उत्तराखंड

‘गैरसैंण’ के जिन्न ने छीन ली त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी..

‘गैरसैंण’ के जिन्न ने छीन ली त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी..

उत्तराखंड: प्रदेश में आखिरकार ऐसा क्या है कि जिससे कोई भी मुख्यमंत्री अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है। कांग्रेस के सीएम एनडी तिवारी को छोड़ कर कोई भी मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। ये सवाल राज्य की हर जनता के मन में उठ रहा है। आखिर क्यों इस राज्य से अस्थिरता का पीछा नहीं छूट रहा है ? क्या कोई भी सीएम राज्य की जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा है ? क्यों सीएम जनभावनाओं के अनुकूल मेलजोल नहीं बना पा रहे हैं ? कभी मुख्यमंत्रियों का जरूरत से ज्यादा विनम्र और जनता से घुलना मिलना ही भारी पड़ जाता है। तो कभी जरूरत से ज्यादा गंभीर मिजाज लोगों को नहीं भाता है। ऐसा ही कुछ हुआ हैं त्रिवेंद्र के साथ भी। उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने की राजनीती पिछले हफ्ते शुक्रवार से ही शुरू हो गई थी।

 

त्रिवेंद्र को कुर्सी से हटाने के लिए कई फैक्टरों ने एक साथ मिलकर काम किया। लेकिन, माना जा रहा है कि गैरसैंण में हुए जिन्न ने ही त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी छीन ली है। पिछले साल ही त्रिवेंद्र ने गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की थी, जिसके बाद त्रिवेंद्र ने खूब वाहवाही भी लूटी थी। गैरसैंण में चल रहे बजट सत्र-2021 के दौरान त्रिवेंद्र ने एक बार सभी को चौंका दिया। गैंरसैंण को कमिशनरी का दर्जा देकर विरोधियों के हौसले परस्त कर दिए थे। गढ़वाल, कुमाऊं मंडल के बाद नवनिर्मित गैरसैंण मंडल में चमोली, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा और बागेश्वर जिले को शामिल किया गया ताकि प्रदेश के पर्वतीय जिलों में विकास कार्यों को गति मिल सके।

 

लेकिन, इससे ठीक एक दिन पहले ही गैरसैंण में चल रहे विधानसभा सत्र के दौरान सड़क की मांग कर रहे ग्रामीणों पर लाठीचार्ज से पूरे प्रदेश में त्रिवेंद्र सरकार को आम लोगों की नाराजगी झेलने पड़ी थी। चार साल पहले 18 मार्च को कार्यकाल शुरू करने के बाद सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन समय के साथ ही सासदों, विधायकों, पार्टी कार्यकर्ताओं में विरोध के स्वर भी धीरे-धीरे शुरू हो गए थे। पार्टी हाईकमान की ओर से त्रिवेंद्र को मंत्रीमंडल विस्तार के लिए अधिकृत करने के बाद भी कैबिनेट विस्तार नहीं करना भी गलत साबित हुआ। विगत कई सालों से विधायकों की नजर कैबिनेट कुर्सी पर टिकीं हुई थीं, लेकिन नेताओं के हाथ सिर्फ मायूसी ही लगी। चमोली त्रासदी में लापता श्रमिकों को ढूंढ़ने में विफलता ने भी लोगों के मन में त्रिवेंद्र सरकार के खिलाफ जहर घोल दिया। अपनों की तलाश में धरना दे रहे ग्रामीणों पर भी पुलिस की सख्ती देखने को मिली थी, जिससे एक बार फिर त्रिवेंद्र सरकार की किरकिरी हुई थी।

 

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो त्रिवेंद्र ने भले ही ग्रामीणों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं का शुभारंभ किया हो लेकिन आम जनता और कार्यकर्ताओं की आकांक्षाओं पर खरा उतरने में वह पूरी तरह से विफल साबित हुए थे। त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल के दौरान नौ सबसे ज्यादा नाराज विधायकों ने माहौल बिगाड़ा था। त्रिवेंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ाने के लिए पूर्व विधायक लाखीराम जोशी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जोशी ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ लेटर बम फोड़कर प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। इस मामले को विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार पर हमला भी बोलकर बर्खास्ती की मांग तक कर डाली थी। वहीं, भाजपा संगठन भी जोशी की बात से नाराज होकर उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया था। उल्लेखनीय है कि लाखीराम जोशी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। कहा कि उन्हें सीएम पद से हटा दिया जाना चाहिए। सीएम के खिलाफ हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई जांच के आदेश भी दिए थे।

 

तीन साल, 11 माह 21 दिन रहे सीएम..

त्रिवेंद्र सिंह रावत भाजपा के अब तक के सबसे लंबे कार्यकाल के मुख्यमंत्री हो गए हैं। 18 मार्च, 2017 को उन्होंने सीएम पद की शपथ ली और मंगलवार अपराह्न राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा। त्रिवेंद्र के बाद भाजपा में सबसे लंबा कार्यकाल मेजर जनरल (रिटायर) बीसी खंडूड़ी का रहा।

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