उत्तराखंड

पीड़ी पर्वत में मिला 50 करोड़ साल पुराना ‘स्ट्रोमैटोलाइट..

पीड़ी पर्वत

पीड़ी पर्वत में मिला 50 करोड़ साल पुराना ‘स्ट्रोमैटोलाइट..

उत्तराखंड : टिहरी गढ़वाल के प्रतापनगर में स्थित यह खैट पर्वत आपको जन्नत की सैर करता है। यहां लोगों को अचानक ही कहीं परियों के दर्शन हो जाते हैं। लोगों का ऐसा मानना है कि परियां आस-पास के गांवों की रक्षा करती हैं। किस्सों की दुनिया से आगे निकलते हुए यह एक ऐसी जगह है, जहां आज भी लोग परियों और वनदेवियों को देखने का दावा करते हैं।

जानकारी के मुताबिक, अमेरिका की मैसास्युसेट्स यूनिवर्सिटी ने शोध भी किया है। उसमे पाया गया कि वहां कुछ अद्भुत शक्तियां हैं जो वहां जाने वाले लोगों को अपनी ओर खींचती हैं। खैटखाल नाम का एक मंदिर है जिसे यहां के रहस्यों का केन्द्र माना जाता है। यहां परियों की पूजा होती है और जून के महीने में मेला लगता है।

कहा जाता है कि, परियों को चटकीला रंग, शोर और तेज संगीत पसंद नहीं है। यहां एक जीतू नाम के व्यक्ति की कहानी भी काफी चर्चित है। कहते हैं जीतू की बांसुरी की तान पर आकर्षित होकर परियां उसके सामने आ गईं और उसे अपने साथ ले गईं।

 

 

कहा जाता है कि इस पर्वत पर नौ  देवियां रहती हैं जिन्हें आंछरियां कहा जाता है। लोग उन्हें ही परियां मानते हैं। लोग मानते हैं कि यहां आकर जो लोग शोर करते हैं परियां उन्हें मूर्छित कर देती हैं और अपने साथ ले जाती हैं।

यहां एक रहस्यमयी गुफा भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके आदि अंत का पता नहीं चल पाया है। जो भी है यहां रहस्य और रोमांच का अद्भुत संगम है। अगर रोमांच चाहते हैं तो एक बार जरूर यहां की सैर कर आएं।

इस पर्वत में स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल्स (धारीदार अवसादी शैल) का खजाना मिला है। तकरीबन 50 करोड़ साल पुराने माना जा रहा हैं। टिहरी वन प्रभाग के प्रतापनगर ब्लॉक में समुद्रतल से 8367 फीट की ऊंचाई पर स्थित पीड़ी पर्वत में मिले स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल्स मूल रूप से सायनोबैक्टीरिया की परत के ऊपर परत उगने से उत्पन्न होते हैं। सायनोबैक्टीरिया एक एककोशिकीय सूक्ष्मजीव होता है। इसी वर्ष सितंबर में वन विभाग की टीम ने यहां का दौरा किया था। इस दौरान पीड़ी पर्वत पर स्ट्रोमैटोलाइट की तरह कुछ नजर आया।

 

 

इस स्ट्रोमैटोलाइट को परीक्षण के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय भेजा गया था। विवि के भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया इस पर अध्ययन कर रहे हैं। पीड़ी पर्वत में कई अन्य स्ट्रोमैटोलाइट जीवाश्म भी मौजूद हैं।प्रभागीय वनाधिकारी कोको रोसे ने उन दिनों टिहरी दौरे पर आए कुमाऊं विश्वविद्यालय में कार्यरत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया से इस संबंध में चर्चा कर स्ट्रोमैटोलाइट की जांच का आग्रह किया। प्रो. कोटलिया ने बताया कि इस स्ट्रोमैटोलाइट की उम्र लगभग 50 करोड़ साल हो सकती है। इस तरह के जीवाश्म करोड़ों साल पहले सरीसृप वर्ग के जीव रहे होंगे। इसलिए इसमें मौजूद तत्वों की जांच की जा रही है। इसके बाद जीवाश्म संरक्षण के लिए टिहरी वन प्रभाग को सौंप दिया जाएगा।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा व नैनीताल जिलों के बाद अब टिहरी जिले में स्ट्रोमैटोलाइट जीवाश्म मिले हैं। प्रो. कोटलिया ने बताया कि प्रदेश के अन्य किसी जिले में उन्हें ऐसे जीवाश्म नहीं मिले। इन तीन जिलों में जीवाश्मों पर व्यापक शोध से नई जानकारी सामने आ सकती है। इससे इतिहास के कई नए अध्याय भी खुलेंगे, जो नए शोध में काम आएंगे।

 

 

भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि अरबों साल पहले धरती पर कुछ सरीसृप या अन्य जीव मौजूद थे, मरने के बाद भी जिनके जीवाश्म सुरक्षित हैं। यह जरूर हुआ कि समय के साथ इन जीवाश्मों पर मिट्टी की परत जमती चली गई। लंबे अंतराल में प्राकृतिक बदलावों को ङोलते हुए ये जीवाश्म चट्टान में बदल गए।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. राजेश वर्मा बताते हैं कि स्ट्रोमैटोलाइट असल में 90 से सौ करोड़ साल पुरानी काई (शैवाल) है। यह इस बात का संकेत है कि उस दौर में इन इलाकों में वातावरण न अधिक गर्म रहा होगा, न अधिक ठंडा ही। कम पानी, खासकर चूना पत्थर वाले इलाकों में इस तरह की काई का पाया जाना सामान्य बात है।

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