उत्तराखंड

प्रदेश सरकार को लगा बड़ा झटका, केंद्र ने ठुकराया प्रदेश सरकार का प्रस्ताव,पढ़िए पूरी खबर..

प्रदेश सरकार को लगा बड़ा झटका, केंद्र ने ठुकराया प्रदेश सरकार का प्रस्ताव,पढ़िए पूरी खबर..

उत्तराखंड: भाजपा की डबल इंजन सरकार में भी उत्तराखंड जैसे विषम हालात वाले राज्य में एयर एंबुलेंस की मनाही हो गई है। इससे आपदा और आपातकाल में मरीजों को तत्काल बड़े अस्पतालों तक तीव्र गति से पहुंचाने के लिए प्रदेश सरकार की कोशिशों को एक बड़ा झटका लगा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अनुसार सरकार की ओर से भेजे गए एयर एंबुलेंस की मांग के प्रस्ताव को केंद्र ने इनकार कर दिया है। प्रदेश के दूर वाले क्षेत्रों से आपात स्थिति में मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए अब डंडियों का सहारा है। ऐसे में कई बार मरीजों की आधे रास्ते में ही सांसें टूट जाती है।

 

प्रदेश में एयर एंबुलेंस के लिए एनएचएम के प्रस्ताव को केंद्र में भेजा गया था। केंद्र ने इस पर पत्र भेज कर अवगत कराया कि इस साल एनएचएम में एयर एंबुलेंस सेवा को अनुमति नहीं दी गई। सरकार की गंभीर मरीजों और आपदा के लिए एयर एंबुलेंस सेवा शुरू करने की योजना थी। राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं, लोगों का टीकाकरण नहीं हो पा रहा है, टीकाकरण निशुल्क होना चाहिए था। डॉक्टरों से लेकर नर्सों तक की कमी बनी हुई है, राज्य सरकार इन अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी है और केंद्र ने भी राज्य सरकार की मदद नहीं की है। डबल इंजन की सरकार फेल है। पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए एयर एंबुलेंस की सुविधा मिलनी चाहिए थी।

 

पहाड़ों में होने वाली सड़क दुर्घटनाएं, आपदा या किसी गंभीर मरीजों को इमरजेंसी में हायर सेंटर पहुंचाने के लिए उत्तराखंड को एयर एंबुलेंस की जरूरत है। सड़क मार्ग से मरीजों को अस्पताल पहुंचाने में ज्यादा समय लगने के साथ काफी दिक्कतें आती है। आपात स्थिति में एयर एंबुलेंस सेवा की जरूरत होती है।पहाड़ के दूरस्थ इलाकों में सड़क, स्वास्थ्य और संचार सुविधाओं का अभाव लोगों की जान पर भारी पड़ रहा है। जिसका सबसे ज्यादा असर महिलाएं और बुजुर्ग पर होता हैं। क्यूंकि हालात तब और बुरे हो जाते हैं, जब महिला गर्भवती हो, बुजुर्ग गंभीर रूप से बीमार हो, हृदयाघात हो या फिर कोई हादसे का शिकार हुआ हो।

 

सड़क और संचार सुविधा से वंचित परिजनों के पास एक ही चारा होता है कि पीड़ित व्यक्ति को डोली या कुर्सी पर बैठाकर सड़क तक पहुंचाया जाए। पथरीली राहों पर पीड़ित को डोली में लादकर सड़क तक पहुंचाना काफी दुश्वारी भरा होता है और बारिश के मौसम में यह सफर जानलेवा हो जाता है।

 

तमाम गांव ऐसे हैं कि जहां से सड़क तक की दूरी ही 30 से 50 किलोमीटर तक है। हाल ही में मुनस्यारी के एक गांव से बुजुर्ग को पैदल अस्पताल पहुंचाने में 42 किलोमीटर की दूरी का सफर तय करने में तीन दिन लग गए थे। ऐसे में इन दूरस्थ क्षेत्रों में एयर एंबुलेंस की जरूरत काफी समय से महसूस की जाती रही है। पिछली बार ही पिथौरागढ़ में हुई आपदा के दौरान प्रभावितों की मदद के लिए कांग्रेस विधायक हरीश धामी ने हेलीकॉप्टर भेजने की गुहार तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लगाई थी।

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