उत्तराखंड

विक्टर बनर्जी और बसंती देवी को सम्मान मिलने की खुशी..

विक्टर बनर्जी और बसंती देवी को सम्मान मिलने की खुशी..

उत्तराखंड के निवासियों को किया समर्पित..

उत्तराखंड : कसंगीत के क्षेत्र में योगदान देने वाली डॉ माधुरी बड्थ्वाल और समाजसेवी बसंती देवी ने पद्मश्री मिलने पर और अभिनेता विक्टर बनर्जी ने पद्मभूषण पाने पर खुशी जाहिर करते हुए राज्य की जनता को समर्पित किया।

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर चार पद्म विभूषण, 17 पद्म भूषण और 107 पद्मश्री सम्मानों का एलान किया गया। इनमें से कुछ सम्मान उत्तराखंड की हस्तियों को मिलने पर राज्यवासी गदगद हैं। लोकसंगीत के क्षेत्र में योगदान देने वाली डॉ माधुरी बड्थ्वाल और समाजसेवी बसंती देवी ने पद्मश्री मिलने पर और अभिनेता विक्टर बनर्जी ने पद्मभूषण पाने पर खुशी जाहिर करते हुए राज्य की जनता को समर्पित किया। अमर उजाला से बातचीत ने दोनों हस्तियों ने सम्मान पाने के बाद अपनी खुशी और विचारों को साझा किया।

यह सम्मान मसूरी… मेरे गांव का है : विक्टर बनर्जी..

विक्टर बनर्जी – पद्मभूषण..
अभिनेता विक्टर बनर्जी भारतीय अभिनेता हैं। विक्टर अंग्रेजी , हिंदी , बंगाली और असमिया भाषा की कई फिल्में कर चुके हैं। सत्यजीत रे क्लासिक ‘घरे बाइरे’ और डेविड लीन के महाकाव्य ‘ए पैसेज ऑफ इंडिया’ जैसी फिल्मों के लिए उन्हें खास तौर पर जाना जाता है। उन्होंने रोमन पोलांस्की , जेम्स आइवरी , सर डेविड लीन , जेरी लंदन , रोनाल्ड नेम , सत्यजीत रे , मृणाल सेन , श्याम बेनेगल , मोंटाजुर रहमान अकबर और राम गोपाल वर्मा जैसे निर्देशकों के लिए काम किया है। ‘घरे बैरे’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। कला के क्षेत्र में दिए गए अपने योगदान के लिए अब भारत सरकार उन्हें भारत के तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण दिया गया है। अमर उजाला से उन्होंने खास बातचीत की…

1- सवाल: पद्मभूषण मिलने पर आप कैसा महसूस कर रहे हैं? क्या आपको इसकी पहले से जानकारी थी?
जवाब: नहीं मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। मंगलवार दोपहर में ही मुझे इसके बारे में पता चला। यह पुरस्कार मुझे ही नहीं बल्कि मसूरी के मेरे गांव को मिला है। दादा से लेकर पोते तक यहां मैं सभी को जानता हूं। और सभी बहुत खुश हैं। मैं उत्तराखंड सरकार और भारत सरकार दोनों का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने मुझे इस पुरस्कार के योग्य समझा।

2- सवाल: पुरस्कार तो आपको पहले भी मिले हैं, इस पुरस्कार में क्या खास बात है?
जवाब: यूं तो बहुत सारे पुरस्कार मिले हैं, लेकिन सरकार की तरफ से मिलने की बात अलग है। आज से 35 साल पहले महाराष्ट्र सरकार ने एक भूखंड दिया था। यह पहला मौका था जब किसी सरकार ने मेरे काम को पहचान दी थी, लेकिन उसमें अवार्ड नहीं था। जीवन का पहला सरकारी सम्मान तो अब मिला है। मुझे इस बात की भी खुशी है, कि मुझे सीधे पद्मभूषण मिला। जो मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है। भारत सरकार और राज्य सरकार का मैं बहुत आभारी है।

3-सवाल: इस उपलब्धि को किस तरह से मनाएंगे?
जवाब: अगले हफ्ते कोलकाता जा रहा हूं। मार्च में वापसी करूंगा। और फिर परिचितों और दोस्तों के साथ इस खुशी को साझा करूंगा।

4- सवाल: उत्तराखंड की जो रचनात्मक पीढ़ी है। उनके लिए आपका क्या खास संदेश है?
जवाब: जब भी संभव हुआ मेरे लिए मैंने उत्तराखंड के आंदोलनों को दुनियाभर में पहचान दिलाने की कोशिश की। देश के कई बड़े निर्देशकों के साथ काम किया है। और सभी कामों को विवादों से दूर रहकर अंजाम दिया। मेरा यही संदेश युवाओं के लिए है कि, उत्तराखंड में अपार संभावनाएं है। यहां के युवा प्रतिभावान है। और वे कलाकारों की इज्जत करना भी अच्छी तरह से जानते हैं?
यह मेरा नहीं, मेरे संघर्ष के सफर की साथी सभी महिलाओं का सम्मान : बसंती देवी

बसंती देवी 60 वर्षीय बसंती देवी उत्तराखंड की प्रसिद्ध समाज सेविका हैं। उन्होंने राज्य में महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण संरक्षण, पेड़ों व नदी को बचाने के लिए अपना योगदान दिया है। 12 साल की उम्र में ही बसंती देवी का विवाह हो गया था और दो साल बाद ही उनके पति का निधन हो गया। जिसके बाद बसंती देवी कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम में रहने लगी। उन्होंने कोसी नदी का अस्तित्व बचाने के लिए महिला समूहों के माध्यम से जंगल को बचाने की मुहिम शुरू की।

साथ ही घरेलू हिंसा और महिलाओं पर होने वाले प्रताड़नाओं को रोकने के लिए जनजागरण किए। बसंती देवी ने अल्मोड़ा जिले के धौला देवी ब्लाक में आयोजित बालबाड़ी कार्यक्रमों में शामिल होकर समाज सेवा शुरू की। कौसानी से लोद तक पूरी घाटी में करीब 200 गांवों की महिलाओं का समूह बनाया। उन्होंने महिला सशक्तीकरण पर बल देते हुए साल 2008 में महिलाओं की पंचायतों में स्थिति मजबूत करने पर काम किया। पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण मिला तो उन्होंने घरेलू हिंसा और पुरुषों की प्रताड़ना झेल रही महिलाओं की मुक्ति के लिए मुहिम शुरू की। 2014 में उन्होंने 51 गांवों की 150 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की।

1- सवाल: 2016 में राष्ट्रपति द्वारा आपको पहले नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया और अब पद्मश्री। कैसा महसूस कर रही हैं?
जवाब: सब लोग बधाई देने आ रहे हैं। कल से मुझे लगातार फोन भी आ रहे हैं। ये देख कर तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, कि इतने लोगों को मेरा नंबर मिल गया हैं। बहुत खुश हूं कि मेरे काम को सराहा गया है। पद्मश्री जैसे सम्मान के योग्य मुझे समझ गया, ये सिर्फ मेरे लिए ही नहीं है बल्कि उन सभी महिलाओं के लिए हैं, जो इस सफर में मेरे साथ जुड़ी रही। और जिन्होंने अपना जीवन बदलने की ठानी।

2- सवाल: आपको कब ये जानकारी मिली। और पहली प्रतिक्रिया आपकी क्या थी?
जवाब: मुझे जब लगातार लोगों के फोन आने लगे तब मुझे यकीन होने लगा। सबसे पहले मैंने अपने माता- पिता को याद किया। मेरी इस उपलब्धि पर सबसे ज्यादा खुश वही होते, लेकिन खुशी मनाने के लिए मेरे भाई बहन आज मेरे साथ है। क्योंकि कोविड की वजह से मैं आश्रम में नहीं थी कुछ समय से। इसलिए पिथौरागढ़ में अपने घर में रह रही हूं।

3- सवाल: बहुत कम उम्र से ही आप कांटों भरी राह पर चली हैं। आपने इसके लिए हिम्मत कैसे जुटाई
जवाब: 12 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई थी। दो साल बाद ही मेरे पति का निधन हो गया। लोगों के बहुत ताने सुने। सभी लड़कियों की शादी उस वक्त 10-12 साल में ही हो जाती थी। मेरे पिता ने मुझे तब सहयोग किया, जब मैं बिल्कुल अकेली पड़ गई थी। वही मेरी हिम्मत बने। उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए कहा। गांव में जहां उस वक्त लड़कियों की पढ़ाने के बारे में कोई सोचता भी नहीं था। उस वक्त मेरे पिता ने कहा कि अब तुझे सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देना है। बस फिर आश्रम में जीवन शुरू किया। पढ़ाई शुरू की। महिलाओं, बच्चों के साथ भी काम करती रही। और फिर दोबारा शादी का ख्याल भी कभी जहन में नहीं आया।

4- सवाल: उत्तराखंड की महिलाओं और बेटियों को क्या संदेश देना चाहेंगी?
जवाब: मेरी उम्र आज 60 साल है। यहां तक आते -आते मैंने महिलाओं की पीड़ा को बहुत करीब से देखा है। घरेलू हिंसा वो झेलती हैं, लेकिन कुछ कहती नहीं। दिनभर काम में लगी हैं, लेकिन अपना कोई जीवन नहीं। मैं महिलाओं से यही कहना चाहूंगी कि वे अपनी क्षमता को समझें। किसी भी तरह की हिंसा को सहन न करें। मैं बेटियों को शिक्षित करने के लिए खासतौर पर कहूंगी। मेरे जीवन में मेरे पिता से मिले सहयोग के कारण मैं यहां खड़ी हूं। हर बेटी को इसी तरह के प्यार और सहयोग की जरूरत हैं।

 

 

 

 

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