लीडर बनाकर भेजा, बन गए फॉलोअर
देहरादून। पुरानी कहावत है, जिस हाकिम के सलाहकार ही चमचागिरी और मूर्खतापूर्ण सलाह देने पर उतर आएं, उसको दुश्मनों की कोई जरूरत नहीं। उत्तराखंड में यह उक्ति चरितार्थ होती दिख रही है। जिस व्यक्ति को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने लीडर बनाकर डबल इंजन की सरकार की बागडोर सौंपी थी, वह अपने ही काबीना मंत्री का फॉलोअर बनता जा रहा है।
पहला वाकया उस समय सामने आया, जब बजट प्रस्तावों की तैयारी के दौरान वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने जनता से राय जानने के लिए सोशल मीडिया की मदद ली। फेसबुक लाइव होते ही मुख्यमंत्री के दिल्ली से आए सलाहकार को अचानक स्वप्न हुआ और उनके ईष्ट ने आदेश दिया कि अगर त्रिवेन्द्र ऐसा ना करेंगे, तो अनर्थ हो जाएगा। बस फिर क्या था। प्रकाश पंत को फॉलो करने का प्लान बना लिया गया।
मुख्यमंत्री ‘आपकी राय, आपका बजट’ कार्यक्रम के जरिये जनता के बीच कूद पड़े। इसे लेकर राजनीतिक गलियारों और नौकरशाहों के बीच काफी चर्चा रही। जैसे-तैसे यह चर्चा ठंडी पड़ी थी कि अब एक और वाकया हो गया। इस बार फिर वित्त मंत्री होने के नाते प्रकाश पंत फेसबुक पर लाइव हुए। उन्होंने बजट को लेकर विपक्ष जो कथित रूप से गलत फहमियां फैला रहा है या ऐसे मुद्दे जिन्हें लेकर आम जनमानस में असमंजस की स्थिति है, पर सरकार का पक्ष रखा। यह कार्यक्रम पूरा भी नहीं हुआ था कि अचानक मुख्यमंत्री के सलाहकारों को फिर इलहाम हुआ कि सारे नम्बर वित्त मंत्री बना लेंगे। तो वित्त मंत्री को जीरो और सीएम को हीरो बनाने की सलाह दे दी गई।
मुख्यमंत्री ने भी आंख मूंदकर उस पर सहमति दे दी। आनन-फानन में देवभूमि डायलॉग के नाम से एक कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई। तारीख भी पहली अप्रैल से शुरू की गई है। घोषित कार्यक्रम के अनुसार, सीएम अप्रैल के पहले सप्ताह से जनहित के मुद्दों पर आम जनता के बीच जाएंगे और उनसे रूबरू होंगे। मुख्यमंत्री के बहाने सलाहकारों और नौकरशाहों की भी उत्तराखंड के तमाम जिलों में घूमने फिरने की ख्वाहिश पूरी हो जाएगी। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नक्शे कदम पर चलकर सोशल मीडिया के जरिये इस अभियान को चलाया जाता, तो खर्च भी लगभग न के बराबर होता और मॉनीटरिंग भी पूरी की जा सकती थी।
सीएम डैश बोर्ड में ऐसा ही हो रहा था। अब सलाहकारों ने मुकाबला वित्त मंत्री बनाम मुख्यमंत्री कर दिया है और मुख्यमंत्री के कानों में जाने कौन-कौन से मंत्र फूंक दिये हैं कि सीएम भी किंकर्तव्यविमूढ़ हैं और लीडर से फालोअर बनते जा रहे हैं। जिलों में जो प्रार्थनापत्र मिलेंगे, उन्हें कौन संजोकर रखेगा, कहां रिकार्ड बनाया जाएगा, यह अभी सलाहकार तय नहीं कर सके हैं। राजधानी में जब जनता दरबार ठप हो गया और जिले-जिले में घूमने के बाद भी भद पिटती गई, तो २०१९ के लोकसभा चुनाव का ऊपर वाला ही मालिक होगा।
फिलहाल सलाहकार मुख्यमंत्री के खैरख्वाह हैं या फिर किसी खास के इशारे पर काम कर रहे हैं, यह तो वक्त आने पर ही खुलासा होगा। बताया जा रहा है कि दिल्ली बैठे एक नेता जिन्होंने सलाहकार की सेटिंग सीएम दरबार में कराई है, की नजर काफी पहले से उत्तराखंड की कुर्सी पर गड़ी हुई है।