उत्तराखंड

फौज की राजनीतिक विरासत संभालेंगे कर्नल कोठियाल

जनरल खंडूड़ी का सबसे सशक्त विकल्प हैं कर्नल कोठियाल
भाजपा और कांग्रेस को भी गढ़वाल से नये चेहरे की तलाश

देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति में सेना के दो कर्मठ, जांबाज और राजनीति के धुरंधर जनरल बीसी खंडूड़ी और जनरल टीपीएस रावत चमकते सितारे रहे हैं। विगत कुछ समय से इन दोनों सितारों की चमक धुंधली हो गयी है और राजनीति में इनका विकल्प तलाशा जा रहा है। ऐसे में केदारनाथ पुनर्निर्माण कर देश के हीरो बने एनआईएम के प्रिंसिपल कर्नल अजय कोठियाल को इन दोनों नेताओं का सबसे सशक्त विकल्प माना जा रहा है।

कर्नल अजय कोठियाल अभी सेवारत हैं, लेकिन उन्होंने घोषणा कर दी है कि सेवानिवृत्त के बाद वो सक्रिय रूप से समाजसेवा करेंगे। कर्नल कोठियाल की राजनीतिक नेताओं के साथ बढ़ रही सक्रियता भी इस ओर इशारा कर रही है। हाल में उन्होंने नई दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और अन्य नेताओं से मुलाकात कर इस कयास को हवा दे दी है कि कर्नल कोठियाल उत्तराखंड में राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं। हालांकि कर्नल कोठियाल ने अब तक राजनीति में जाने के संबंध में अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

रिटायर्ड मेजर जनरल बीसी खंडूडी और ले.जनरल टीपीएस रावत विगत तीन दशक से फौजी परिवारों के प्रतिनिधि के रूप में राजनीति में हैं। जनरल खंडूड़ी ने अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल पेश की और राजनीति में एक ऊंचा मुकाम हासिल किया। वे केंद्र में मंत्री भी रहे और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे। मौजूदा समय में वे गढ़वाल से लोकसभा सांसद हैं, लेकिन बीमार हैं और यह तय माना जा रहा है कि 2019 में उनका लोकसभा चुनाव लड़ना संभव नहीं होगा। ऐसे में भाजपा उनका विकल्प तलाश रही है।

उधर, जनरल टीपीसी रावत ने दल-बदल कर अपनी साख पर बट्टा लगा दिया। वह दो बार विधानसभा का चुनाव भी हार चुके हैं। ऐसे में उनके राजनीतिक भविष्य पर काले बादल मंडरा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक जनरल खंडूड़ी और उनके समर्थक उनकी बेटी ऋतु खंडूड़ी को राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते हैं, लेकिन भाजपा जनरल खंडूड़ी का विकल्प एक फौजी को ही देख रही है। विधायक के तौर पर ऋतु खंडूड़ी ने पिछले छह माह में कुछ भी उल्लेखनीय संदेश नहीं दिया। यहां तक कि उनके विधानसभा क्षेत्र यमकेश्वर में सोशल मीडिया पर चर्चा है कि यदि विधायक या सांसद नजर आएं तो पता बताएं।

भाजपा के केंद्रीय सूत्र बताते हैं कि फौजी बहुल उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों, उनके परिवार और आश्रितों का एक बड़ा वोट बैंक है। यदि इस वोट बैंक को पार्टी से जोड़कर रखना है तो किसी पूर्व सैनिक को ही टिकट देना होगा। पार्टी की तलाश कर्नल अजय कोठियाल पर आकर रुक रही है। उधर, कांग्रेस भी कर्नल कोठियाल को राजनीति में पदार्पण का मौका देना चाहती है। गौरतलब है कि कर्नल अजय कोठियाल और उनकी टीम ने वर्ष 2013 की आपदा के दौरान हजारों लोगों को सुरक्षित बचाने का कार्य किया। उत्तरकाशी, गंगोत्री में फंसे लोगों को एनआईएम की टीम ने रेस्क्यू किया। इसके बाद बेहद कम समय और विषम परिस्थितियों में केदारनाथ तक रास्ता बनाने का कार्य किया। सरकारी विभाग जिस ध्वस्त हो चुके रास्ते को दोबारा बनाने के लिए तीन साल का वक्त मांग रहे थे, कर्नल कोठियाल की टीम ने यह रास्ता तीन माह में तैयार कर दिया।

केदारनाथ में पुनर्निर्माण के कार्यों को भी समय पर पूरा किया गया।
उम्मीद की जा रही है कि इस वर्ष के अंत तक केदारनाथ में सभी कार्य पूर्ण हो जाएंगे। सूत्रों का कहना है कि कर्नल अजय कोठियाल द्वारा युवाओं को सेना में भर्ती किये जाने के लिए यूथ फाउंडेशन के माध्यम से निशुल्क प्रशिक्षण शिविरों ने भी उनकी लोकप्रियता बढ़ा दी है। कर्नल कोठियाल पिछले तीन वर्षों में अब तक 2600 युवाओं को सेना में भर्ती करवा चुके हैं। इसके अलावा स्किल डेवलपमेंट के लिए भी यूथ फाउंडेशन लगातार काम कर रहा है।

यही कारण है कि कर्नल कोठियाल की लोकप्रियता की धमक राजनीति हलकों में भी होने लगी है। दूसरी ओर राजनीतिक हलचल से दूर कर्नल कोठियाल का कहना है कि वह रिटायर होने के बाद युवाओं को सेना में भर्ती कैंप के लिए प्रशिक्षण का दायरा बढ़ाएंगे और मेडिकल कैंप आयोजित करते रहेंगे। बताया जाता है कि आरएसएस ने भी कर्नल कोठियाल की लोकप्रियता को लेकर आतंरिक रिपोर्ट आलाकमान को दी है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि कर्नल कोठियाल को गढ़वाल लोकसभा सीट से भाजपा का टिकट मिल सकता है।

वहीं, कांग्रेस भी गढ़वाल में एक अच्छा फौजी उम्मीदवार तलाश रही है। बहरहाल, कहने को तो 2019 के आम चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन दोबारा से केंद्र की सत्ता में आने के लिए भाजपा आलाकमान हर जोर-आजमाइश कर रही है। चुनावी शतरंज की बाजी में भाजपा एक-एक सीट पर मजबूत दावेदार बिठाकर ही चौसर की बाजी चलने की रणनीति बना रही है। ऐसे में यदि कर्नल कोठियाल पर कोई भी दल दांव खेलता है तो तय है कि पलड़ा कर्नल कोठियाल का ही भारी रहेगा।

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