उत्तराखंड

तुंगनाथ मंदिर में 6 से 10 डिग्री का झुकाव..

तुंगनाथ मंदिर में 6 से 10 डिग्री का झुकाव..

दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर पर ASI की स्टडी..

 

 

 

 

 

 

रुद्रप्रयाग जिले में तुंगनाथ मंदिर एशिया में समुद्रतल से सबसे ऊंचाई पर स्थित शिवालय है। पंच केदार में गिने जाने वाला तृतीय तुंगनाथ मंदिर 5 से 6 डिग्री तक झुक गया है जबकि मंदिर के अंदर बनी मूर्तियों और सभामंडप में 10 डिग्री तक झुकाव आ गया है।

 

 

 

 

 

 

उत्तराखंड: रुद्रप्रयाग जिले में तुंगनाथ मंदिर एशिया में समुद्रतल से सबसे ऊंचाई पर स्थित शिवालय है। पंच केदार में गिने जाने वाला तृतीय तुंगनाथ मंदिर 5 से 6 डिग्री तक झुक गया है जबकि मंदिर के अंदर बनी मूर्तियों और सभामंडप में 10 डिग्री तक झुकाव आ गया है। इस बारे में श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने एएसआई को पत्र भेजा है।

इसमें मंदिर का संपूर्ण अध्ययन कर यथाशीघ्र संरक्षण करने को कहा गया है।मंदिर के मठाधिपति राम प्रसाद मैठाणी का कहना है कि वर्ष 1991 में आए भूकंप और समय-समय पर प्राकृतिक आपदाओं से मंदिर पर व्यापक असर पड़ा है। वर्ष 2017-18 में एएसआई ने मंदिर का सर्वेक्षण करने के लिए ग्लास स्केल भी लगाईं थी।

अब विभाग ने एक रिपोर्ट जारी कर मंदिर में झुकाव आने की बात कही है। वर्ष 1991 के उत्तरकाशी भूकंप और 1999 के चमोली भूकंप के साथ ही 2012 की ऊखीमठ व 2013 की केदारनाथ आपदा का भी इस मंदिर पर असर पड़ा है। मंदिर की बाहर की दीवारों से कई जगहों पर पत्थर छिटके हुए हैं। सभामंडप की स्थिति काफी खराब हो गई है। साथ ही गर्भगृह का एक हिस्सा झुक गया है।

आपको बता दे कि तुंगनाथ को दुनिया की सबसे ऊंचे शिव मंदिर का दर्जा प्राप्त है। आठवीं शताब्दी में कत्यूरी शासकों ने इसका निर्माण कराया था। तुंगनाथ मंदिर के इतिहास से जुड़ी पौराणिक किंवदंती के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने भाइयों व सगे संबंधियों को मारने पर पश्चाताप करने के लिए भगवान शिव की खोज में हिमालय पहुंचे। भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, तो उन्होंने भैस का रूप धारण कर लिया।

लेकिन पांडवों ने भगवान शिव को पहचान लिया, जिस पर भगवान गुप्तकाशी में जमीन में अदृश्य हो गए, लेकिन पांडवों ने पीछा नहीं छोड़ा और तुंगनाथ में भगवान शिव की भैस रूप में भुजाएं दिखाई दी, तब से यहां पर भगवान की भुजाओं की पूजा होती है। तुंगनाथ मंदिर क्षेत्र के साथ ही देश-विदेश के लिए आस्था का केंद्र है। हर वर्ष सावन मास में हजारों भक्तजन जलाभिषेक के लिए यहां पहुंचते हैं। साथ ही यहां पूजा अर्चना कराकर अपने परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं।

 

 

 

 

 

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