उत्तराखंड:  3 दिसंबर 1971 को दुश्मन के कुछ हवाई जहाज श्रीनगर की ओर उड़ते हुए देखे गए। उसी शाम तकरीबन 6 बजे बटालियन हेडक्वार्टर ने खबर दी कि दुश्मन ने देश के पश्चिमी क्षेत्र में भी लड़ाई शुरू कर दी है। जैसे-जैसे अंधेरा हुआ दुश्मन ने पूरे पुंछ सेक्टर में आर्टलरी और मोटर फायर करना शुरू कर दिया। यह फायर सबसे ज्यादा दुर्गा और लंगूर पोस्ट में किया जा रहा था।

इसके साथ साथ ही तकरीबन 7:30 बजे दुश्मन ने लंगूर पोस्ट में हैवी मशीन गन ( एचएमजी) और मीडियम मशीन गन (एमएमजी ) से डायरेक्ट फायर करना शुरू कर दिया। जिसमें ट्रेसर राउंड भी मिले हुए थे। आर्टलरी और मोटर्स की फायरिंग की मात्रा इतनी अधिक थी की खंदक से बाहर निकलना तो दूर देखना भी संभव नहीं हो पा रहा था। इस तरह इस पोस्ट का बाहरी संपर्क बिल्कुल समाप्त हो गया।

 

 

इन सब का फायदा उठाते हुए दुश्मन ने पोस्ट के पीछे से, दक्षिण दिशा से, नंबर 4 प्लाटून पर हमला कर दिया जिसकी तनिक भी संभावना नहीं थी। उस समय सेकंड लेफ्टिनेंट चौहान नंबर 4 प्लाटून के फॉरवर्ड सेक्शन में ही मौजूद थे। दुश्मन ने गेट के अंदर आने पर चैलेंज किया गया। दुश्मन ने कहा “तुम हमारे कब्जे में हो अपने हथियार डाल दो” इतना सुनते ही पूरी 4 प्लाटून ने एक साथ सभी हथियारों से फायर खोल दिया। साथ ही 2 इंच मोटर के गोले भी भारी मात्रा में इस इलाके में गिराऐ गये।

इतनी भारी मात्रा में एक साथ फायर आने की उम्मीद ना होते हुए दुश्मन हक्का-बक्का रह गया। उसने नंबर 4 प्लाटून की एलएमजी पोस्ट पर लगातार कई रॉकेट लॉन्चर (आरएल)के रॉकेट दागे जो बेअसर रहे। सेकंड लेफ्टिनेंट चौहान इसी दौरान फायर ट्रेंच का इस्तेमाल करते हुए नंबर 3 प्लाटून पहुंचे। वहां लगी एमएमजी को गेट की फिक्स लाइन पर फायर करवाया ।

 

 

इतनी भारी मात्रा में फायर पाकर दुश्मन आगे बढ़ने से रुक गया। पर सेकंड लेफ्टिनेंट चौहान एक फायर पोजीशन से दूसरी फायर पोजीशन में जाते समय बुरी तरह घायल हो गए। जवानों का हौसला कम ना हो इस कारण उन्होंने चुपचाप मौरफीन इंजेक्शन लगाने के साथ साथ फर्स्ट फील्ड ड्रेसिंग का प्रयोग किया और किसी को एहसास नहीं होने दिया कि वह घायल हो गए हैं।

इस दौरान दुश्मन भागते हुए अपने घायलों को और मरे हुए लोगो को घसीट कर ले जाते देखे गए। इनके पीछे हटने के दौरान प्लाटूंस ने अपने घायलों को इकट्ठा किया और उनको फर्स्ट डे दी साथ ही खर्च हुआ एम्युनेशन बदला। तकरीबन रात 1 बजे दुश्मन ने दूसरा हमला किया और तीसरा हमला सुबह तकरीबन 3 बजे हुआ। 3 दिसंबर से 9 दिसंबर तक दुश्मन लगातार आर्टिलरी, मोटर्स और आरसीएल फायर करता रहा परंतु हमले के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाया।

 

 

सेकंड लेफ्टिनेंट चौहान ने इस लड़ाई में प्रेरणादायक नेतृत्व, अदम्य साहस, कर्तव्य परायणता और बलिदान का परिचय दिया। जिसके कारण दुश्मन द्वारा बारंबार किए हुए हमले विफल रहे। उनकी इस बहादुरी के लिए भारत के राष्ट्रपति ने इनको वीर चक्र से सम्मानित किया।

कर्नल चौहान का जन्म ग्राम दंतोली, पट्टी बाराबीसी, जिला पिथौरागढ़ में एक संभ्रांत जमींदार परिवार में हुआ। प्राथमिक शिक्षा रसेपाटा के प्राइमरी स्कूल में पूरी करने के बाद सेकेंडरी एजुकेशन और स्नातक के लिए दिल्ली जाना पड़ा जहां इनके पिताजी सरकारी नौकरी में थे। स्नातक की शिक्षा इन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पूरी की। पढ़ाई के साथ ही खेलों में और एनसीसी एयर विंग (जूनियर और सीनियर) डिवीजन मैं भी सक्रिय हिस्सा लिया।

 

 

फुटबॉल में दिल्ली स्टेट रिप्रेजेंट किया और 67/ 68 के दौरान कंबाइन एनसीसी कॉन्टिनेजेट का नेतृत्व किया। शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल मद्रास में सफल परीक्षण प्राप्त कर 22 अगस्त 1971 को, 21 साल की उम्र में, सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर कमीशन प्राप्त किया। इस उपरांत इनको चौथी गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन (१/४जी आर) में पोस्ट किया गया। बटालियन उस समय जम्मू कश्मीर के पुंछ जिले में 93 माउंटेन ब्रिगेड में गोलपुर सेक्टर में तैनात थी।

 

 

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